Saturday, September 21, 2024
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ऐतिहासिक धरोहरों का देश:  भारत विश्व के 39 वाँ विश्व विरासत दिवस पर विशेष

 राकेश बिहारी शर्मा- भारत ऐतिहासिक धरोहरों और साँस्कृतिक विरासतों का जीवंत देश है। विश्व विरासत दिवस प्रत्येक व्यक्ति के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण दिन है। हमारे पूर्वजों और पुराने समय की यादों को संजोकर रखने वाली अनमोल वस्तुओं की कीमत को ध्यान में रखकर ही संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘युनेस्को’ ने वर्ष 1983 से हर साल 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाने की शुरुआत की थी। प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत मानव सभ्यता के विकास का प्रामाणिक सबूत हैं। प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के बारे में आमजन को जागरूक और सक्रिय होना होगा। विरासत मानव सभ्यता की एक अमूल्य पूंजी भी हैं। पूरी दुनिया में मानव सभ्यता की एक हजार से अधिक बहुमूल्य विरासत हैं। हमारी संस्कृति और विरासत को बचाने के लिए हर वर्ष यूनेस्को द्वारा एक थीम जारी की जाती है। जिसका उद्देश्य लोगों को इस थीम के माध्यम से यह बताया जा सके कि हमारी संस्कृति हमारे लिए कितना महत्व रखती है। इस वर्ष यानि 2022 की थीम – विरासत और जलवायु (Heritage and Climate) रखा गया है जिसके माध्यम से हमारी विरासत और जलवायु को सुरक्षित रखा जा सके।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को की पहल पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि की गई, जो विश्व के सांस्कृतिक प्राकृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। यह संधि 1972 ई. में लागू की गई। प्रारंभिक रूप से धरोहर स्थलों को शामिल किया गया। जिसमें वह धरोहर स्थल जो प्राकृतिक रूप से संबद्ध हो अर्थात् प्राकृतिक धरोहर स्थल एवं दूसरे सांस्कृतिक धरोहर स्थल तथा तीसरा मिश्रित धरोहर स्थल। 1982 में ट्यूनीशिया में अंतरराष्ट्रीय स्मारक और स्थल दिवस पर विश्व भर में विरासत दिवस मनाने की बात हुई। यूनेस्को के महासम्मेलन में इसके अनुमोदन के बाद 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस के रूप में मनाने के लिए घोषणा की गई। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 के अनुसार ‘यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि यह अपनी समृद्ध मिश्रित सांस्कृतिक विरासत का सम्मान और संरक्षण करें।
ऐतिहासिक धरोहरों का देश:  भारत विश्व के 39 वाँ विश्व विरासत दिवस पर विशेष
बीता हुआ कल यूं तो वापस नहीं आता लेकिन अतीत के पन्नों को हमारी विरासत के तौर पर कहीं पुस्तकों तो कहीं इमारतों के रुप में संजो कर रखा गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए निशानी के तौर पर तमाम तरह के मकबरे, मस्जिद, मंदिर और अन्य चीजों का सहारा लिया जिनसे हम उन्हें आने वाले समय में याद रख सकें। लेकिन वक्त की मार के आगे कई बार उनकी यादों को बहुत नुकसान हुआ है। किताबों, इमारतों और अन्य किसी रुप में सहेज कर रखी गई यादों को पहले हमने भी नजरअंदाज कर दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी अनमोल विरासत हमसे दूर होती गई। एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने 1968 में विश्व प्रसिद्ध इमारतों और प्राकृतिक स्थलों की रक्षा के लिए एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र के सामने 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान रखा गया, जहाँ ये प्रस्ताव पारित हुआ। इस तरह विश्व के लगभग सभी देशों ने मिलकर ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों को बचाने की शपथ ली। “यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर” अस्तित्व में आया। 