बिहारशरीफ, साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के आवास स्थित सभागार में शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता तथा शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण के संचालन में साहित्यकार नारायण प्रसाद द्वारा लिखित मगही उपन्यास “कप्तान के बिटिया” का लोकार्पण श्रद्धा पूर्वक की गई।
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा, उपाध्यक्ष बेनाम गिलानी ने दीप प्रज्जवलन कर किया।
पुस्तक लोकार्पण के मौके पर विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने लोकार्पित पुस्तक के बारे में कहा कि मगही भाषा का स्थान विभिन्न भारतीय भाषाओं के बोलने वालों की संख्या के आधार पर भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार सतरहवाँ है। संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित निम्नलिखित नौ भाषाओं के बोलने वालों की संख्या से मगही भाषियों की संख्या कहीं अधिक है- संथाली, कश्मीरी, नेपाली, सिन्धी, डोगरी, कोंकणी, मणिपुरी, बोडो, संस्कृत। लेकिन मगही को अभी तक भाषा के रूप में सम्मान प्राप्त नहीं है। अब जबकि विश्वविद्यालय स्तर पर मगही की पढ़ाई चालू है, मगही भाषी लेखक लोग भी मगही साहित्य रचना में उत्साह से भाग ले रहे हैं। लेकिन मगही गद्य साहित्य की कमी खलती है। इसी कमी की पूर्ति हेतु प्रकृत लेखक सेवानिवृत्ति के बाद विश्व स्तर के रूसी साहित्य का मगही अनुवाद के रूप में योगदान हेतु प्रयासरत हैं।
उन्होंने कहा कि मगही साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर साहित्यकार नारायण प्रसाद ने कई मगही उपन्यास लिखे जिनमें “कालापानी”, “आजकल के हीरो”, “अपराध आउ दंड” के बाद यह उनकी चौथी पुस्तक है- रूसी राष्ट्रकवि अलिक्सान्द्र पुश्किन द्वारा रचित रूसी गद्य साहित्य का मगही में अनूदित उपन्यास “कप्तान के बिटिया”, जिसमें पांच कहानियों का संग्रह (“बेल्किन की कहानियाँ” से प्रसिद्ध) और लघु उपन्यास “काला पान के बीवी” भी शामिल हैं।
अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि किसी भी समाज में समाज का प्रबुद्ध वर्ग, समाज के मातृभाषा के अनुवादक, लेखक या साहित्यकार ये पथ प्रदर्शक की तरह होते हैं, समाज के जमीनी शिक्षक होते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश-प्रदेश में तो लेखन का निरंतर विकास भारतीयता और राष्ट्रीयता के साथ हुआ है। हमारे यहां बड़े-बड़े अनुवादक, साहित्यकार और बड़े-बड़े संत भी अपना प्रवचन मगही भाषा में ही दिया है। उन्होंने कहा कि नारायण प्रसाद ने कई रूसी उपन्यासकारों की रचनाओं का मगही में अनुवाद किया है, जिनमें “कप्तान के बिटिया”, पुस्तक में ज्ञान को जिस तरह से समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया, वो सचमुच अद्भुत है।
मौके पर मगही भाषा के नामचीन सशक्त हस्ताक्षर, प्रकांड साहित्यकार, अनुवादक नारायण प्रसाद ने लोकार्पित पुस्तक के बारे में बताते हुए कहा कि रूस में राष्ट्रीय कवि और साहित्यकार के रूप में सम्मानित अलिक्सान्द्र पुश्किन रूसी का महानतम कवि और आधुनिक रूसी साहित्य का संस्थापक हैं। पुश्किन उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से लेकर आज तक, रूसी पहचान के प्रमुख प्रतीक कवि और साहित्यकार रहे हैं। “पुश्किन की कहानियां” में पांच कहानियां हैं, जो सन् 1830 में लिखी गई थीं- ताबूतसाज, स्टेशन मास्टर, कुलीन-कि ऐनी, निशाना और बरफीला तूफान। लेकिन 1831 में प्रकाशन के दौरान लेखक ने अन्तिम दोनों कहानियों को प्रारंभ में रख दिया। यह कहानी संग्रह आज तक इसी क्रम में प्रकाशित होता रहा है। “कप्तान के बिटिया” पुश्किन की सबसे प्रभावकारी रचना है। उपन्यास “कप्तान के बिटिया” 1770 के दशक के पूर्वार्द्ध में इमिल्यान पुगाचोव के नेतृत्व में प्रसिद्ध कृषक आन्दोलन पर आधारित है। उन्होंने कहा- इसी वर्ष और दो रूसी पुस्तकों का मगही अनुवाद प्रकाशित होने की संभावना है- अलिक्सान्द्र रादिषेव का “पितिरबुर्ग से मास्को की यात्रा” और फ़्योदर दस्तयेव्स्की का उपन्यास “अपमानित आउ तिरस्कृत”।
शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा- आज मगध में ही मगही भाषा उपेक्षित होती जा रही है। यहां दूसरे भाषा को बढ़ावा दिया जा रहा है। मगध में रोजगार के संसाधन के बावजूद मगध के लोगों का पलायन नहीं रूक रहा है। मगध की वजूद बचाने के लिए यहां के लोगों को अपना स्वाभिमान और गौरव को याद कर संघर्ष करना होगा।
इतिहास के शोधार्थी आकाश कुमार ने कहा कि किसी भी जिला राज्य अथवा देश की पहचान उसकी अपनी भाषा होती है। मगध की पहचान मगही भाषा से होती है। हम अपने लोक संस्कृति और रीति-रिवाजों को भूलाते जा रहे हैं। मगध का न सिर्फ अपना इतिहास है बल्कि इसकी संस्कृति और परंपरा भी पूरे देश में प्रचलित है।
शिक्षाविद जाहिद हुसैन ने कहा कि साहित्यकार नारायण प्रसाद द्वारा मगही में अनुवादित उपन्यास “कप्तान के बिटिया” मगही साहित्य की जीवंत उपन्यास है। मगही भाषा आज के समय में भी उतनी ही उपयोगी है जितनी बौद्ध काल में थी। मगही भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये मगही उपन्यास व मगही साहित्य सशक्त माध्यम है। मगही साहित्य के विकास के बिना मगधांचल का इतिहास ही अधूरा है।
इस अवसर पर संजय कुमार शर्मा, धीरज कुमार, प्रिया रत्नम, मिथिलेश कुमार चौहान, शायरा, अर्चना कुमारी, रंजना कुमारी, शाकिरा सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।