Thursday, September 19, 2024
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बिहार आज अपनी 112 वीं वर्षगांठ मना रहा है,चक्रवर्ती समाट अशोक ने भी बिहार की धरती पर किया राज

राकेश बिहारी शर्मा-प्राचीन काल में बिहार दुनिया भर के सीखने वालों के लिए शिक्षा का केंद्र था. पाटलिपुत्र भारतीय सभ्यता का गढ़ था तो नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी। बिहार आज अपनी 112 वीं वर्षगांठ मना रहा है। आज ही के दिन (22 मार्च) 1912 में इस राज्य की स्थापना हुई थी। हमारे भारत देश पर साल 1947 से पहले अंग्रेजों का शासन था। तब अंग्रेजों ने उनके शासन के दौरान हमारे भारत देश में बहुत सारे बदलाव किए थे। उन्ही बदलावों में से एक है बिहार राज्य की स्थापना। बिहार के इतिहास के बिना भारत का इतिहास अधूरा है। बिहार के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने, उन्हें संरक्षित करने की जरूरत है, ताकि परंपरा को प्रगति से जोड़ कर इतिहास को आगे ले जाया जा सके। आखिर इतिहास सिर्फ पढ़ने नहीं, बल्कि समाज को समझने और उसे बदलने का भी उपकरण है। अपने अतीत को जानना इसलिए जरूरी है कि इससे हमें गौरव बोध होता है और भविष्य गढ़ने में मदद मिलती है। गौरवशाली इतिहास हमें प्रेरणा देता है, तो कोई काल खंड गलतियां न दोहराने का सबक भी देता है।

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विहार से बिहार बनने का रोचक इतिहास

बिहार राज्य का नाम बिहार कैसे पड़ा, बिहार नाम बौद्ध विहारों के विहार शब्द से हुआ है जिसे विहार के स्थान पर इसके विकृत रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह राज्य गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा हुआ है। यह भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। विहार शब्द (संस्कृत और पाली शब्द) विहार (मठ या Monastery) से बना। विहार बौद्ध संस्कृति का जन्म स्थान है, जिस वजह से इस राज्य का नाम पहले विहार था और फिर उसके बाद बिहार बना। बिहार से ही बुद्ध और जैन धर्म की उत्पत्ति हुई। बिहार में ही भगवान बुद्ध और महावीर का जन्म हुआ। बिहार को पहले मगध नाम से जाना जाता था। बिहार की राजधानी पटना का नाम पहले पाटलिपुत्र था। बिहार में ही दुनिया के सबसे पुराना विश्वविद्यालय (नालंदा यूनिवर्सिटी) है। 12वीं शताब्दी के बाद इस खूबसूरत स्थान के साथ तोड़-फोड़ कर नुकसान पहुंचाया गया। इस स्थान के खंडहर हो जाने के बावजूद साल 2016 में इस स्थान को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज (UNESCO World Heritage) में शामिल किया गया। बिहार की मिट्टी ने गौतम बुद्ध, आचार्य चाणक्य जिनकी नीति पर आज भी कई राजनेता चलते हैं, भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, विक्रमादित्य और चक्रवर्ती सम्राट अशोक भी बिहार के ही थे। विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट तथा यौन संबंधों पर लिखी गई सबसे मशहूर किताब कामसूत्र को लिखने वाले लेखक वात्स्यायन भी बिहार के ही थे। सिखों के 10 वें गुरु (गुरु गोबिंद सिंह) का जन्म भी बिहार में हुआ। हरमिंदर तख्त (पटना साहिब) पटना में है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी जो की भारत के प्रथम राष्ट्रपति जैसे कई महापुरुषों और वीर सपूतों को दुनियां को दिया है। बिहार के वैशाली जिले को दुनिया का पहला गणतंत्र माना जाता है और इसी जगह पर भगवान महावीर का जन्म हुआ था। ब्रिटिश हुकूमत ने 22 मार्च, 1912 को बंगाल प्रेसीडेंसी से बिहार को अलग कर दिया था। इसी दिन की याद में बिहार दिवस मनाया जाता है। माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार द्वारा शुरू किया गया यह दिवस पहली बार 2010 में मनाया गया था।

