Monday, December 23, 2024
Homeकेंद्रीयसीएए नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है

सीएए नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है

सीएए नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है ललित गर्ग की कलम से..

संसद में 11 दिसंबर, 2019 को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम अर्थात सीएए पारित होने के लगभग चार वर्ष के इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने इसे लोकसभा चुनाव से पूर्व देश भर में लागू करके न केवल अपने राजनीतिक आलोचकों को अचंभित किया है, बल्कि देश अपने लोगों की न्यायपूर्ण नागरिकता सुनिश्चित करने की जरूरी दिशा में बढ़ चला है। यह कानून भारत की नागरिकता को संतुलित, औचित्यपूर्ण एवं समतामूलक बनाने की दिशा में साहसिक कदम है। इस नए कानून का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों से आने वाले मुस्लिमों को अब भारत में सहजता से नागरिकता नहीं मिलेगी, जबकि इन देशों से आने वाले हिंदू, सिख, ईसाई व अन्य धर्म के लोगों को सहजता से नागरिकता हासिल हो जाएगी। कानून के तहत पात्र लोग नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। गौर करने की बात है कि पिछले दिनों से विपक्षी दलों के अनेक नेता सीएए को लागू करने का विरोध करते हुए एक वर्ग-विशेष के लोगों को अपने पक्ष में करने की कुचेष्ठा कर रहे हैं। जबकि भाजपा सरकार एवं उससे जुड़े शीर्ष नेतृत्व इसे लागू होने के संकेत दे रहे थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि आम चुनाव से पहले ही सीएए को लागू कर दिया जाएगा और जो कहा, उसे कर दिखाया है। चुनाव की घोषणा के ठीक पहले सीएए को लागू कर सरकार ने अपना एक वादा पूरा कर दिया है। अब इसे लागू करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से एक सार्थक पहल का सूत्रपात किया है।

