Saturday, December 21, 2024
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भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल की 147 वीं जयंती पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा- भारत रत्न से सम्मानित सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म क्रांतिकारी परिवार में हुआ था। स्वतंत्र भारत को एक सूत्र में बाँधने का श्रेय भी सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही जाता है। सरदार पटेल एक सच्चे राष्ट्रभक्त ही नहीं थे, अपितु वे भारतीय संस्कृति के महान् समर्थक थे। सादा जीवन उच्च विचार, स्वाभिमान, देश के प्रति अनुराग, यही उनके आदर्श थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश की सभी छोटी-बड़ी 565 रियासतों को विलय कर उन्हें भारतीय संघ बनाने में उनकी अति महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल जी सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह एक जन्मजात नेता थे और उन्हें अपने समर्पण पर दृढ़ विश्वास था। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। कोइ मनुष्य महान बनकर पैदा नहीं होता है। इन्होने 200 वर्षो की गुलामी के फँसे देश के अलग-अलग राज्यों को संगठित कर भारत में मिलाया और इस बड़े कार्य के लिए इन्हें सैन्य बल की जरुरत तक नहीं पड़ी। यही इनकी सबसे बड़ी ख्याति थी, जो इन्हें सभी नेताओं से पृथक करती हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल जी भारतीय एकता के शिखर पुरुष थे।

वल्लभ भाई पटेल का जन्म और शिक्षा-दीक्षा

महान स्वतंत्रता सेनानी लौहपुरूष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ग्राम करमसद में हुआ था। इनके पिता झबेरभाई पटेल थे जिन्होंने 1857 में रानी झांसी के समर्थन में युद्ध किया था। इनकी मां का नाम लाडोबाई था। इनके पिता बहुत ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। ये गुजरात में एक लेवा पटेल (पाटीदार) जाति अर्थात कुर्मी जाति में हुआ था। वल्लभ भाई पटेल की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के ही एक स्कूल में हुई थी। आगे की पढ़ाई के लिए वह पेटलाद गांव के स्कूल में भर्ती हुए। यह उनके मूल गांव से छह से सात किलोमीटर की दूरी पर था। वल्लभ भाई पटेल को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। वल्लभ भाई की हाईस्कूल की शिक्षा उनके ननिहाल में हुई। उनके जीवन का वास्तविक विकास ननिहाल से ही प्रारम्भ हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल तथा माता लाडबा देवी की चौथी संतान थे। भाइयों में सोम भाई, बिट्ठल भाई, नरसी भाई एवं एक बहन दहिबा थी। वल्लभ भाई का विवाह 16 साल की उम्र में झावेरबा पटेल से हुआ। उन्हें एक बेटा दह्याभाई और एक बेटी मणिबेन हुई थी। वल्लभ भाई ने नडियाद, बड़ौदा व अहमदाबाद से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत इंग्लैंड मिडल टैंपल से लॉ की पढ़ाई पूरी की व 22 साल की उम्र में जिला अधिवक्ता की परीक्षा उत्तीर्ण कर बैरिस्टर बने, और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। उसी समय महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का राजनैतिक सफर

वल्लभ भाई ने सबसे पहले अपने स्थानीय क्षेत्रो में शराब, छुआछूत एवं नारियों के अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की। इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाये रखने की पुरजोर कोशिश की। सरदार पटेल का राजनैतिक सफर 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह से हुआ था। 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह और बारदोली सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान माह जून 1928 गुजरात में हुआ यह एक प्रमुख किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने ही किया था। उस समय सरकार ने किसानों के लगान में 22 प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया और इसको लेकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की।
इसी बारदोली सत्याग्रह में उनके सफल नेतृत्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी और वहां के किसानों ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी। वहीं 1922, 1924 तथा 1927 में सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गये। 1930 के गांधी के नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तैयारी के प्रमुख शिल्पकार सरदार पटेल ही थे। 1931 के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में सरदार पटेल को अध्यक्ष चुना गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सरदार पटेल को जब 1932 में गिरफ्तार किया गया तो उन्हें गांधी के साथ 16 माह जेल में रहने का सौभाग्य हासिल हुआ। 1939 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जब देशी रियासतों को भारत का अभिन्न अंग मानने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया तभी से सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर दिया तथा अनेक देशी रियासतों में प्रजा मण्डल और अखिल भारतीय प्रजा मण्डल की स्थापना करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सरदार पटेल ने 565 देशी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण विलय करवाया

विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। लौह पुरुष सरदार पटेल ने बुद्धिमानी और दृढ़ संकल्प का परिचय देते हुए वी.पी. मेनन और लार्ड माउंट बेटन की सलाह व सहयोग से अंग्रेजों की सारी कुटिल चालों पर पानी फेरकर नवंबर 1947 तक 565 देशी रियासतों में से 562 देशी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण विलय करवा लिया। भारत की आजादी के बाद भी 18 सितंबर 1948 तक हैदराबाद अलग ही था लेकिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को पाठ पढ़ा दिया और भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत के साथ रहने का रास्ता खोल दिया।

नेहरू से ज्यादा लोकप्रिय थे सरदार वल्लभ भाई पटेल

भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। आजादी के पहले कांग्रेस कार्य समिति ने प्रधानमंत्री चुनने के लिए प्रक्रिया बनाई थी, जिसके तहत आंतरिक चुनावों में जिसे सबसे अधिक मत मिलेंगे वही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा और वही प्रथम प्रधानमंत्री भी होगा। कांग्रेस के 15 प्रदेश स्तर के अध्यक्षों में से 13 वोट पटेल को मिले थे और केवल एक वोट जवाहरलाल नेहरू को मिला था। लेकिन गांधी का पुरजोर पक्ष जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष व प्रधानमंत्री बनाने को लेकर था। चूंकि गांधी को आधुनिक विचार बहुत पसंद थे, इन विचारों की झलक उन्हें पटेल की जगह विदेश में पढ़े-लिखे नेहरू में अधिक दिखती थी। वहीं गांधी विदेश नीति को लेकर पटेल से असहमत थे। इस कारण उन्होंने पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने से इंकार कर दिया व अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल नेहरू के पक्ष में किया। इसको लेकर भारतीय राजनीति में राजेंद्र प्रसाद का यह कथन प्रासंगिक है ‘एक बार फिर गांधी ने अपने चहेते चमकदार चेहरे के लिए अपने विश्वासपात्र सैनिक की कुर्बानी दे दी।’ लेकिन सवाल पटेल को लेकर भी उठते हैं कि उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया। आखिर उनके लिए गांधी महत्वपूर्ण था या देश? निश्चित ही भारत के 2/5 भाग क्षेत्रफल में बसी देशी रियासतों जहां तत्कालीन भारत के 42 करोड़ भारतीयों में से 10 करोड़ 80 लाख की आबादी निवास करती थी, उसे भारत का अभिन्न अंग बना देना कोई मामूली बात नहीं थी। कई इतिहासकार सरदार पटेल की तुलना बिस्मार्क से भी कई आगे करते है क्योंकि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण ताकत के बल पर किया और सरदार पटेल ने ये विलक्षण कारनामा दृढ़ इच्छाशक्ति व साहस के बल पर कर दिखाया था।
भारत की आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल में जमीन आसमान का अंतर था। जब की दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी (वकालत) की डिग्री प्राप्त की थी लेकिन वल्लभ भाई पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। जवाहर लाल नेहरू जी केवल सोचते रहते थे इधर सरदार वल्लभ भाई पटेल उस काम को कर डालते थे। कहा जाता है की नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी उच्च स्तर की पढ़ाई की थी लेकिन उनमें चींटी बराबर भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।