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वैदिक काल में बिहार और राजगृह मगध साम्राज्य की राजधानी

प्रारंभिक वैदिक काल में बिहार के मैदान कई राज्यों का घर थे। गंगा के उत्तर का क्षेत्र राजा विदेह के नाम से जाना जाता था, जो भगवान राम की पत्नी राजकुमारी सीता के पिता और भारत के दो महान हिंदू महाकाव्यों में से एक रामायण के नायक थे। उसी समय के दौरान राजगृह प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी के रूप में कार्य करता था। (अब राजगीर)। बिहार क्षेत्र का सबसे पहला इतिहास संदर्भ हिंदू पौराणिक महाकाव्य रामायण में पाया जा सकता है। मिथिला पुरुषोत्तम राम की पत्नी सीता की जन्मभूमि थी। बिहार में पहला साम्राज्य बिम्बिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु द्वारा स्थापित किया गया था। इस अवधि के दौरान बिहार में दो महान संतों गौतम बुद्ध और जैन महावीर का जन्म हुआ, जिन्होंने क्रमशः बौद्ध धर्म और जैन धर्म के दो महान धर्मों का प्रचार किया। चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे कुछ सबसे योग्य शासकों के अधीन मौर्य साम्राज्य मगध साम्राज्य के नाम से फला-फूला, जिसकी राजधानी बिहार में पाटलिपुत्र थी। बिहार में भारतीय और विदेशी छात्रों को शिक्षा प्रदान करने वाले अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के रूप में नालंदा और विक्रमशिला का विकास देखा गया।

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चक्रवर्ती समाट अशोक ने भी बिहार की धरती पर किया राज

अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य (चाणक्य) का जीवन भी बिहार की धरती पर ही व्यतीत हुआ था। चाणक्य मगध के राजा चंद्रगुप्ता मौर्य के सलाहकार और महामंत्री थे। 302 ईसा पूर्व यूनान के महान सम्राट एलेक्जेंडर (सिकंदर) का दूत मेगास्थनीज और सेनापति सेल्युकस नेक्टर ने भी मौर्यकालीन पाटलीपुत्र में काफी समय बिताया। 270 ईसा पूर्व चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान ने भी बिहार की धरती पर राज किया। भारत के राष्ट्रीय निशान अशोक स्तंभ है और राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र चक्रवर्ती सम्राट अशोक की ही देन है।

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मध्यकालीन इतिहास में बिहार अपने आप में खास था

मुगल काल में दिल्ली सत्ता का केंद्र बन गया, तब बिहार से एक ही शासक शेरशाह सूरी काफी लोकप्रिय हुआ। आधुनिक मध्य-पश्चिम बिहार का सासाराम शेरशाह सूरी का केंद्र था। शेरशाह सूरी को उनके राज्य में हुए सार्वजनिक निर्माण के लिए भी जाना जाता है।

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लंबे समय तक भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है बिहार

