Friday, July 4, 2025
No menu items!
No menu items!
HomeSample Page

Sample Page Title

राकेश बिहारी शर्मा—–1860-70 के दशक में बने अमावां स्टेट महल अपने आप में बहुत खास था। अमावां राज भूमिहार क्षत्रिय गोत्र के वासुदेव तिवारी के वंसज का है। 16 वीं शताब्दी के मध्य में तिवारी जी दिल्ली से बिहार प्रांत आये थे। वासुदेव तिवारी जी दिल्ली मुग़ल बादशाह अकबर की सेना के मनसबदार थे। वासुदेव तिवारी बहुत बहादुर योद्धा थे, इसलिए सम्राट अकबर ने खास कर उन्हें अफगान संघर्ष को कुचलने के लिए मुंगेर में रखा था।

टोडरमल अकबर के नवरत्नों में से एक थे। ये समझदार लेखक और वीर सम्मतिदाता थे। ये अपनी लगन और कर्मठता से उन्नति करके चार हज़ारी मनसब और अमीरी और सरदारी की पदवी तक हासिल की। टोडरमल खत्री जाति के थे और उनका वास्तविक नाम ‘अल्ल टण्डन’ था। राजा टोडरमल ने वासुदेव तिवारी की सैन्य युद्ध करवाई की बहुत प्रसंशा की इसलिय अकबर ने बंगाल के मालदा परगना के पास उन्हें बहुत बड़ी जागीर दे दी। वासुदेव तिवारी ने अपना रहने का स्थान मुंगेर क्षेत्र के बरबीघा के निकट “शेरपर” पर चुना। जिसका अवशेष आज भी देखा जा सकता है। वहां से एक भाई अमावां आये। अमावां गांव में हीं विशालकाय किला कुम्हरी नदी के तट पर स्थित अमावां राज का विशाल महल है, जो वह उस समय के पुराने मुंगेर जिला में ही पड़ता था।

वासुदेव तिवारी के एकमात्र पुत्र का नाम भागवत सिंह था। भागवत सिंह के दो पुत्र थे। उनके पुत्रों में टोरल सिंह की काफी ख्याति प्राप्त था। वे बहुत ही सुशिक्षित, प्रतिष्ठित एवं कर्मठ व्यक्ति थे। उस समय अमावां एक छोटा सा गाँव था। वे छोटे और साधारण अमावां ग्राम को एक प्रभावी और संपन्न ज़मीनदारी राज में परिवर्तित कर दिया था। वे अपने कार्य से शीघ्र ही काफी मशहूर हुए और बिहार प्रांत के नामी ज़मींदार में उनका नाम गिना जाने लगा। टोरल सिंह के वंश के ‘चतुर्भुज सिंह’ विख्यात और दक्ष ज़मींदार हुए इन्होने एक मुसलमान ज़मीनदार से काफी भूमि अर्जित की और अपने परिश्रम से काफी धन अर्जित की और अपने अमावां राज को साधन संपन्न राज बना दिया। इनकी मृत्यु 1843 ईसवीं में हो गया।

‘चतुर्भुज सिंह’ के तीन पुत्र थे। बड़े पुत्र ‘करमचंद सिंह’ अपने पिता के सामान ही दक्ष थे। उन्होंने भी अपने पिता के समान परिश्रम से काफी धन अर्जित की और वर्तमान अमावां राज की बुनियाद रखी थी। करमचंद सिंह की मृत्यु 1871 ईसवीं हो गयी।

अमावां राज के 11 वें वंशज जमींदार करमचंद सिंह के पुत्र ‘नान्हू सिंह’ एक सुयोग्य ज़मीनदार और अपने पिता के पद चिन्हों पर चलने वाले हुए। उनके समय में अमावां राज की काफी प्रगति हुई। नान्हू सिंह की मृत्यु के बाद उनके अनुज भाई “बाबु बैजनाथ सिंह” अमावां का राजा हुए। यह काफी विद्वान और संघर्षशील व्यक्ति थे। इन्होने अमावां किला बनवाया और राजगीर में सप्तधारा के निकट अपना एक घर बनवाया जो आज भी खंडहर देखा जा सकता है। बाढ़ में गंगा नदी के किनारे भी कई मंदिर और धर्मशाला बनाये। उन्होंने अयोध्या में भी कई मंदिर और धर्मशाला बनाये हैं। उन्होंने इतनाही नहीं शिक्षा के लिए भी स्कूल की स्थापना की उसमें सैकड़ों निर्धन विद्यार्थियों को स्नातक तक शिक्षा दिलवाई।

