डॉ. अजित कुमार की रिपोर्ट – भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे | जिनका जन्म आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व ,ईसा से 599 वर्ष पूर्व , हुआ था | उनका संपूर्ण जीवन ,जीवन उद्देश्य और उपदेश या वचन ‘संपूर्ण मानव जाति के कल्याण, उत्थान एवं एक स्वस्थ समाज के निर्माण’ हेतु ही रहा | जिनमें कुछ प्रमुख विषयों पर ध्यानाकर्षण प्रस्तुत है :
(क) ” अहिंसा “: “अहिंसा परमोधर्मः” – भगवान महावीर जिन्हें वर्धमान महावीर से भी जाना जाता है , “अहिंसा को परम धर्म” बताए और वे खुद अहिंसा के ही प्रतीक थे तथा वे ही सबसे पहले “जियो और जीने दो के सिद्धांत को अपनाएं और अपने संपूर्ण जीवन उसका प्रचार-प्रसार भी किए | i)जीवित प्राणी के प्रति दया भाव का होना अहिंसा का ही रूप है कारण घृणा से खुद जीव या मनुष्य का विनाश होता है | ii) सभी प्राणियों के प्रति सम्मान भाव का होना भी अहिंसा ही है तथा iii) अपने भीतर की कमियों या नकारात्मक पक्ष या अपने भीतर छिपे नकारात्मक पक्ष यथा धृणा, द्वेष, जलन आदि रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त कर दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना भी अहिंसा का ही रूप है |
(ख) “सत्य” : ” सत्यमेव जयते” – “सत्यमेव जयते” का सीधा भावार्थ है सत्य की ही हमेशा जीत होती हैं और असत्य हमेशा से हारता ही आया है” I भगवान महावीर ‘ सत्य’ को एक ज्योतिपुंज माने , उनके वचनानुसार लाखों धुंध या असत्य रूपी बादल के आ जाने के पश्चात भी ‘सत्य’ सूर्य ☀ के समान पुनः प्रकाशित होकर संपूर्ण संसार को प्रकाशवान करता है | ‘सत्य’ और ‘असत्य’ धारण करने प्राणियों में बहुत बड़ा अंतर होता है | ‘सत्य’ विपरीत परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता, वह हमेशा से निडर, निर्भय और बेबाक होता है | ‘सत्य’ को धारण करना ईश्वरीय गुणों को प्राप्त करने के बराबर है अर्थात् ईश्वरीय कृपा को प्राप्त करने के समान है | ‘सत्य’ हमेशा से सुंदर प्रिय और सम्मानीय माना गया है | साथ ही ” ‘सत्य’ परेशान हो सकता है पर पराजित कभी नहीं होता है” |
(ग) ” धर्म “: “मानवीय विशिष्ट गुण” – “समस्त प्राणियों को स्वयं के कल्याणार्थ धर्म परायण होना ही चाहिए I धर्म को वर्धमान महावीर के द्वारा तीन प्रमुख रूपों में बताया गया है : पहला – ‘अहिंसा’, दूसरा – ‘संयम’ और तीसरा : ‘तप या साधना’ |
“अहिंसा” :- दूसरों को किसी भी प्रकार का ( तन अर्थात् शारीरिक) कष्ट नहीं देना चाहिए , यहां तक की वाणी का भी कष्ट न दिया जाए I चुकि ज्ञानियों के द्वारा वाणी का दंड या कष्ट सबसे घातक दंड बताया गया है | जैन धर्मानुसार किसी भी जीव की जाने-अनजाने रूप में हत्या नहीं करनी चाहिए I साथ ही अपने मन से भी किसी पर अत्याचार या प्रहार गलत बताया गया है |
“संयम” :- “जैन धर्म वालों के वचनानुसार समस्त दसों इंद्रियों पर संयम रखकर अपने जीवन निर्माण में लगे रहना संयम बताया गया है I महावीर स्वामी जी के अनुसार अपनी वाणी ,भूख, निद्रा आदि में भी संयम या नियंत्रण का होना अत्यंत जरूरी है |
“तप” :- “वर्धमान महावीर जी के अनुसार तप मतलब साधना बताया गया | मौन धारण कर अपने ही भीतर निहित या स्थित ईश्वरीय गुणों को समझना, जागृत करना और धारण करना साधना कहा गया तथा जो व्यक्ति तप या साधना में जीते हैं उन्हें ही साधक भी बताया गया |
इन सब के अलावे… “अपरिग्रह “: किसी भी जर या अजर चीज के प्रति आसक्ति या अत्यधिक लगाव या चाहत नहीं रखना, ” क्षमा”: माफ करने की आदत अर्थात् बदला नहीं लेने की भावना, “प्रेम” : दूसरों के प्रति स्नेह या सानिध्य का भाव होना, “करूणा” : दीन- हीन के प्रति दया भाव , “दान” : सेवार्थ अन्न, धन या शारीरिक श्रम से मदद करना, ” शील” : विशिष्ट सुकर्मी गुणों का होना तथा “सदाचार” : निरामिष भोजन, रहन- सहन, संगति, आहार- व्यावहार जैसे गुणों को भी “महावीर स्वामी” जी के अनमोल वचनों या उपदेशों के रूप में समस्त संसार वासियों को उनके अनुयाईयों के द्वारा बताया गया है |
निष्कर्ष :- आज करो ना काल में हमारे परिवार समाज को वर्धमान महावीर जी के द्वारा बताए सभी उपदेशों का प्रचार प्रसार होना अत्यंत जरूरी माना जाना चाहिए ताकि “करोना( कोविड-19) जैसी वैश्विक मुसीबत या महामाया की घड़ी में आपसी प्रेम करुणा सहयोग शील , सदाचार ,अहिंसा तथा संयम जैसे विशिष्ट मानवीय गुणों हम अपने- अपने जीवन में अपना सकें,साथ ही हमारे बच्चों के पाठ्य- पुस्तक समाचार पत्र तथा मीडिया के अन्य स्रोतों के जरिए भी जनसाधारण तक वर्धमान महावीर जी के उपदेशों को पहुंचाना सर्वकालिक सर्व- कल्याणार्थ र्शुभ कार्य माना जाए , चाहे लेखनी किसी भी व्यक्ति की काहे नहीं हो | जैन धर्म वाले प्रारंभ से ही अपने मुंह पर सफेद रंग के कपड़े की पट्टी का इस्तेमाल करते रहे हैं इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि वे किसी भीज्ञजीव की हत्या के कारक नहीं बने, उनका मुंह बंद रहे, साथ ही साथ गंदगी उनके मुंह में ना प्रवेश करें और वे अनावश्यक वार्तालाप से भी बच सकें | “आज के वर्तमान परिवेश में यही पट्टी हम मास्क के रूप में मजबूरी में इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि यह मजबूरी नहीं अत्यंत जरूरी है |
“भगवान महावीर”: जीवन उद्देश्य एवं उपदेश
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