स्थानीय बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी स्थित साहित्यसेवी एवं जिले के चर्चित् संगीतकार रामसागर राम जी के आवास पर 01 सितम्बर दिन शुक्रवार को प्रातःकाल शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में सामाजिक क्रांति के योद्धा क्रांतिकारी बहुजन नायक ललई सिंह यादव की 112 वीं जयंती समारोह श्रद्धापूर्वक मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने की, जबकि कार्यक्रम का संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय गजलकार व शायर नवनीत कृष्ण ने किया गया। मौके पर शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने सामाजिक न्याय के पुरोधा ललई सिंह यादव के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में शिक्षित और संगठित होकर समाज को एक साथ लाने की जरूरत है। ललई सिंह और अंबेडकर के आदर्श मार्ग पर चलकर ही उन्नत समाज का निर्माण किया जा सकता है। साथ ही साथ अंधविश्वास व ढकोसला को समाज से समाप्त करना होगा। जात-पात और जातिवाद में लोगों को नहीं रहना चाहिए, बल्कि उपेक्षित समाज को संगठित कर शैक्षणिक, बौद्धिक और सामाजिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए लोगों को काम करना होगा। उन्होंने बताया कि स्व. ललई सिंह यादव सामाजिक न्याय के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष करते रहे। सामाजिक न्याय के अपने लक्ष्य के लिए अनेक पुस्तकों की रचना की जो विवादित भी रहीं। ललई को उत्तर भारत का पेरियार कहा जाता है।
जयंती समारोह में अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासज्ञ साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि ललई सिंह यादव ने इतिहास में छुपे हुए उपेक्षित बहुजन नायकों की खोज की। बौद्ध धर्मानुयायी सम्राट अशोक उनके आदर्श व्यक्तित्वों में शामिल थे। उन्होंने ‘अशोक पुस्तकालय’ नाम से प्रकाशन संस्था कायम की और अपना प्रिन्टिंग प्रेस लगाया, जिसका नाम ‘सस्ता प्रेस’ रखा था। उन्होंने पांच नाटक लिखे- अंगुलीमाल नाटक, शम्बूक वध, सन्त माया बलिदान, एकलव्य और नाग यज्ञ नाटक। गद्य में भी उन्होंने तीन किताबें लिखीं– शोषितों पर धार्मिक डकैती, शोषितों पर राजनीतिक डकैती, और सामाजिक विषमता कैसे समाप्त हो? उनके नाटकों और साहित्य में उनके योगदान के बारे में कंवल भारती लिखते हैं कि यह साहित्य हिन्दी साहित्य के समानान्तर नई वैचारिक क्रान्ति का साहित्य था, जिसने सनातनी नायकों और सनातनी संस्कृति पर उपेक्षितों की सोच को बदल दिया था। उन्होंने ललई सिंह यादव के जीवनी पर विस्तार से चर्चा किया।
जिले के चर्चित छंदकार एवं भूतपूर्व प्रधानाध्यापक साहित्यकार सुभाषचन्द्र पासवान ने कहा कि शिक्षा के बिना मानव जीवन अधूरा है। सामाजिक परिवर्तन की पहली सिढ़ी शिक्षा है। उन्होनें ललई यादव के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ललई सिंह यादव जीवन भर समाज रूपी सिढ़ी के अतिंम पावदान पर बैठे लोगो के उत्थान के लिए संर्घष करते रहे।
नाटककार राम सागर राम ने कहा की शोषित वंचित बहुजन समाज को पाखंड अंधविश्वास से दूर करने के लिए ललई सिंह यादव ने अपना जीवन समर्पित कर दिया।मौके पर अभियंता साहित्यकार मिथिलेश प्रसाद चौहान ने कहा कि आज ललई सिंह यादव सामाजिक जागरुकता का प्रतीक हैं, लेकिन इसके लिए ललई यादव ने कितनी बड़ी कुर्बानी दी है उसका समुचित मूल्यांकन अभी भी नहीं हो पाया है।बामसेफ के जिलाउपाध्यक्ष राजेश कुमार रमन ने कहा ललई सिंह यादव सामाजिक क्रांति के नायक एवं प्रखर समाज सुधारक थे। सामाजिक क्रांति के योद्धा क्रांतिकारी ललई सिंह यादव ने आजीवन सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया तथा सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक उल्लेखनीय पुस्तकों की रचना की। इस अवसर पर शंखनाद के कोषाध्यक्ष सरदार वीर सिंह, पुनीत हरे, राधिका कुमारी आदि ने अपने-अपने सारगर्भि विचारों से अवगत कराया।