बाबु बैजनाथ सिंह के सात पुत्रियाँ और एक पुत्र हरिहर प्रसाद नारायण सिंह थे। हरिहर प्रसाद सिंह का जन्म 10 सितम्बर 1890 ईसवीं में हुआ था। वे हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी का अध्ययन किये थे।

1891 में हरिहर प्रसाद नारायण सिंह के पिता बाबू बैजनाथ सिंह का निधन 55 वर्ष की अवस्था में हो गया, जबकि उनका बेटा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह उस समय केवल कुछ महीने का था, लेकिन एक वफादार और सक्षम प्रबंधक और करीबी रिश्तेदार “बाबू बंसी सिंह” ने सुनिश्चित किया कि यह परिवार समृद्ध हो। वर्ष 1911 में किंग जॉर्ज 5 वीं के दिल्ली दरबार के अवसर पर, अमावां स्टेट के राजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह को “राजा बहादुर” की उपाधि से सम्मानित किया।

भारत में जितने भी राजा हुए हैं उनके पीछे कुछ न कुछ इतिहास जरूर रहा है। एसे हीं अमावां स्टेट के राजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह थे। जिन्हें इंग्लैंड की महारानी ने 1911 में बहादुर की उपाधि से नवाजा था। अपनी प्रतिभा के बदौलत ये एक छोटे से जमींदार से अपनी रियासत का विस्तार कर राजा की श्रेणी में अपनी कड़ी मेहनत से शामिल हुए थे। इनका राज वर्तमान नालंदा जिले से लेकर सहरसा, मधेपुरा नवगछिया व सिहेश्वर स्थान, भतरनथा से चींटी मौजा तथा गया जिले के टेकारी राज्य, सुंदरवन, वृंदावन, अयोध्या एवं काशी तक फैला हुआ था। जो 1860 से 1952 तक निर्वाध रूप से फलता-फूलता रहा था। राजशाही के उस जमाने में अमावां स्टेट की मालगुजारी से प्रति माह 65 लाख रुपये राजस्व की वसूली आती थी। वे अपने महल व सिपहसलारों के घरों को रोशन करने के लिए खुद का पावर हाउस बनाए हुए थे, जो टेकारी स्टेट और अमावां स्टेट में था। यह बिजली कोलकता के बाद अमावां स्टेट और टेकारी स्टेट में ही बिजली जगमगाती थी। ये पावर हाउस डायनेमो जेनरेटर था, जो चार बैलों के द्वारा घुमाया जाता था। जिससे 12 वोल्ट D.C विधुत तरंगे उत्पन्न होती थी। इससे, उस जमाने के विधुत उपकरण, बल्ब,पंखे इत्यादि चलते थे।

इतना ही नहीं राजा हरिहर सिंह ने अपने इलाके के किसानों के लिए खेती में सिचाई की दिक्कत न हो। इस लिए उन्होंने कुंभरी नदी की उड़ाही कराकर जगह-जगह नहरों, तालाबों और जमींदारी बांध का निर्माण कराया था। आज भी उसके अवशेष देखने को मिलते हैं। यहीं कारण था कि राजा हरिहर सिंह को लोग श्रद्धा से “राजा जलवंत” कहकर पुकारा करते थे। वहीं अपने राज में संचार व्यवस्था के लिए टेलीग्राम की व्यवस्था किए हुए थे। राजा हरिहर सिंह ने गांव-गांव में बच्चों व प्रजा को शिक्षित करने के लिए हरिरंभा संस्कृत महाविद्यालय एवं प्राइमरी तथा मिडिल स्कूल खोल रखे थे। इनके राज में स्त्री व पुरुष के लिए अलग-अलग अस्पताल व पुस्तकालय की भी व्यवस्था थी। प्रजा उन्हें भगवान समझती थी।

महाराजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह की पत्नी राजकुमारी भुवनेश्वरी कुंवर का जन्म 2 जुलाई 1884 को टेकारी स्टेट में हुआ था। इनकी माँ रत्न कुंवर की मृत्यु 1896 ईसवीं में हो गई थी। उस समय इनकी उम्र मात्र 13 वर्ष की थी, इनके जगह इनकी दादी रानी रामेश्वरी कुंवर टिकारी राज का शासन चलाती थी। सन 1905 में जब राजकुमारी भुवनेश्वरी कुंवर जी बालिग हुई तो टिकारी राज का शासन अपने हाथ में ले ली थी। उसी समयावधि में इनकी शादी अमावां स्टेट के राजा हरिहर प्रसाद सिंह के साथ हुई।

टेकारी महाराजा गोपाल शरण सिंह के लड़की राजकुमारी ऊमेश्वरी कुंवर की शादी अमावां स्टेट की रानी भुवनेश्वरी और राजा हरिहर नारायण सिंह के बड़े लड़के राजकुमार रघुवंश मणि प्रसाद सिंह के साथ 12 मार्च 1933 को कलकत्ता में हुई थी। टिकारी राज नौ आना के महाराजा गोपाल शरण सिंह के हरिहर प्रसाद नारायण सिंह समधी थे। टिकारी राज नौ आना और सात आना अमावां स्टेट एक होने पर रानी भुनेश्वरी कुंवर भोपाल के रानी बेगम के बाद देश के दूसरी सबसे धनिक महिला थी। सन 1930 में महाराजा गोपाल शरण सिंह अपने टिकारी राज सात आना का लगभग सारी सम्पति रानी भुनेश्वरी कुंवर के नाम रजिस्ट्री (Registri) कर दिए थे।

सन 1930 में टिकारी राज नौ आना और टिकारी राज सात आना एक हो जाने के बाद यह टिकारी राज “अमावां स्टेट” कहलाने लगा। 22 एकड़ में फैला “अमावां स्टेट” राजमहल आज भी अपने गौरवशाली इतिहास को बयां कर रहा है।

रानी भुवनेश्वरी कुंवर अमावां स्टेट की प्रतापी महारानी हुईं। महारानी रानी भुवनेश्वरी कुंवर धर्मपरायण, विद्या अनुरागी एवं उदार हृदय वाली यशस्वी महिला थीं। उन्होंने धार्मिक शैक्षणिक एवं कई जनउपयोगी कार्य कर अमावां स्टेट का उज्जवल कृतिमान स्थापित कीं।

राजा हरिहर प्रसाद सिंह और रानी भुवनेश्वरी कुंवर के पांच पुत्र और पांच पुत्रियाँ हुई थी। (1) राजकुमार रघुवंश मणि प्रसाद सिंह, (२) राघवेन्द्र नारायण सिंह, (3) कौशलेन्द्र नारायण सिंह, (4) अवधेन्द्र नारायण सिंह, (5) अध्केश्वरी नारायण सिंह हुए। राजा हरिहर प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र राजकुमार रघुवंश मणि प्रसाद सिंह के दो पुत्र और एक पुत्री हुईं। 1. डॉक्टर सीताराम सिंह, 2. भरत प्रसाद नारायण सिंह और एक पुत्री राजलक्ष्मी कुंवर ये सभी परिवार अब इंग्लैंड में रह रहे हैं। मंझले पुत्र कौशलेन्द्र नारायण सिंह और संझले पुत्र राघवेन्द्र नारायण सिंह के परिवार पटना में खास महल सरकारी भवन 90 साल के लीज पर में रह रहें हैं।

हिंदुस्तान की दूसरी सबसे धनी रानी भुनेश्वरी कुंवर का अपने जीवन काल में ही रानी से रंक की स्थिति में पटना के बोरिंग रोड में अपने राज के मुलाजिम मैनेजर पारस नाथ सिंह के छोटे से किराये के मकान सीता राम सदन में अपना जीवन त्याग करना पड़ा था। इनकी दस पुत्र-पुत्रियों में से कोई भी इनकी सहायता के लिए आगे नहीं आया। धन के दुरूपयोग और पारिवारिक कटुता का इससे क्रूर उदहारण इतिहास के पन्नों में ढूढने से भी नहीं मिलता।

राजा हरिहर सिंह और महारानी भुवनेश्वरी कुँवर ने अपने राज में शिक्षा के विकास के लिए काफी धन खर्च किया और उनका यह कार्य लोगों के द्वारा काफी सराहनीय था। लेकिन आज वर्तमान समयावधि में रख-रखाव के अभाव में अमावां स्टेट की हवेली खण्डहर में तब्दील हो रही है। महल के भव्यता का राज महल के मुख्य द्वार पर की गई सुन्दर नक्काशी को देखने से जाहिर होता है। स्थापना काल में इस महल की क्या रुतबा रहा होगा। इसे देखने के बाद पता चलता है।