बिहार लंबे समय तक भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है। इसी तरह बिहार पुरातन काल से सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है। महात्मा बुद्ध के काल से यदि शुरू किया जाये, तो उस समय हर्यक वंश का शासन था। बिम्बिसार इस वंश के राजा थे। उनके पुत्र अजातशत्रु ने अपने शासन का विस्तार भारत के बड़े भू-भाग पर किया था। इसके बाद नंद वंश का शासन रहा। अधिकतर क्षेत्र में उसका शासन रहा था। फिर मौर्य वंश का शासन आया। इसके राजा चंद्रगुप्त ने अपने गुरु कौटिल्य (चाणक्य) जो चंद्रगुप्त के महामंत्री थे। वे कौटिल्य या विष्णुगुप्त नाम से भी विख्यात हैं। के साथ मिल कर चंद्रगुप्त ने शासन का विस्तार किया। और गुप्त वंश के शासन में समृद्धि आयी। इसी तरह उत्तर वैदिक काल में जायें, तो वैदिक साहित्य, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, महाकाव्य आदि की रचनाएं बिहार में ही हुई। मिथिला के राजा का दरबार काफी समय तक पूरे भारत की सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा था। वहां दार्शनिक शास्त्रार्थ और ज्ञान प्राप्ति के लिए आते थे। इसके प्रमाण प्राचीन साहित्य में भरे पड़े हैं। ऐतिहासिक घटनाओं के अनुसार 22 अक्टूबर, 1764 को बक्सर का युद्ध हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और बंगाल के नवाब, अवध के नवाब, और मुगल राजा शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच में लड़ा गया था। लड़ाई बक्सर में लड़ी गई थी और ईस्ट इंडिया कंपनी को इसमें बड़ी जीत हासिल हुई। बंगाल के मुगलों और नवाबों की हार के कारण बंगाल के मुगलों और नवाबों ने प्रदेशों पर नियंत्रण खो दिया और दीवानी के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी को राजस्व के संग्रह और प्रबंधन का अधिकार मिल गया था। उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश का वर्तमान इलाका शामिल था। वर्ष 1911 में, किंग जॉर्ज पंचम का दिल्ली में राज्याभिषेक किया गया और ब्रिटिश भारत की राजधानी दिल्ली को बना दिया गया।

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वर्ष 1912 में थॉमस गिब्सन कारमाइकल ने बंगाल से बिहार को अलग किया

21 मार्च 1912 को थॉमस गिब्सन कारमाइकल ने बंगाल के नए गवर्नर का पद संभाला और घोषणा की कि अगले दिन 22 मार्च से बंगाल प्रेसीडेंसी को बंगाल, उड़ीसा, बिहार और असम के चार सुभाषों में भाषाओं के आधार पर विभाजित किया जाएगा। वर्ष 1912 में बंगाल प्रांत से अलग होने के बाद बिहार और उड़ीसा एक समवेत राज्य बन गए, जिसके बाद भारतीय सरकार के अधिनियम, 1935 के तहत बिहार और उड़ीसा को अलग-अलग राज्य बना दिया गया। 1947 में आजादी के बाद भी एक राज्य के तौर पर बिहार की भौगौलिक सीमाएं ज्यों की त्यों बनी रही। इसके बाद 1956 में भाषाई आधार पर बिहार के पुरुलिया जिले का कुछ हिस्सा पश्चिम बंगाल में जोड़ दिया गया। इसलिए ही 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार का योगदान

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार का बहुत बड़ा योगदान रहा है। बिहार से ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की थी। गांधीजी के पहले आंदोलन की शुरुआत भी चंपारण से ही हुई थी। अंग्रेजों ने गांधी जी की बिहार यात्रा के दौरान उन्हें मोतीहारी में जेल भी भेज दिया था। आजादी के बाद जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन को कौन भुला सकता है। जेपी आंदोलन न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को साथ लेकर चला। बिहार की राजनीति और सामाजिक स्थिति में इसके बाद काफी बदलाव हुए।

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बिहारी पत्रकार बिहार प्रांत बनाने के लिए काफी संघर्ष किया