18 अप्रैल 1978 में पहले विश्व के कुल 12 स्थलों को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया गया। इस दिन को तब ‘विश्व स्मारक दिवस’ के रूप में मनाया जाता था। लेकिन यूनेस्को ने वर्ष 1983 नवंबर माह में इसे मान्यता प्रदान की और इस दिवस को “विश्व विरासत या धरोहर दिवस” के रूप में बदल दिया। वर्ष 2011 तक सम्पूर्ण विश्व में कुल 911 विश्व विरासत स्थल थे, जिनमे 704 ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक, 180 प्राकृतिक और 27 मिश्रित स्थल थे।
वक्त रहते हमने अपनी विरासत को संभालने की दिशा में कार्य करना शुरु कर दिया। पुरानी हो चुकी जर्जर इमारतों की मरम्मत की जाने लगी, उजाड़ भवनों और महलों को पर्यटन स्थल बना उनकी चमक को बिखेरा गया, किताबों और स्मृति चिह्नों को संग्रहालय में जगह दी गई। पर विरासत को संभालकर रखना इतना आसान नहीं है। हम एक तरफ तो इन पुराने इमारतों को बचाने की बात करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ हम उन्हीं इमारतों के ऊपर अपने नाम लिखकर उन्हें गंदा भी करते हैं। अपने पूर्वजों की दी हुई अनमोल वस्तु को संजो कर रखने की बजाय उसे खराब कर देते हैं।
भारत में, हमारे पास विरासत के जीवंत पैटर्न एवं पद्धतियों के अनमोल एवं अपार भंडार हैं। 1400 बोलियों तथा औपचारिक रूप से मान्य्ता प्राप्तं 18 भाषाएं, विभिन्ना धर्मों, कला, वास्तुरकला, साहित्यु, संगीत और नृत्यर की विभिन्न  शैलियां, विभिन्ना जीवनशैली, प्रतिमानों के साथ, भारत विविधता में एकता के अखंडित स्व रूप वाला सबसे बड़े प्रजातंत्र का प्रतिनिधित्वर करता है, शायद विश्वत में यह सर्वत्र अनुपम है।
भारत एक ऐसा देश है जिस पर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि जैसे आर्यों, गुप्तों, मुगलों, अंग्रेजों इत्यादि के शासकों द्वारा शासन किया गया है और उन सभी ने स्मारकों और स्थलों के रूप में भारतीय मिट्टी पर अपने निशान छोड़े हैं। चाहें वो शाहाजहां द्वारा बनाया गया प्रेम का प्रतिक ताजमहल हो या लालकिला, कुतुबद्दीन द्वारा बनाया गया कुतुबमीनार हो या चारमीनार, हुमायु टोंब हो या छत्रपति शिवाजी टर्मिनल यह सब धरोहरें हमें भारत की प्राचीन संस्कृति से परिचित कराती है। इनके संरक्षण के कारण ही यह अब तक सुरक्षित व पुनर्जीवित हैं। विश्व धरोहर दिवस में इन विभिन्न सभ्यताओं से जुड़ने का एक अवसर उपलब्ध कराता है। भारत के तो हर घरोहर के पीछे एक बड़ा इतिहास छिपा है। जो भारत को विश्व के सामने स्वंय को प्रस्तुत करने का अवसर उपलब्ध कराता है।
विश्व विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त स्थलों के महत्व, सुरक्षा और संरक्षण के प्रति जागरुकता फैलाने के मकसद से ही यह विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। दरअसल यह एक मौका है जब हम लोगों को बताएं कि हमारी ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाए रखने के लिए कितनी कोशिश हो रही है। साथ ही यह दिन यह भी बताता है कि हमारी यह धरोहरों को अब कितने रखरखाव की जरूरत है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए निशानी के तौर पर तमाम तरह के मक़बरे, मस्जिदें, मंदिर और अन्य चीज़ों का सहारा लिया, जिनसे हम उन्हें आने वाले समय में याद रख सकें। लेकिन वक्त की मार के आगे कई बार उनकी यादों को बहुत नुकसान पहुँचा। किताबों, इमारतों और अन्य किसी रूप में सहेज कर रखी गई यादों को पहले स्वयं हमने भी नजरअंदाज किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी अनमोल विरासत हमसे दूर होती गईं और उनका अस्तित्व भी संकट में पड़ गया। इन सब बातों को ध्यान में रखकर और लोगों में ऐतिहासिक इमारतों आदि के प्रति जागरुकता के उद्देश्य से ही ‘विश्व विरासत दिवस’ की शुरुआत की गई। विश्व धरोहर या विरासत सांस्कृतिक महत्व व प्राकृतिक महत्व के वह स्थल होते है जो बहुत ही जरूरी होते हैं। कई ऐसे स्थल जो ऐतिहासिक व पर्यावरण के रूप में जरूरीमाने जाते हैं। इन स्थलों का अंतरराष्ट्रीय महत्व भी होता हैं व साथ ही इन्हे बचाने के लिए लगातार कोशिश किए जाते हैं। ये धरोहर हमारी संस्कृति को दर्शाती हैं व हमारे इतिहास के बारे में जानकारी देती हैं। हमारे इतिहास या हमारी विरासत को बचाने के लिए कदम उठाने जरुरी हैं। विश्व धरोहरों की जरुरतों और उन्हें सरंक्षण देने की आवश्यकता को समझते हुए आज उनकी देखभाल अच्छे से की जा रही है। हम अपनी संस्कृति तो खो ना दें इस उद्देश्य से पुरानी हो चुकी जर्जर इमारतों की मरम्मत की जाने लगी गहै, उजाड़ भवनों और महलों को पर्यटन स्थल बनाकर उनकी चमक को बिखेरा गया है। किताबों और स्मृति चिह्नों को संग्रहालय में जगह दी गई है,। लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी इन धरोहरों की कद्र नहीं कर रहे हैं वो इन पर संदेश लिखकर इनकी सुंदरता को खराब कर रहें है। पान, गुटखा इत्यादि खाकर इन पर थूक के गन्दगी के निशान छोड़ रहें है। यह धरोहरें बहुत अमूल्य है हमें इनका सम्मान करना चाहिए।
विश्व विरासत दिवस से किसी भी राष्ट्र का इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है। जिस देश का इतिहास जितना गौरवमयी होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही ऊँचा माना जाएगा। वैसे तो बीता हुआ कल कभी वापस नहीं आता, लेकिन उस काल में बनीं इमारतें और लिखे गए साहित्य उन्हें हमेशा सजीव बनाए रखते हैं। विश्व विरासत के स्थल किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और उसकी प्राचीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण परिचायक माने जाते हैं। दुनियाभर में कुल 1052 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें से 814 सांस्कृति, 203 प्राकृतिक और 35 मिश्रित स्थल है। भारत में फिलहाल यूनेस्को ने कुल 40 विश्व धरोहरें घोषित की है। इनमें 07 प्राकृतिक, 32 सांस्कृतिक और 01 मिश्रित स्थल हैं।
भारत में विरासत स्थल- आगरा का लालक़िला, अजन्ता की गुफाएं, एलोरा गुफाएं, ताजमहल, महाबलीपुरम के स्मारक, कोणार्क का सूर्य मंदिर, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, केवलादेव नेशनल पार्क, मानस अभयारण्य, गोवा के चर्च, फ़तेहपुर सीकरी, हम्पी के अवशेष, खजुराहो मंदिर, एलिफेंटा की गुफाएँ, चोल मंदिर तमिलनाडु, पट्टदकल्लु के स्मारक, सुन्दरवन नेशनल पार्क, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान-फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान, सांची का स्तूप, हुमायूं का मक़बरा, क़ुतुब मीनार, बोधगया का महाबोधि, माउन्टेन रेलवे ऑफ़ इंडिया, भीमबेटका की गुफाएं, चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्विक उद्यान, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ऋग्वेद की पाण्डुलिपियाँ, जयपुर शहर, जंतर- मंतर जयपुर, लाल क़िला दिल्ली, वेस्टर्न घाट्स (प्राकृतिक), राजस्थान के किले, रानी की वाव, ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क कंज़र्वेशन एरिया, कंचनजंगा नेशनल पार्क, नालंदा एवं महावीर, अहमदबाद का ऐतिहासिक शहर, विक्टोरिया गोथिक एंड आर्ट मुंबई, कालेश्वर मंदिर, हड़प्पा सभ्यता का शहर हैं। विरासत में मिले स्थल चाहे वे हमारे देश की या विदेशी भूमि से संबंधित हों उनका सम्मान किया जाना चाहिए और उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। इसलिए एक विशिष्ट दिन यानी 18 अप्रैल को समृद्ध सांस्कृतिक संपदा की विविधता के बारे में लोगों की चेतना को बढ़ाने और इन स्थलों की भेद्यता के बारे में जागरूक करने के लिए विश्व विरासत स्थलों को यह दिवस समर्पित किया गया है।
विश्व विरासतों की श्रेणी में अधिकांश विरासत सांस्कृतिक और प्राकृतिक हैं। जिनमें से 40 धरोहर तो भारत में ही स्थित हैं। राजगीर का साइक्लोपियन वॉल दुनिया का सबसे पुरानी दीवार है। इसे भी विश्व धरोहर की श्रेणी में शामिल करना चाहिए। राजगीर का साइक्लोपियन वॉल को भी विश्व धरोहर में शामिल कराने के लिये सामुहिक प्रयास की जरूरत है। बिहार के ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन अवशेषों को यूनेस्को ने विश्व विरासत की सूची में शामिल किए जाने की घोषणा 15 जुलाई 2016 को किया था। बिहार में ऐतिहासिक विरासतों की भरमार है। वैशाली, राजगीर, नालंदा, बोधगया, कृणिला नगर (लखीसराय), बलराजगढ़ (मधुबनी), राजगीर का गृद्धकूट पर्वत, हिरण्य पर्वत, घोड़ाकटोरा, अजातशत्रु किला मैदान जैसी विरासत अपने आप में गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है। भारत में बिहार का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। यहां सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों की भरमार है। लेकिन आज की युवा पीढ़ी उन्हें भूलती जा रही है। विरासतों व धरोहरों को सहेजने के लिए लोगों को जागरूक और जिले में छिपे हुए धरोहरों के बारे में लोगों को लिपिबद्ध कर बताना होगा। नालंदा की धरती ऐतिहासिक, धार्मिक स्थलों से पूरी पटी हुई है। इनको संरक्षित करके पर्यटन से जोड़ा जाए तो नालंदा प्रदेश का ही नहीं बल्कि देश का पर्यटन हब बनेगा।
नालंदा जिला के तेल्हाडा में पुरातत्वविदों की देख रेख में उत्खनन का कार्य जारी है, लेकिन यह कार्य धीमी गति से हो रहा है। पुरातत्वविदों द्वारा उत्खनन का कार्य बड़ी बारीकी से कराया जा रहा है। उत्खनन के दौरान तेल्हाडा गढ़ में मिट्टी के बर्तन के अवशेष कई मूर्तियाँ भी मिले हैं, जिनको पुरातत्वविदों द्वारा एकत्र कर पटना संग्रहालय में रखा गया है। विरासतें हमारे इतिहास एवं संस्कृति की साक्षी होती है।
दुनियाभर में ऐसी कई इमारतें या गुफाएं हैं, जिन्हें देख कर यह यकीन नहीं होता कि उन्हें इंसान ने बनाया है। हैरत तब होती है, जब यह सोचते हैं कि उस समय तो आज की तरह मशीनें और तकनीक भी नहीं थी। ये इमारतें न सिर्फ देखने में सुंदर हैं, बल्कि हमें अपने देश और संस्कृति की जानकारी भी देती हैं। ऐसी ही ऐतिहासिक विरासतों को बचा कर रखने के लिए यूनेस्को ने चुनिंदा इमारतों को विश्व विरासत का दर्जा देना शुरू किया है।
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