सीएए नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है
सीएए पारित हो गया था और इस कानून को अधिसूचित भी कर दिया गया था, पर इसके लिए लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले देश में नागरिकता नियम तय नहीं हुए थे। कानून बन जाने के बाद नियम तय करना जरूरी होता है और नियम तय करने के लिए सरकार लगातार समय ले रही थी। इस वजह से सरकार की आलोचना भी हो रही थी। बहरहाल, नियम न तय होने से आगे नई लोकसभा में तकनीकी परेशानियां आ सकती थीं, अतः केंद्र सरकार ने चुनाव से ठीक पहले इस कार्य को अंजाम देकर एक तरह से अपना ही अधूरा काम पूरा किया है, एक साहसिक एवं समयोचित कदम उठाया है। यह पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं बंगलादेश से आये हिंदू, सिख, ईसाई व अन्य धर्म के लोगों के लिये एक नये सूरज का उदय है। आगामी चुनाव एक तरह से सीएए पर जनमत संग्रह जैसा होगा। यहां यह याद करने की बात है कि सीएए लागू करने का वादा पिछले लोकसभा चुनाव और पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ओर से उठाया गया प्रमुख मुद्दा था और इससे भाजपा को चुनाव में बहुत फायदा भी हुआ था। सीएए के सन्दर्भ में राजनीति से अलग होकर सोचना ज्यादा जरूरी है। जो मजबूर लोग पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश से भारत में आए हुए हैं, उनकी समस्याओं का समाधान देश के लिए प्राथमिकता होनी ही चाहिए। भूलना नहीं चाहिए, नागरिकता का तार्किक व मानवीय दृष्टिकोण इस देश की ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की संस्कृति का अंग है।
सीएए के कारण भले ही तथाकथित अराष्ट्रवादी ताकतें एवं विपक्षी दल हिंसा एवं अराजकता का माहौल बना सकते हैं, लेकिन यह कानून एक आदर्श नागरिकता कानून है, लम्बे समय से इस कानून की जरूरत को महसूस करते हुए अनेक नागरिक घुटन एवं असंतुलित नागरिकता कानून के दंश को भोग रहे थे। व्यक्ति जिस समाज में जीता है, उसकी व्यवस्थाओं, नीतियों और परम्पराओं में जब घुटन का अनुभव करता है तो वह किसी नए मार्ग का अनुसरण करता है। आज आजादी के बाद की राजनीतिक विसंगतियों से पनपी ऐसी ही घुटन से नागरिकों को बाहर निकालने के प्रयत्न वर्तमान सरकार द्वारा हो रहे हैं। ऐसा ही एक विशिष्ट उपक्रम है सीएए। इसको लेकर भी गुमराह किया जा रहा है, राष्ट्र की एकता को विखंडित करने के प्रयास हो रहे हैं। सीएए को लेकर मुस्लिम समाज को भ्रमित करने की साजिश हुई है और चुनावी माहौल में यह और तीव्रता से होने की संभावना है। राजनीतिक लोग सीएए को मुस्लिम विरोधी बताने में लगे हुए हैं। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि जिस कानून का किसी भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं, उसे लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों को सड़कों पर उतार दिया गया या फिर से उतारने के स्वर गूंजने लगे हैं। एक सुनियोजित साजिश के तहत लोगों को गुमराह किया गया है, यह साजिश जिस किसी ने भी रची हो, लोगों और खासकर मुस्लिम समाज को भड़काने का काम अनेक विपक्षी दलों ने किया। इनमें कांग्रेस सरीखे वे दल भी थे, जो एक समय इस कानून में वैसे ही संशोधन करने की मांग कर रहे थे, जैसे किए गए। राजनीतिक दलों के साथ-साथ तथाकथित सेक्युलर तत्वों और वामपंथी बुद्धिजीवियों ने भी यह भ्रम फैलाया कि सीएए कुछ लोगों की नागरिकता छीनने का काम कर सकता है, जबकि यह कानून तो नागरिकता देने के लिए है।
सीएए का विरोध करने वाले राजनेताओं एवं उनके उकसाये लोगों को देश से जैसे कोई मतलब नहीं, इन्हें सिर्फ अपना जनाधार चाहिए। वोट चाहिए। वोटों की संकीर्ण एवं स्वार्थी राजनीति के चलते राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता को तार-तार किया जा रहा है? इन कानूनों में किसी के अहित की बात नहीं है, बल्कि जिनका अहित हुआ है, उनका हित निहित है, फिर क्यों बवाल है? पहले किसी भी गलत बात के लिए ”विदेशी हाथ“ का बहाना बना दिया जाता था। अब कौन-सा हाथ है? कौन चक्र चलाता है? कौन विरोधी स्वर घोलता है? आश्चर्य की बात यह कि जब पिछले दिनों सीएए-एनआरसी को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हुआ तो एक सुर में कहा गया कि यह कांग्रेस ही है जो लोगों को भड़का रही है। यानी यह तो तय है कि कांग्रेस की उपस्थिति देश भर में है और उसका असर जनता के एक बड़े तबके पर है। इस बात को स्वीकारते हुए कांग्रेस की ताकत को इग्नोर करना राजनीति अपरिपक्वता को ही दर्शाता है। कांग्रेस अपनी जमीन मजबूत कर रही है, धीरे-धीरे वह अपनी खोई प्रतिष्ठा एवं जनाधार को हासिल करने में लगी है। इन स्थितियों को पाने के लिये वह सभी हदें पार कर रही है, मूल्यों एवं नीतियों को भी नजरअंदाज करने में भी उसे कोई संकोच एवं परहेज नहीं है।
भारत का विभाजन मुस्लिमों की अलग राष्ट्र की मांग की वजह से हुआ था, अतः जिन मुस्लिमों ने भारत छोड़कर अलग देश में रहना चुना, उन्होंने भारत की नागरिकता मांगने का हक खो दिया। दूसरी ओर, सीएए का विरोध करने वालों का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिमों के साथ भारतीय नागरिकता देने में भेदभाव नहीं होना चाहिए। एक तर्क यह भी है कि धर्मनिरपेक्ष भारत में नागरिकता का फैसला किसी की आस्था के आधार पर नहीं होना चाहिए। बहरहाल, अपने देश में धर्म की राजनीति नई नहीं है, इसके पक्ष और विपक्ष में लगभग हर पार्टी राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। इतनी देरी से इस कानून को लागू करने का एक कारण उसका बड़े पैमाने पर विरोध किया जाना दिखता है, देश में अराजकता, हिंसा एवं अशांति की संभावना को देखते हुए ही सरकार ने इसे उचित समय पर लागू करने का सोचा। यह उग्र एवं गैरवाजिब विरोध इस शरारत भरे दुष्प्रचार की देन था कि यदि यह कानून लागू हुआ तो देश के मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी। इस दुष्प्रचार में कथित सिविल सोसायटी के लोग ही नहीं, कई राजनीतिक दल भी शामिल थे। वे जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को भड़काकर उसे सड़कों पर उत्तार रहे थे, जबकि इस कानून का किसी भी भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं। वास्तव में यह नागरिकता छीनने का नहीं, बल्कि देने का कानून है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments