बिहारशरीफ – टाल विकास योजना के तहत दलहनी फसल के बेहतर प्रबंधन को लेकर पौधा संरक्षण विभाग की ओर से किसान पाठशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस योजना के तहत पांच प्रखंड का चयन किया गया है। जहां किसानों को बीज बुआई से लेकर फसल कटाई तक प्रबंधन की जानकारी दी जाएगी। कुल 14 सत्र आयोजित किया जाना है जहां किसानों को खेत पर ही ऑन स्पॉट प्रशिक्षण दिया जाएगा। सहायक निदेशक पौधा संरक्षण अनील कुमार ने बताया कि किसान पाठशाला के लिए चयनित प्रत्येक प्रखंड के 4-4 गावों को चिन्हीत किया गया है। जहां 20 पाठशाला के दौरान 14 सत्र आयोजित किया जाना है। प्रत्येक पाठशाला में 30 किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि किसी भी फसल के लिए कीट प्रबंधन बहुत जरूरी है। मौसम परिवर्तन होने के साथ-साथ कीट ब्याधी का प्रकाेप भी बढ़ जाता है। समय पर अगर इसका प्रबंधन नहीं किया गया तो फसल को काफी नुकसान होता है। और किसानों को भी परेशानी होती है। इन्हीं परेशानियों को कम करने के लिए पाठशाला का आयोजन किया जाता है। ताकि बीज बुआई से लेकर फसल कटाई तक फसल में होने वाले समस्याअों के बारे में समय-समय पर जानकारी दी जा सके। मास्टर ट्रेनर को दिया गया प्रशिक्षण सहायक निदेशक पौधा संरक्षण ने बताया कि किसान पाठशाला की शुरूआत कर दी गई है। लेकिन जानकारी को अपडेट करने के लिए बीच-बीच में मास्टर ट्रेनरों को प्रशिक्षित किया जाता है। ताकि किसानों को सही जानकारी दी जा सके। प्रशिक्षण के दौरान कीट प्रबंधन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला दवा एवं उसके मात्रा के बारे में जानकारी दी गई। साथ ही किस सत्र में किस विषय पर किसानों को जानकारी दिया जाना है, इसके बारे में जानकारी दी गई। मिट्टी व बीज का उपचार जरूरी जिला परामर्शी कुमार किशोर नंदा ने बताया कि बेहतर उत्पादन के लिए मिट्टी और बीज का स्वस्थ्य होना बहुत जरूरी है। इसके लिए बुआई से पहले मिट्टी जांच होने के साथ-साथ बीजोपचार बहुत जरूरी है। क्याेंकि फसलों में मिट्टी और बीज जनीत कीट का प्रकोप ज्यादा बढ़ता है। मौसम में बदलाव, अधिक वर्षा या ररसायनिक खाद के अधिक प्रयोग से कीट का प्रभाव फसलों में बढ़ जाता है। ऐसे परिस्थिति में प्रबंधन बहुत जरूरी है। जैविक खाद का प्रयोग लाभकारी जिला परामर्शी पुरूषोत्तम कुमार सिंह ने जैविक खाद के प्रयोग पर जोर देते हुए कहा कि रसायनिक खाद का प्रयोग कर किसान अधिक पैदावार जरूर ले रहे हैं। लेकिन भविष्य में बढ़ते खतरे को नहीं समझ पा रहे हैं। एक समय था जब खेतों में गोवर का प्रयोग ज्यादा होता था। जो खेतों के लिए अमृत माना जाता था। लेकिन वर्तमान समय में किसान रसायनिक खाद का प्रयोग तेजी से कर रहे हैं। जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आने वाले पिढ़ियों के लिए नुकसानदायक साबित होगा।