राकेश बिहारी शर्मा–नदियों के स्वक्षता और संरक्षण की जब भी बात होती है, समस्त विषय गंगा और उनके कुछ सहायक नदियों की दशा सुधारने की चिंता तक सिमट जाता है। जिसके कारण तमाम प्रयासों के बावजूद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते हैं। यह समझने की आवश्यकता है कि गंगा हो या उनके सहयोगी अन्य नदी, वह अपने आप में अकेले नहीं होती, वरन अनेक जलधाराओं का समेकित स्वरूप होती है। अतः हमें नदियों की हालात सुधारनी है तो पहले समझना होगा कि छोटी नदियों को सजल और निर्मल बनाए बिना बड़ी नदियों की दशा नहीं सुधर सकती।
इसी को ध्यान में रखते हुए हरनौत के समाजसेवी किसान नेता चन्द्र उदय कुमार मुन्ना के नेतृत्व में नदी जोड़ो अभियान के तहत् यह प्रयास रहा है कि गंगा की सहायक नदियों को आपस में जोड़कर संरक्षित एवं पुनर्जीवित किया जाना है।
किसान नेता चन्द्र उदय कुमार मुन्ना, साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा एवं अन्य सहयोगियों ने 2019 में नदियों की बिगड़ती दशा पर काम करने के भाव से नालंदा में गंगा नदी को पंचाने नदी और महाने नदी जोड़ो अभियान चिंतन बैठक का आयोजन किया गया था। इसमें नालंदा जिले से क्षेत्रीय नदी और गंगा व गंगाजल पर कार्य करने वाले कई समाजसेवी किसान एकत्र हुए थे। बैठक में नदियों की प्रकृति और हमारी बदलती जीवनशैली का अध्ययन भी किया गया और यह तय हुआ था कि गंगा नदी की धारा को नालंदा में किसानों के खेतों तक सिचाई के लिए नदियों से जोड़ा जाय तभी नालंदा और समीपवर्ती जिले के किसान समृद्ध होंगें। गंगा नदी पंचाने नदी और महाने नदी की जीवनरेखा है। इसलिए इस अभियान की शुरुआत नालंदा के हरनौत से हुई थी। 2020 में पंचाने नदी, महाने नदी और सकरी नदी जोड़ो यात्रा आयोजित की गई थी, इस यात्रा में नालंदा के नदियों की वास्तविक स्थिति का अध्ययन कर किया गया और पाया कि नदी के कई स्थानों पर जलधार समाप्त हो रहे हैं। इसके लिए किसान नेता मुन्ना जी के नेतृत्व में नदी जोड़ो अभियान के लिए आवश्यक कार्यों की सूची बनाई गई।
पंचाने नदी को गंगा के समान पवित्र माना गया है, इसके जल में तप की प्रकृति है। पंचाने नदी के तट पर ही कई महापुरुषों ने तपस्या कर वरदान पाया। कृष्ण और भीम ने पंचाने नदी में स्नान किया है और उनके भक्तों ने नदी तट पर कई मंदिरों की स्थापना की, इनमें से अधिकांश अस्तित्व में हैं और पूजे जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में अनेक स्थानों पर नदियों की जलधारा सूख गई और इसके कई क्षेत्र पर अतिक्रमण हो गया। यदि इन नदियों के क्षरण और अतिक्रमण को रोकने के प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले समय में जल संकटों का सामना करना होगा।
नालंदा के नदियों पर काम कर रहे साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा बताते हैं मेरा बचपन सकरी और पंचाने नदी के तट पर ही बीता है। मैंने सदैव इस नदी को जीवंत दशा में देखा… कभी इठलाकर बहते हुए और कभी धीर-गंभीर शांत रूप में। बरसात में इसका रौद्र रूप भी देखा लेकिन नालंदा और पटना जिले के क्षेत्रोंमें सकरी, पंचाने, महाने नदी को कभी तांडव करते नहीं देखा। यह नदी हमेशा अपनी मर्यादा में रही और कभी किसी गांव में घुसकर हानि नहीं पंहुचाई। लेकिन सबकी प्यास बुझाने वाली ये सभी नदी आज सिसक रही है और प्रतीक्षा कर रही है कि कलयुग में भी कोई भगीरथ आए और उसके आंसू पोंछे।
इस अभियान का उद्देश्य नदी के दोनों ओर के गांवों और मैदानी क्षेत्र में जनजागरण करना था। इस अभियान के उपरांत अनेक सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक और विद्यार्थी संगठन इस आन्दोलन से जुड़कर नदी के तटों पर स्वच्छता अभियान चलाना था। कार्यकर्ताओं द्वारा अभियान में नदी तट पर वृक्षारोपण कर प्रति वर्ष वर्षा काल में नदी तट को संरक्षित करना है।
कई नदी तट पर वृक्षारोपण व घाट संरक्षण का कार्य भी सरकार द्वारा प्रारम्भ हुआ है। जहां-तहां पर नदी और नहरों में चेक डैम तथा बहता नदी पर भी चेक डैम बनाए गए। कुछे नदी की नाप व चिन्हांकन कर खुदाई का काम किया गया है।
इसके उपरांत किसानों के द्वारा श्रमदान भी किया गया है। श्रमदान करने वालों में हर आयु वर्ग और हर सामाजिक स्तर के लोग सहभागी बने थे। नदी जोड़ो अभियान आगे बढ़ता गया। बाधाएं थी अतिक्रमण था लेकिन भाव था कि नदी जलधारा को पुनर्जीवित करना है। नदी क्षेत्र को सामूहित और स्वैच्छिक श्रमदान से साफ किया गया। किसान नेता चन्द्र उदय मुन्ना जी नदी पुनर्जीवन के कार्य को पुनः प्रारंभ करने की योजना बना रहे हैं।
किसानों और समाजसेवियों का कहना है कि नदी क्षेत्र से संबंधित ग्राम पंचायतें मनरेगा अथवा ऐसी किसी योजना से प्रति वर्ष नदियों के प्रवाह क्षेत्र की सफाई कराएं ताकि संपूर्ण नदी क्षेत्र अतिक्रमणमुक्त हो और जलप्रवाह के लिए अनुकूल स्थिति बने। नदी तट को वृक्षारोपण हेतु अतिक्रमणमुक्त किया जाए। नदी तट पर दोनों किनारे रासायनिक खेती को पूर्णतः प्रतिबंधित किए जाने की आवश्यकता है। आवश्यकता है कि इसका विस्तार समस्त नदियों तक किया जाए।
यदि नहीं बचीं छोटी नदियां, तो निष्प्राण हो जाएंगी आने वाली पीड़ियां
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