भिखारी ठाकुर ने अस्तुरे के धुन पर सांस्कृतिक विरासत लिख डाली : राकेश बिहारी ●हर्षोल्लास से मनाई गई भिखारी ठाकुर की 136वीं जयंती, साहित्यकारों व नाई संघ ने दी श्रद्धांजलि ● जयंती पर याद किये गए भोजपुरी के महानायक भिखारी ठाकुर ●भिखारी ठाकुर अपने कला के माध्यम से पूरे विश्व में जीवित हैं
बिहारशरीफ : 19 दिसम्बर 2024 : स्थानीय बिहारशरीफ में अखिल भारतीय नाई संघ (ट्रेड यूनियन) नालंदा के तत्वावधान में 18 दिसम्बर की देरशाम बबुरबन्ना स्थित बिहारी सभागार में देश के लोकप्रिय भोजपुरी साहित्य-चूड़ामणि मगही व भोजपुरी के महानायक, लोक संगीतकार, जीवंत नाट्य निर्देशक, समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार करने वाले स्व. भिखारी ठाकुर की 137 वीं जयंती नाई संघ ट्रेड यूनियन के जिलाध्यक्ष रंजीत कुमार शर्मा की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक मनाई गई।
समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव व नाई संघ के जिला संयोजक साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि भिखारी ठाकुर ने नीचे रह कर भोजपुरी भाषा एवं संस्कृति को जो ऊंचाई प्रदान की वह अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर ने नाई का पेशा करते हुए अस्तुरे के धुन पर सांस्कृतिक विरासत लिख डाली ऐसे महान विभूति को आज तक सरकार द्वारा उचित सम्मान नही मिल पाया जो खेदपूर्ण है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार उनके कला से प्रभावित होकर उन्हें रायबहादुर की उपाधि प्रदान की थीं। भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। उनका जन्म सारण जिले के कुतुबपुर दियारा में हुआ था। हालांकि वे काफी कम पढ़े लिखे थे लेकिन उनकी शैली और बात करने का तरीका ठेठ गवई स्टाइल का था, जिससे उनकी बातें लोगों के काफी समझ में आती थी। ग्रामीण परिवेश से जुड़े होने के कारण वह लोगों में काफी लोकप्रिय थे। भिखारी ठाकुर ने जो उस समय समरस समाज की कल्पना की थी और समाज का स्वरूप कैसा होना चाहिए जिसको अपने नाटक और नौटंकी के माध्यम से चित्रित किया था, वह आज के वास्तविक जीवन में सफली भूत होता दिखाई दे रहा है। समाजसुधारक भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी संस्कृति को एक नई पहचान देन के साथ समाज में फैली कुरीतियों पर जमकर हल्ला बोला। बिदेशिया, गबर-घिचोर के साथ-साथ बेटी-बियोग और बेटी बेंचवा जैसे नाटकों के जरिये उन्होंने अलग तरह की चेतना समाज में फैलाई। भिखारी ठाकुर अपने इन नाटकों की मदद से मनोरंजन करने के साथ-साथ सामाजिक बुराईयों पर भी कठोर प्रहार किया करते थे।भिखारी ठाकुर अपने कला के माध्यम से पूरे विश्व में जीवित हैं।
मौके पर अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय नाई संघ (ट्रेड यूनियन) नालंदा जिलाध्यक्ष रंजीत कुमार शर्मा ने कहा कि भिखारी ठाकुर एक समर्थ सामाजिक चिंतक थे। बेटी बचाओ, जैसे महत्वपूर्ण सवाल पर आज की वर्तमान सरकार स्लोगन प्रचारित कर रही है। जबकि भिखारी ठाकुर अपने समय में ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों को बेटियों के प्रति सामाजिक नजरिया और मानसिक बदलाव लाने को संदेश दिया। अपने नाटकों के द्वारा उन्होंने सामाजिक क्रांति का संदेश जन.-जन तक पहुंचाने का काम किया। आज के वर्तमान परिवेष में उनका अनुसरण करते हुए समाज को पुनः जागरूक करने की जरूरत है।शंखनाद के कोषाध्यक्ष भाई सरदार वीर सिंह ने कहा कि लोकनाट्य के प्रवर्तक भिखारी ठाकुर ने अपनी नाट्य शैली से समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया। वहीं, लोगों को जागरूक करने में भी भिखारी ठाकुर की महत्वपूर्ण भूमिका रही।मौके पर शंखनाद के सक्रिय सदस्य साहित्यसेवी धीरज कुमार ने कहा कि भिखारी ठाकुर ने आजीवन अपने कला एवं रचनाओं के माध्यम से समाज सुधार का कार्य किया। आज सरकार इनसभी का अनुसरण भी कर रही है। भिखारी ठाकुर एक कला साधक के साथ-साथ दूरदर्शी सोंच रखने वाले व्यक्ति थे।समाज सेविका सविता बिहारी ने कहा- भिखारी ठाकुर लेखक, कवि, नाटककार के साथ-साथ रंगकर्मी की भूमिका में अपनी प्रतिभा से संपूर्ण मगही एवं भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में एक नई क्रांति की शुरुआत की थीं।
इस अवसर पर डॉ. करण कुमार, विनय कुमार, सुरेश प्रसाद, प्रमोद कुमार, रामप्रसाद चौधरी, रणजीत कुमार अकेला, अरुण बिहारी शरण, राजेश कुमार, सुधीर कुमार, सुमित बिहारी, सुजल बिहारी सहित शहर के कई गणमान्य लोग मौजूद थे।