बिहार के इतिहास मे 12 दिसम्बर 1911 का दिन भी मील का पत्थर साबित हुआ है। ब्रिटिश शासन में बिहार, बंगाल प्रांत का हिस्सा था। जिसके शासन की बागडोर कलकत्ता में थी। बिहार का इतिहास अधिवक्ता सच्चिदानन्द सिन्हा से शुरू होता है क्योंकि राजनीतिक स्तर पर सबसे पहले उन्होंने ही 12 दिसम्बर 1911 को बिहार की बात उठाई थी। अधिवक्ता सच्चिदानन्द सिन्हा जब वकालत पास कर इंग्लैंड से लौट रहे थे तब उनसे एक पंजाबी वकील ने पूछा था कि मिस्टर सिन्हा आप किस प्रान्त के रहने वाले हैं। सिन्हा ने जब बिहार का नाम लिया तो वह पंजाबी वकील आश्चर्य में पड़ गया। इसलिए क्योंकि तब बिहार नाम का कोई प्रांत था ही नहीं। उसके यह कहने पर कि बिहार नाम का कोई प्रांत तो है ही नहीं, सिन्हा जी ने कहा था, नहीं है लेकिन जल्दी ही होगा। यह घटना फरवरी, 1893 की बात है। उसके बाद एक से एक ऐसे हादसे होते गए जिसने बिहारी अस्मिता को झंकझोर कर रख दिया, एक समय ऐसा भी आया जब बिहारी युवा पुलिस के कंधे पर ‘बंगाल पुलिस’ का बिल्ला लटकाए बिहार की जमीन पर काम करना पड़ता था। उस समय बिहार की आवाज बुलंद करने के लिए चंद ही लोग थे, जिनमे महेश नारायण, अनुग्रह नारायण सिंह, नंदकिशोर लाल, राय बहादुर कृष्ण सहाय आदि प्रमुख थे। उस समय ना कोई अखबार था ना कोई पत्रकार बिहार से प्रकशित एक मात्र अखबार ‘द बिहार हेराल्ड’ था जो बिहारियों के हित के लिए बात करता था। तमाम बंगाली अखबार बिहार पृथक्करण का विरोध करते थे, कुछ बिहारी पत्रकार बिहार हित की बात तो करते थे लेकिन अलग बिहार के मुद्दे पर एकदम अलग राय रखते थे। बिहार को अलग राज्य के पक्ष में जनमत तैयार करने या कहें की माहौल बनाने के उद्देश्य से 1894 में अधिवक्ता डॉक्टर सच्चिदानन्द सिन्हा ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ बिहार को बंगाल से अलग कर गर्वनर इन काउंसिल के शासन वाला राज्य घोषित कर दिया। इसके बाद 22 मार्च 1912 को की गयी उद्घोषणा के द्वारा बंगाल से अलग कर बिहार को नए राज्य का दर्ज मिला। जिसमें भागलपुर, मुंगेर, पूर्णिया एवं भागलपुर प्रमंडल के संथाल परगना के साथ-साथ पटना, तिरहुत, एवं छोटानागपुर को शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि महामहिम रायपुर वासी सत्येन्द्र प्रसन्नो सिन्हा राज्य के प्रथम भारतीय राज्यपाल नियुक्त किए गए। मार्च 1920 में लेजिस्लेटिव काउंसिल भवन की स्थापना की गयी। 07 फरवरी 1921 को सर मुडी की अध्यक्षता में प्रथम बैठक आयोजित की गयी, जो आज बिहार विधानसभा कहलाता है। तब से प्रत्येक बिहारवासी 22 मार्च को बिहार दिवस के रुप में धुम-धाम से मनाते आ रहे हैं। सर चाल्र्स स्टूबर्स बेले, के.सी.एस.आई. राज्य के प्रथम राज्यपाल तथा उपराज्यपाल नियुक्त किए गए। 29 दिसंबर 1920 को बिहार राज्य को राज्यपाल वाला प्रांत बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उस दिन से हमारे बिहार का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है। साथ ही देश के विकास में भी बिहार उत्कृष्ट भूमिका निभा रहा है। कई मायने में हम देश को दिशा देते आये हैं। चाहे ओ खेल का क्षेत्र हो, संगीत का क्षेत्र हो, ज्ञान विज्ञान का क्षेत्र हो अथवा राजनीति का। सबो में हमारी गौरवशाली इतिहास रहा है। आर्यभट्ट, गौतम बुद्ध, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, जननायक कर्पूरी ठाकुर, डॉ सचिदानंद सिन्हा आदि सच्चे सपूत हमारे बिहार के ही हैं। जिन्होंने न सिर्फ बिहार को ही नहीं बल्कि पुरे देश को दिशा दिया है। जय-जय बिहार । जय भारत। जिओ और जीने दो। जय जगत।

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