प्रस्तुति – राकेश बिहारी शर्मा – शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले।वतन पर मर मिटने वालों का, यही बाकी निशां होगा।।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री प्रियदर्शिनी स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जी की आज पूण्यतिथि है। भारतीयों के दिलों में आज भी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम उसी तरह जीवित है, जैसे 37 साल पहले था। इंदिरा गांधी अपने कड़े फैसलों के लिए जानी जाती थीं। इंदिरा एक कुशल प्रशासक थीं। पूरी दुनिया ने उनके फैसले का लोहा माना था। ब्रिटेन की पहली व इकलौती महिला प्रधानमंत्री रहीं मारगरेट थैचर भी उनके इसी अंदाज की मुरीद थीं। इंदिरा की शान में 1971 भारत-पाक युद्ध को याद किया जाता है। इस युद्ध के नतीजे ने उपमहाद्वीप का इतिहास ही नहीं, बल्कि भूगोल भी बदल कर रख दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के घर इंदिरा का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित भारत के पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के अंतर्गत बोलपुर के समीप शांतिनिकेतन में पढ़ाई करने वाली इंदिरा बचपन में काफी संकोची स्वभाव की थी। अपनी राजनीतिक पारी के शुरूआती दिनों में गूंगी गुडि़या के नाम से जानी जाने वाली इंदिरा बाद के दिनों में बहुत बड़ी जन नायक बन कर उभरी। उनके व्यक्तित्व में अजीब सा जादू था जिससे लोग खुद ब खुद उनकी तरफ खिंचे चले आते थे। वह एक प्रभावी वक्ता भी थी जो अपने भाषणों से लोगों को मंत्रामुग्ध कर देती थी। इंदिरा गांधी कभी भी अमेरिका जैसे राष्ट्रों के सामने भी नहीं झुकी थी। श्रीमती इंदिरा गांधी जी के दृढ़ निश्चय, साहसपूर्ण पहल और देश के हित में सर्वोच्च त्याग एवं बलिदान के लिये सदैव याद किया जाएगा। प्रधानमंत्री पद पर लंबी अवधि के दौरान उन्होंने अनेक ऐतिहासिक निर्णय लिए जैसे-बैंको को राष्ट्रीकरण, रजवाड़ों के वर्चस्व की समाप्ति, गरीबी हटाओ एवं हरितक्रांति कार्यक्रम। उनके द्वारा प्रारंभ किया गया 20 सूत्रीय कार्यक्रम का मुख्य ध्येय गरीब वर्ग के लोगों के पिछड़ेपन में सुधार लाकर उनकी जीवन स्तर को उंचा उठाना था। वे प्रतिक्रियावादियों की विरोधी थी और राष्ट्रीय सामंजस्य के लिये सदैव प्रयत्नशील रही है। वह प्रभावी व्यक्तित्व वाली मृदुभाषी महिला थीं और अपने कड़े से कड़े फैसलों को पूरी निर्भयता से लागू करने का हुनर जानती थीं। उन्होंने जून 1984 में अमृतसर में सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया था। इसके अलावा 1975 में आपातकाल की घोषणा और उसके बाद के घटनाक्रम को भी उनके एक कठोर फैसले के तौर पर देखा जाता है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे।
इंदिरा ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया – इंदिरा सरकार ने अपने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का अहम फैसला किया था। उन्होंने 19 जुलाई, 1969 को 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इन बैंकों पर अधिकांश बड़े औद्योगिक घरानों का कब्जा था। इसके बाद राष्ट्रीयकरण का दूसरा दौर 1980 में हुआ। इसके तहत 7 बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया था।
भारत रत्न से किया गया सम्मानित – इंदिरा गांधी सक्रिय राजनीति में अपने पिता जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद आईं। उन्होंने प्रथम बार प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में सूचना और प्रसारण मंत्री का पद संभाला था। इसके बाद शास्त्री जी के निधन पर वह देश की तीसरी प्रधानमंत्री चुनी गई। इंदिरा गांधी को वर्ष 1971 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।
इंदिरा ने वर्ष 1974 में पोखरण विस्फोट करवाया – इंदिरा के बारे में ऐसा कहा जाने लगा कि कैबिनेट में वे अकेली मर्द हैं। 1974 में पोखरण में पहला परमाणु विस्फोट कर इंदिरा ने दुनिया को चौंका दिया। दक्षिण एशिया में उनके नेतृत्व में एक ऐसी शक्ति का उदय हुआ, जिसकी ओर कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता था। इंदिरा देशभक्ति का पर्याय बन गईं।
इंदिरा और फिरोज की शादी को कोई नहीं रोक पाया – स्वतंत्रता सेनानी और लोकसभा के प्रभावशाली सदस्य रहे फिरोज गांधी के लिए इंदिरा गांधी से शादी करना इतना आसान नहीं था। उस समय इंदिरा सिर्फ 16 साल की थीं और फिरोज 21 साल के थे, तब उनकी प्रेम कहानी शुरू हुई थी। इंदिरा गांधी की प्रेम कहानी ने सभी बाधाओं का सामना किया था जो भारतीय समाज में हर प्रेमी जोड़ा करता है। उनकी प्रेम कहानी में पहली बाधा उनका धर्म था। फिरोज गांधी एक पारसी थे वहीं इंदिरा गांधी हिंदू पंडित थीं। नेहरू के कड़े विरोध के बावजूद, इंदिरा ने गुजराती पारसी फिरोज से शादी करने का फैसला किया था। वहीं नेहरू ने दोनों की प्रेम कहानी को समाप्त करने के लिए अंतिम प्रयास करते हुए ये मामला महात्मा गांधी तक पहुंचाया। वहीं जैसा कहा जाता है दुनिया की कोई ताकत सच्चे प्यार करने वालों को नहीं रोक सकती, ऐसे ही कोई भी इंदिरा और फिरोज को शादी करने से नहीं रोक पाया। महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के बाद दोनों की शादी इलाहाबाद में हुई। फिरोज को बापू ने अपना सरनेम भी दिया। 