इतिहासविद् डॉ लक्ष्मीकांत सिंह की चर्चित अँग्रेज़ी उपन्यास डुकारेल्स पूर्णिया का हुआ लोकार्पण
● बिहारशरीफ की धरती पर अंतरराष्ट्रीय भाषा में लिखी गई पुस्तक का हुआ विमोचन देरशाम बिहार के बहुचर्चित इतिहासविद्, साहित्यकार, शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अँग्रेज़ी उपन्यास ‘डुकारेल्स पूर्णिया’ का लोकार्पण समारोह साहित्यिक मंडली शंखनाद कार्यालय, भैंसासुर में अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में हुआ। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि तथा कहानी के सूत्रधार बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सुबोध कुमार सिंह, जिन्हे यह किताब समर्पित किया गया है, उनके करकमलों से सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम का विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने बताया कि यह कहानी आज से ढाई सौ साल पहले पूर्णिया के तत्कालीन जिलाधिकारी जेरार्ड गुस्तावस डुकारेल के जीवन से जुड़ी सत्य घटना पर आधारित है। 1770 ईस्वी में पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल प्रेसीडेंसी के ईस्टेट (जिला) में अँग्रेज़ अधिकारियों को बतौर सुपरवाइजर (जिलाधिकारी) तैनात किया था। उसी क्रम में डुकारेल को पूर्णिया का प्रशासनिक अधिकारी बना कर भेजा गया। उस समय सम्पूर्ण उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा था।
आदमी और पशु, भोजन पानी के अभाव में मर रहे थे। आम आदमी की सहायता करने वाला कोई नहीं था। इस विकट परिस्थिति में डुकारेल ने आम किसान और मजदूरों की जीवन बचाने के लिए भगीरथ प्रयास किया और सफलता प्राप्त किया। पूर्णिया के लोगों के लिए मसीहा था। एक दिन उसने देखा जमींदार की नवयौवना विधवा को सती बनाया जा रहा था। विधवा मरना नहीं चाहती थी। इसी बीच डुकारेल वहाँ आता है और उसे वहां से बचा कर अपने आवास पर लाता है। फिर बाद में उससे शादी कर इंग्लैंड ले जाता है। यह कहानी सुबोध कुमार सिंह ने लक्ष्मीकांत सिंह को सुनाया, जिसे एक उपन्यास के रूप में देख रहे है। इस समारोह के मुख्य अतिथि सुबोध कुमार सिंह ने कहा आज बिहारशरीफ के लिए गौरवपूर्ण दिन है कि इस धरती पर किसी अंतरराष्ट्रीय भाषा में लिखी गई पुस्तक का विमोचन हो रहा है। डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह की यह कहानी एक अतीत का सच है।अँग्रेज़ो के दुराचार की बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। भारतीय अँग्रेज़ो से बहुत नफरत करते हैं और उन्हीं अँग्रेज़ो में से एक डुकारेल भी है जो भारतीयों की जीवन रक्षा के लिए संघर्ष करता है। उसके संघर्ष का जीवंत प्रमाण है पूर्णिया जिले के जलालगढ़ प्रखंड का डोकरैल गाँव, जो उसके मसीहाई व्यक्तित्व का प्रतीक है। उन्होंने बड़े भावविह्वल होकर कहा कि यह उपन्यास संघर्ष की जीवित गाथा है। इसमें तीन व्यक्तियों का संघर्ष देखा जाता है।पहला कहानी का नायक जो आम आदमी के जीवन रक्षा के लिए संघर्षरत है। दूसरा कहानी की नायिका जो अपनी जीवन रक्षा के लिए संघर्षरत है। तीसरा कहानी का लेखक जो ढाई सौ साल पुरानी घटना की सत्यता को उजागर करने के लिए संघर्षरत है। इस रचना ने समाज में प्रचलित कई मिथकों को तोड़कर एक नवीन परम्परा को जन्म दिया है। लेखक ने सिद्ध किया है कि सभी अँग्रेज़ अत्याचारी नही थे। उनमें डुकारेल जैसे लोग भी थे जो इंसान को भगवान मानते थे। कथा की नायिका चंदा ने सती प्रथा के प्रचलित मिथक को अकेले दम पर ध्वस्त किया। कहानीकार, आज ढाई सौ साल बाद डुकारेल को विश्व मानचित्र पर लाकर अँग्रेज़ो के बारे में प्रचलित मिथक तोड़ने में कामयाब हो गए। अच्छे कार्य करने वाले लोगों को इतिहास में दफन नहीं किया जा सकता। यह बात “डुकारेल्स पूर्णिया” ने साबित कर दिया कि अच्छे लोगों को इतिहास से मिटाया नहीं जा सकता है। उन्होंने बताया कि आज नहीं तो कल यह कहानी विश्व की मानक साहित्य में स्थापित होगी। इस पर फिल्म बनने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
इस अवसर पर शिक्षा शास्त्री जाहिद हुसैन ने बताया कि डुकारेल्स पूर्णिया, रेडसाईन इंग्लैंड द्वारा प्रकाशित अँग्रेज़ी उपन्यास है। इस कहानी में साहित्य के नवों रस विद्यमान है। इसमें एक अजीब कशिश है। इतिहास, भूगोल, लोक परम्परा और ग्रामीण जीवन की जीवंत भाषा-व्यवहार मौजूद है। अँग्रेज़ी में अपने तरह की बेमिसाल कृति है।
इस अवसर पर चर्चित नामचीन शायर बेनाम गिलानी ने कहा कि अच्छे बुद्धिजीवी महानगरों में ही नहीं छोटे शहर में भी होते हैं इसका जीता जागता उदाहरण हैं शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह जी। डॉ. लक्ष्मीकांत ने अपने उपन्यास “डुकारेल्स पूर्णिया” में जो मुद्दे उठाये हैं उन पर पाठकों को मनन करने की आवश्यकता है। उन्होंने ने अपने उपन्यास का ताना बाना अपने परिवेश से ही बुना है। यह उपन्यास आत्म कथात्मक नहीं है और न ही उपन्यासकार की आत्मकथा है। यह उस समयावधि का सजीव शाब्दिक चित्रांकन है। साहित्यकार अभियंता मिथिलेश प्रसाद ने कहा कि डुकारेल्स पूर्णिया, रेडसाईन इंग्लैंड द्वारा प्रकाशित अँग्रेज़ी उपन्यास का मसीहा नायक प्रधान उपन्यास है जिसका नायक अंग्रेज कलक्टर डुकारेल हैं वह इंग्लैंड वासी है तथा ग्रामीणों के कल्याण और उनके उत्थान का स्पप्न देखता है। उसका जीवन लोक कल्याण को समर्पित है। लेखिका प्रियारत्नम ने कहा कि उपन्यास का नायक अंग्रेज कलक्टर डुकारेल सही मायने में पूर्णिया क्षेत्र का मसीहा है जो आसुरी प्रवृतियों से निरंतर संघर्ष करता है। प्रस्तुत उपन्यास का कथानक संघर्षो की दास्तान है जो घटना प्रधान उपन्यासों की श्रेणी में आता है। मौके पर कार्यक्रम संचालन करते हुए शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा कि समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, शोषण, दबंगई, भूख, गरीबी, बेईमानी, पीड़ा, घुटन संत्रास आदि नें डॉ. लक्ष्मीकांत को सुबोध कुमार के प्रेरणा से भारी भरकम ऐतिहासिक उपन्यास लिखने को मजबूर किया। इस दौरान समाजसेवी धीरज कुमार, समाजसेवी सरदार वीर सिंह, शायर समर वारिस, साहित्यसेवी आर्जव कुमार, राजदेव पासवान, विजय कुमार, हिमांशु कुमार, दिव्यांशु कुमार सहित कई लोग मौजूद थे।