कबीर सच्चे अर्थों में मध्यकालीन भारत के स्वाधीन चित्त महापुरुष थे
● कबीर समाज सुधारक ही नहीं बल्कि एक महान क्रांतिकारी कवि थे
● कबीर ने आडंबरों से भारतीय समाज को मुक्त कराया
● मानवीय मूल्यों के समन्वयक थे कबीर
● कबीर के उपदेश आज भी प्रासंगिक है |
बिहारशरीफ-बबुरबन्ना, 24 जून 2021 ( विक्रम संवत् 2078 – जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा ) : मानव धर्म के सच्चे उपासक और भक्तिकाल के महान कवि संत कबीर दास की 623 वीं जयंती कवियों व साहित्यकारों ने नालंदा की साहित्यिक भूमि बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद नालंदा के तत्वावधान में शंखनाद कार्यालय स्थित सभागार में भारतीय रहस्यवादी संत कवि कबीर दास के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित व दीप प्रज्जवलित कर मनाई गई। समारोह में ये सभी कार्यक्रम कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासकार व साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया। समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि आज महान कवि एवं संत कबीर दास की जयंती है। कबीर भारतीय मनीषा के प्रथम विद्रोही संत हैं, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है। संत कबीर जी का कोई जीवन वृत्तांत पता नहीं चलता परंतु, विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर उनका जन्म विक्रम संवत 1455 तथा मृत्यु विक्रम संवत 1575 माना जाता है। संत कबीर भारतीय संत परंपरा और संत-साहित्य के महान हस्ताक्षर हैं। अंधों की बस्ती में रोशनी बेचते कबीर वाकई अपने आने वाले समय की अमिट वाणी थे। उन्होंने कहा कि संत कबीर के अलावा महात्मा ज्योतिबा फुले, महात्मा गांधी, डॉ भीमराव अंबेडकर, दीन दयाल उपाध्याय के साथ-साथ अन्य महापुरुषों ने देश में समरसता, सरलता और ऊंच-नीच व भेदभाव को दूर करने में चेतना जगाने का काम किया। कबीर समाज सुधारक ही नहीं बल्कि एक महान क्रांतिकारी कवि थे।
मौके पर समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि संत कवि कबीर दास जी समाज में फैले आडम्बरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। वे लेखक और कवि थे। उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। कबीर ने जिस भाषा में लिखा, वह लोक प्रचलित तथा सरल भाषा थी। उन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं ग्रहण की थी, इसके बावजूद वे दिव्य प्रभाव के धनी थे। कबीरदास जी को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था। दोनों संप्रदाय के लोग उनके अनुयायी थे। कबीर सच्चे अर्थों में मध्यकालीन भारत के स्वाधीन चित्त महापुरुष थे। कबीर ने पारंपरिक तरीके से कोई पढ़ाई नहीं की थी, वह पढ़े-लिखे नहीं थे। वह अपने दोहे केवल बोलते थे और उनके शिष्य उनके बोले हुए दोहे लिखते थे। कबीर ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा उनके शिष्य ने उनके ग्रंथ लिखे हैं। इस पर कबीर का कहना है कि…‘मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ। चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात’।समाजसेवी चन्द्रउदय कुमार मुन्ना ने वर्चुअल माध्यम से कहा कि कबीर ने लोगों को एक नई राह दिखाई। घर-गृहस्थी में रहकर और गृहस्थ जीवन जीते हुए भी शील-सदाचार और पवित्रता का जीवन जिया जा सकता है तथा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि पूजा-पाठ और धार्मिक आडंबरों से आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती है।
समाजसेवी व साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने अपने उद्बोधन में कबीर को साधना के क्षेत्र में युग-युग का गुरु बताया और कहा कि कबीर ने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर साहित्य क्षेत्र में नवनिर्माण किया। उनका उपदेश आज भी प्रासंगिक है।मौके पर डॉ.अरुण कुमार मयंक ने अपनी मंतव्य में कहा कि कबीर, आज के लिए प्रसांगिक हैं।आज विश्व में जिस तरह दुनिया को पाखंड और अंधविश्वास में जकड़ा जा रहा है।कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के द्वारा दुनिया को फिर से गुलाम बनाने की साजिश रची जा रही है। उन्होंने कहा- कबीर एक ऐसे संत है, जिनके लिये पंथ और ग्रंथ का भेद बाधक नहीं। वे दो संस्कृतियों के संगम हैं। उनका मार्ग सहजता है, यही कारण है कि उन्होंने सहज योग का मार्ग सुझाया। वे जाति-पांति के भेदभावों से मुक्त एक सच्चा इंसान थे।वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आनन्दवर्द्धन ने कहा कि वीरगाथाकाल के बाद भक्तिकाल की निर्गुणभक्ति काव्यधारा के संतकवि स्वामी रामानन्द के शिष्य संत कबीर थे। उन्होंने कहाकि बचपन से ही मेरा भी मन पिताजी द्वारा गुणगुनाते अनेकों पद सुनकर रम गया था- झिणी झिणी बीनी चदरिया, माया बड़ ठगनी, यह संसार कागद की पुड़िया, रहना नहीं देश विराना आदि। कितना सामयिक सबद है– साधो देखो जग बौराना। सांची कहौ तौ मारन धावै झूठे जग पतियाना। सत् सत् नमन बाबू कबीरा ही करथून जग कल्याणा।
डॉ. विश्राम प्रसाद ने अपने उद्बोधन में कहा कि कबीर ने भारतीय समाज को दकियानूसी सोच व उंच-नीच की भावनाओं से बाहर निकाला। उन्होंने कहा कि संत कबीर दास एक जन के नहीं बल्कि सामान्यजन के थे और उनकी वाणी गरीबों, पीडितों के साथ-साथ समाज के कमजोर वर्गां के उत्थान के लिए था।उन्होंने कहा- वर्तमान समय में भारतीय भूमि पर अनेकों कबीर दास जैसी व्यक्तित्व की आवश्यकता है।ताकि भारत में व्याप्त पाखंड और अंधविश्वास और आडम्बर मिट सके। संचालन करते हुए शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहा कि कबीर भारतीय मनीषा के भूगर्भ के फौलाद हैं जिसके चोट से ढोंग, पाखंड और धर्मांधता चूर-चूर हो जाती है। कबीर भारतीय संस्कृति का वह हीरा है जिसकी चमक नित नूतन और शाश्वत है।इस दौरान इतिहासकार तुफैल अहमद खां सूरी, फ़िल्म अभिनेता जयंत अमृत, समाजसेवी धीरज कुमार, कवयित्री प्रियारत्नम, शायर अमन कुमार नालन्दवी, राजीव कुमार शर्मा, संजय कुमार शर्मा, केदार प्रसाद मेहता ने भाग लिया।कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन शंखनाद के सचिव साहित्यानुरागी साहित्यसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने किया।