26 मार्च 1942 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर ली। इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अगस्त 1942 में इंदिरा और फिरोज साथ में जेल भी गए। हालांकि शादी के बाद दोनों के बीच काफी लड़ाइयां हुईं। जिसके बाद ही दोनों 5 सालों तक घरेलू जीवन साथ में जिया। उनके 2 बेटे हुए जिनका नाम राजीव गांधी और संजय गांधी रखा गया। दोनों की लवस्टोरी बहुत चर्चित रही। लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही इंदिरा और फिरोज के रिश्तों में पहले जैसी गर्माहट नहीं रही।
भारत को आजादी मिलने के तुरंत बाद, नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और फिरोज ने अलग राजनीतिक लाइन चुनी। अपने पत्रकारिता करियर के दौरान, फिरोज ने नेहरू सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ लिखना शुरू किया। फिरोज ने नेहरू सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया और कई बड़े घोटालों को उजागर किया। नेहरू के खिलाफ उनके साहसिक दृष्टिकोण ने इंदिरा और फिरोज के बीच एक असहज क्षेत्र बनाया। जैसे ही नेहरू और फिरोज़ के बीच दरार बढ़ी, और इंदिरा अपने दोनों बच्चों को लेकर लखनऊ स्थित अपना घर छोड़ कर पिता के घर इलाहाबाद आ गईं। और इसी साल इंदिरा गांधी पहली बार कांग्रेस की वर्किंग कमेटी और केंद्रीय चुनाव समिति सदस्य भी बनी थीं, लेकिन जब फिरोज ने पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया तो दोनों के रिश्ते और कड़वे होते गए। वर्ष 1958 में फिरोज को दिल का दौरा पड़ा और उस दौरान इंदिरा गांधी उनकी देखभाल के लिए लौट आईं। 8 सितंबर, 1960 को हार्ट अटैक से फिरोज गांधी का निधन हो गया था। उनकी मृत्यु के बाद, इंदिरा राजनीति में सक्रिय हो गईं और बाद में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
1975 में इंदिरा ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपातकाल (इमरजेंसी) लगा दी। इस दौरान इंदिरा का विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया गया और पूरे देश में सरकार की मनमानी का दौर चल निकला। नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए। जिसे काले दिन के रूप में आज भी याद किया जाता है।
बेलछी नरसंहार के बाद बेलछी पहंचने वाली पहली राजनेता थी इंदिरा – वर्ष 1977 के आम चुनाव में हार के बाद इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन को बेलछी की यात्रा ने नया जीवन दिया था। बिहार के नालंदा का बेलछी गांव दो कारणों से चर्चा में रहता आया है। पहला, 27 मई 1977 को वहां हुआ दलित नरसंहार और दूसरा 13 अगस्त 1977 को इंदिरा गांधी की यात्रा। आपातकाल के पश्चाऔत 1977 में हुए आम चुनाव में भारी पराजय के बाद यह इंदिरा का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था, जिसके दूरगामी राजनीतिक परिणाम निकले। जिसे तत्कालीन कांग्रेस के अध्यीक्ष रहे सीताराम केसरी ने इस यात्रा की तुलना महात्माग गांधी के दांडी मार्च से की थी। केसरी के इस दावे के पक्ष-विपक्ष में तर्कग हो सकते हैं, लेकिन यह तथ्यक है कि बेलछी यात्रा ने इंदिरा गांधी के अस्तर होती राजनीति को नया जीवन दिया। बिहार के बेलछी गांव में 27 मई 1977 को हुए दलित नरसंहार के करीब ढाई महीने बाद 13 अगस्त 1977 को इंदिरा गांधी वहां पहुंचीं। नालंदा जिला में हरनौत से बेलछी तक 15 किलोमीटर के दुर्गम रास्ते को पार कर इंदिरा गांधी पीडि़तों से मिलीं। उनकी यात्रा के बाद बेलछी पूरी दुनिया में चर्चा में आ गया। इसके बाद तो तमाम राजनेता यहां पहुंचने लगे। लेकिन इंदिरा बाजी मार चुकीं थीं। अपराध प्रभावित दुर्गम इलाके के बदतर हालात में खराब मौसम की मार के बीच इस यात्रा के दौरान इंदिरा कभी पैदल चलीं तो कभी हाथी की सवारी की। साथ चल रहे कांग्रेस नेताओं को आपातकाल के दाग के साथ सत्ता से विदा की गईं इंदिरा के विरोध की आशंका थी, लेकिन बेलछी में उनका उम्मीेद भरा स्वा गत हुआ। नरसंहार के बाद बेलछी में किसी बड़े राजनेता की इस पहली यात्रा के दौरान नारे लगे- ”इंदिरा तेरे अभाव में, हरिजन मारे जाते हैं।”
फौलादी इरादों और निडर फैसलों वाली देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इस दिन सुबह सवेरे उनके सिख बॉडी गार्ड्स ने मौत के घाट उतार दिया था। इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 के बीच लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली और उसके बाद 1980 में दोबारा इस पद पर पहुंचीं और 31 अक्टूबर 1984 को पद पर रहते हुए ही उनकी हत्या कर दी गई।