बिहार शरीफ़ / डॉ.मधुप रमण . याद आ गया पूर्व का साल। देव दीपावली की शाम। एक साल में ही कोरोना की बजह से बहुत कुछ बदल चुका था । हालांकि इस साल कोरोना की समाप्ति के बाद इस सांस्कृतिक परंपरा का बेहतर तरीक़े निर्वहन किया जाना था । बाद में भी सांस्कृतिक परम्पराएं अक्षुण्ण ही रहेंगी यह विश्वास है।
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर्व आस्था का जन सैलाब लेकर आता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु स्नानार्थियों की भीड़ अपनी चरमसीमा पर होती है। पावन नदियों में स्नान एवं पूजा- पाठ का नजा़रा अवलोकनीय होता है। श्रद्धालुगण आस्था की सारी सीमाएँ लांघकर सावन के मेघ की तरह लाखों की संख्या में उमड़ पड़ते हैं। पावन नदी घाटों पर तिल रखने की भी जगह नहीं होती। भजन- कीर्तन एवं भक्ति गीतों से सारा वातावरण गुंजायमान रहता है।
बिहार शरीफ देव दीपावली : कई सालों से बिहार शरीफ़,स्थित धनेश्वर घाट तालाब में भी काशी के तर्ज़ पर कार्तिकपूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा के पवित्र दिन को भी पर देव दीपावली मनाने की एक अभूतपूर्व परंपरा रही है।देव दीपावली की दैविक रीत है,भगवान उस दिन काशी के अस्सी घाटों पर अवतरित होते हैं हम मानव कार्तिक अमावस की रात दीपोत्सव मनाते है तो देवों की दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को होती हैं,इस विशेष दिन काशी के घाटों की अतुलनीय शोभा विश्व विख्यात है सर्वत्र चर्चित है।
गुरु पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन के एक दिन पहले यहां की सजावट भी देखते ही बनी । क्योंकि ८ नवम्बर को ग्रहण लगना था। इसलिए पूर्णिमा के एक दिन पूर्व यह आयोजन होना था। सुबह कब की हो भी चुकी थी । तिमिर हट चुका था । बिहार शरीफ देव दीपावली के सदस्य गण जाग चुके थे । कहना मात्र यह है कि इस अवसर पर काशी की तर्ज़ पर ही इस छोटे से शहर बिहार शरीफ़ में भी सांस्कृतिक आयोजन के निमित भजन का भी गायन वादन होना था जो याद करने योग्य होता है।
शाम होने की कगार पर थी । मधुर मधुर दीपक मेरे जल जल जल कर मेरे पथ आलोकित कर ..उन दीयों के जलने कि तैयारी हो चुकी थी । शनैः शनैः स्वेच्छा से कुछेक लोग तालाब परिसर में जुटने लगे थे ,दीप जलने मात्र से
बिहार शरीफ़ के धनेश्वर घाट स्थित तालाब के गलियारे को जो आलोकित होना था। माहौल भक्ति पूर्ण हो गया था ।
विश्व ज्ञान की धरती नालंदा के जिला मुख्यालय बिहार शरीफ़ में भी कमो वेश यही दृश्य था जैसा बनारस में होता है । वैसी ही शोभा थी। तालाब की काया इस साल पलट चुकी थी। देखने से यह प्रतीत हो रहा था कि बिहार शरीफ़ स्मार्ट सिटी बनने की राह पर कदम बढ़ा चुका है। शाम होते ही भजन कीर्तन की आवाज़ें आने लगी। आमंत्रित गायक अपने अपने फ़न आज़माने लगे।
तब देर संध्या बनारस से आए पंडितों यथा आचार्य दीपक शास्त्री ,पंडित संतोष पांडे ,पंडित राकेश प्यासी ,पंडित प्रवेंद्र तिवारी ने वैदिक मंत्रो च्चारण के साथ आयोजन समिति के सदस्यों अधिवक्ता रवि रमण , पूर्व बार्ड पार्षद परमेश्वर महतो, वर्तमान बार्ड पार्षद रीना महतो तथा प्रोफेसर आशुतोष शरण के द्वारा जल श्रोतों की विधिवत पूजा की विधि आरम्भ करवाई। तत्पश्चात गंगा आरती संपन्न हुई । इस घटना के साक्षी रणजीत कुमार सिन्हा ,सीमा सिन्हा, अभिमन्यु आदि अन्य उपस्थित श्रद्धालूगण रहें ।
इसके बाद धनेश्वर घाट तालाब की सीढ़ियों पर रखे दीओं को प्रकाशित करने का कार्य शुरू किया गया। वहां उपस्थित तमाम आए श्रद्धालुओं ने घाटों पर सजाए गए अपने अपने आस्था के दीप जलाएं।
सर्वत्र जोत से जोत जलाने की अद्भुत परम्परा में प्रेम की गंगा बहाते चलो का मनोभाव सबके भीतर जैसे उमड़ पड़ा था। भक्ति में पूजा के उपरांत आम लोगों के बीच प्रसाद का भी वितरण किया गया ।
बताते चले इस धनेश्वर घाट तालाब परिसर में ८ नवम्बर को ग्रहण लगने की बजह से कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पूर्व ७ नवम्बर को ही गंगा आरती का आयोजन किया गया था। इस दिन हुए देव दीपावली के आयोजन के उपलक्ष्य पर देव दीपावली आयोजन समिति के सदस्य वरीय अधिवक्ता रवि रमण ,प्रोफ़ेसर आशुतोष शरण, पूर्व बार्ड कमिश्नर परमेश्वर महतो, गोल इंस्टिट्यूट के संचालक संजय कुमार तथा आर्य समाजी अभिमन्यु ने भक्ति भाव से अपने अपने दीप जलाकर गंगा का आह्वाहन करते हुए गंगा की आरती की तथा जल श्रोतों को अक्षुण्ण साफ़ सुथरा बनाये रखने का संकल्प भी लिया जो जल संरक्षण के निहित सन्देश को लेकर महत्वपूर्ण है ।
इस बार भी यह आयोजन भीड़ भाड़ के साथ बिहार शरीफ़,स्थित धनेश्वर घाट देव दीपावली आयोजन समिति ने देवदीपोत्सव का कार्यक्रम सदस्यीय स्तर पर ही सपन्न करने का निर्णय लिया जो सफलता पूर्वक पूर्ण भी हुआ ।