भारत के आदर्श सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन

वल्लभ भाई पटेल अपने जीवन के माध्यम से ताकत के प्रतीक थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी महात्मा गांधी जी को बहुत मानते थे उनकी इज्जत करते थे, महात्मा गांधी जी की कही हुई बातों को सर्वोपरि मानते थे। लेकिन 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गयी। इस बात का वल्लभ भाई पटेल पर बहुत गहरा असर पड़ा और कुछ समय के बाद करीब 19-20 महीनों के बाद उन्हें हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल का दौरा आ गया और 15 दिसम्बर 1950 को निधन हो गया।
भारत का इतिहास हमेशा इस महान्, साहसी, निर्भयी, दबंग, अनुशासित, अटल, शक्ति सम्पन्न महान् पुरुष को याद करेगा। 565 रियासतों का विलय कराने वाले लौह पुरुष को भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा।

पटेल के विचारों एवं आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने की आवश्यकता

मौजूदा आर्थिक संकट, राजनीति में पनप रहे चमचावाद, स्तरहीनता के फलस्वरूप समाज में हर स्तर पर हास तथा देशभक्ति की भावना लोगों में लगातार लुप्त होते देख हम सब आज बाध्य हो रहे हैं, सरदार पटेल को याद करने के लिए। माखनलाल चतुर्वेदी जी की ये पंक्तियाँ हमें याद आ रही हैं- “दुनिया की मर्दुम शुमारी गलत हो रही है। यथार्थ में दुनिया में दो चार ही गिने-चुने जीव रहते हैं। उन्हीं की गिनती दुनिया भी करती है और उन्हीं का मत दुनिया का मत।”
इसलिये आज जरूरत है सरदार पटेल के विचारों एवं आदर्शों को घर-घर तथा जन-जन तक पहुँचाने की, क्योंकि देश की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिये एकजुट रहने की आवश्यकता है, ताकि भारत माँ के निकट बेड़ियों की झनझनाहट तक नहीं पहुँचने पाए। जब-जब देश को खण्डित करने वाली शक्तियाँ अपना सर ऊपर उठाती हैं, भारत के लौहपुरुष तथा राष्ट्र की एकता के प्रतीक सरदार पटेल की याद बरबस हम सभी देशवासियों के मानस-पटल पर छा जाती है। किंतु दुख की बात यह है कि आज हर मंच से देश की एकता तथा अखण्डता के नारे नेताओं द्वारा लगाए जा रहे हैं पर नाम उनका लिया जा रहा है जिनका भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान करने की बात तो दूर, उन दिनों उनकी पैदाइश भी नहीं हुई थी। यह कैसी विडंबना है।
आज जहाँ एक तरफ हमारे यहाँ लोग राष्ट्रीय एकता की दुहाई देते नहीं थकते और दूसरी ओर बेशर्मी से ऐसे काम करते हैं जो राष्ट्रीय एकता की जड़ों पर प्रहार करने वाले हैं। मुश्किल यह है कि हमारे मन में आज राष्ट्रीयता का एक मूल आधार हमारा संविधान है। उसकी प्रस्तावना में स्वतंत्रता और समता के साथ बंधुता का अल्लेख करते हुए कहा गया है कि यह मूल्य व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तभी मजबूत हो सकती है। जब देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उचित सम्मान मिले और साथ ही हममें भाईचारे का विकास हो। इसका एक निहितार्थ यह है कि यदि देश के किसी नागरिक को चोट पहुँचाई जायगी, उसके साथ भेद-भाव किया जायगा, तो राष्ट्रीय एकता कभी मजबूत नहीं होगी।
वर्तमान दौर की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के मद्देनजर सरदार पटेल की प्रासंगिकता इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि आज की भौतिकवादी दुनिया में जहाँ नैतिक संकट है, वहीं हमारे देश भारत में देशभक्ति की भावना का तेजी से ह्रास हो रहा है। जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीयता के नाम पर हम एक-दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं।

वक्त जब गुलशन पे पड़ा था, तो हमने खून दिया,
अब बहार आई हैं तो कहते हैं तेरा काम नहीं।

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