लगभग 160 वर्षों के इतिहास में अमावां स्टेट ने कई उतार चढ़ाव देखे, लेकिन राजाओं द्वारा निर्मित किला जो अब खंडहर में तब्दील हो रहा है। फिर भी उस राज के गौरवशाली अतीत की आज भी याद दिलाती है। अमावां स्टेट का किला स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना है।

अमावां स्टेट का किला एक ऊंचे टीले पर लखौरी ईंट से लगभग पांच तलों में निर्मित राजमहल शान शौकत की याद दिलाती है। इसके राजमहल, राज प्रसाद, भूमिगत महल, सामरिक मैदान, बामन आगन का महल, भूल भूलैया, भूमिगत सुरंग, सुरक्षात्मक खाइया, रंग महल, अतिथिशाला, श्रृंगार घर, नाच घर, रहस्यमयी तालाब, चौड़ी और ऊंची चहारदीवारी, सिंह द्वार आदि हाल के दिनों तक लोगों के लिए दर्शनीय बना रहा है।

उस समय राजा हरिहर सिंह के मुख्य सलाहकार खासमखास रहे राय बहादुर बाबू ऐदल सिंह ने राजा हरिहर सिंह के पदचिह्न पर चलते हुए उनके प्रेरणा से जिले का सबसे बड़ा शिक्षण संस्थान नालंदा कॉलेज की स्थापना 1920 में की थी। जो आज भी शिक्षा की ज्योति पूरे भारत में जगमगा रहा है। अमावां स्टेट की महल व उसके अंदर बने मां दुर्गा मंदिर तथा राजमहल परिसर में स्थित राम-जानकी तथा लक्ष्मण की मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

राजा हरिहर नारायण प्रसाद सिंह के पांच पुत्र व पांच पुत्रियां थीं। तीन बेटों की मौत हो चुकी है। दो बेटे जीवित हैं। एक बेटा दिल्ली में बड़े व्यवसायी हैं। दूसरे बेटे अमेरिका में रहते हैं। वर्तमान समय में इनके पोते ट्रस्ट बनाकर किला का संचालन कर रहे हैं। मरने से पहले राजा साहब, ठाकुर जी के नाम किला सहित 60 बीघा जमीन कर दी थी। किला की देखरेख व ठाकुर जी की पूजा-अर्चना के लिए छह लोग नियुक्त हैं।

यदि सरकार ध्यान दे तो बिहारशरीफ, राजगीर, नालंदा व पावापुरी आने वाले सैलानी निश्चित तौर पर इस महल की भव्यता देखने से अपने को रोक नहीं सकेंगे।

ऐतिहासिक किला को बचाने और इसे सुरक्षित स्थल घोषित करने के साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दशकों से संघर्ष जारी है, लेकिन किला की जमीन पर कुछ लोग अवैध कब्जा करने में लगें हैं। इसके लिए विरासत बचाओ संघर्ष समिति नालंदा के इतिहासकार डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह, पुरातत्ववेत्ता मो. तुफैल अहमद खाँ सूरी, प्रखर पत्रकार आसुतोष कुमार आर्य, पत्रकार सुजीत कुमार वर्मा, समाजसेवी साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, पत्रकार दीपक कुमार, समाजसेवी चन्द्र उदय कुमार मुन्ना सहित कई लोग इसके आन-बान और शान को बचाने के लिए हमेशा तत्पर है।

अमावां स्टेट को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का पर्याप्त अहर्ता है पर इसकी दिशा में प्रशासन तथा स्थानीय जनप्रतिनिधियों का ध्यान नगण्य है। राजा हरिहर प्रसाद नारायण सिंह, राजा अमावां राज के रानी भुनेश्वरी कुंवर के पति और टिकारी राज नौ आना के महाराजा गोपाल शरण सिंह के समधी थे।महाराजा गोपाल शरण सिंह की पुत्री उमेश्वरी कुंवर की शादी राजा हरिहर नारायण सिंह के बड़े लड़के रघुवंशमणि प्रसाद सिंह के साथ हुई थी। राजा बहादुर हरिहर प्रसाद की मृत्यु 19 फरवरी 1951 को हो गई थी।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments