Tuesday, December 24, 2024
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पहले भी कई बार देश में जातिगत जनगणना हो चुकी है~ सांसद कौशलेंद्र

नालंदा के सांसद श्री कौशलेन्द्र कुमार ने नियम-377 के तहत लोकसभा में कहा कि हमने पहले भी जातिगत जनगणना का मामला उठाते हुए कहा है कि हमारा देश जातिगत समाज है। तो प्रश्न यह उठता है कि किन-किन जातियों की संख्या कितनी है। क्योंकि संख्या बल ही समाज में उस जाति के अस्तित्व का निर्धारण करेगा। मुख्यतः आरक्षण को ही आधार मान लिया जाए तो अजा/अजजा/ओबीसी और जनरल कैटेगरी की व्यवस्था हमारे संविधान में दिया गया है। यह संविधान की मूल व्यवस्था और भावना में भी निहित है। अगर देश में जाति आधारित जनगणना कर आँकड़े जुटा लिए जाएं, तो यह आसान होगा कि आरक्षण व्यवस्था एवं अन्य सरकारी सुविधाओं में किसी कैटेगरी की अनेदेखी तो नहींे की जा रही है।श्री कुमार ने कहा कि इसी को आधार मानकर हमारे नेता एवं मा0 मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी यह माँग उठाते आ रहे हैं कि एक बार केन्द्र सरकार जातिगत आधारित जनगणना अवश्य कर ले। इससे सारी स्थिति साफ हो जायेगी और किसी प्रकार का जो दुविधा (कंफ्युजन) लोगों में हो रहा है वह समाप्त हो जायेगा। जातिगत जनगणना के विषय में बिहार विधान मंडल से वर्ष, 2019 और 2020 में दो-दो बार सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र सरकार से आग्रह किया है कि देश में अगली जनगणना में जातिगत आधार को भी शामिल किया जाये। मा.सांसद महोदय ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पहले कभी जातिगत जनगणना नहीं हुई है। 1931 में पहली बार ब्रिटिश सरकार द्वारा ऐसी ही जनगणना हुई थी। इसमें यह तथ्य सामने आये कि ओ.बी.सी. 52 प्रतिशत, एस.सी. 15.5 प्रतिशत और एस.टी. लगभग 7 प्रतिशत की आबादी के अनुपात में हैं। सम्भवतः यही आधार मंडल कमीशन में भी आया था। यूपीए सरकार द्वारा वर्ष 2011 में सोसियो इकोनामिक और जाति आधारित जनगणना कराई गई। किन्तु सरकार इसे पूर्णरूपेण प्रकाशित नहीं कर रही है। कुछ पैरा तो प्रकाशित किये गये, लेकिन जातिगत आँकड़ों को रोक लिया गया है। काफी हो-हल्ला के बाद फिर 2014 में इसे नीति आयोग को विश्लेषण के लिए सौंपा गया। तथा बाद में सामाजिक न्याय और अधिकारिता एवं जनजातीय मंत्रालय की एक एक्सपर्ट कमेटी गठित कर उसको निगरानी दी गई। अब कहा जा रहा है कि आँकड़े त्रुटिपूर्ण हैं और इससे सही आँकड़े पर पहुंचना मुश्किल है।

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