बिहारशरीफ- स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में शंखनाद कार्यालय स्थित सभागार में महान बहुभाषाविद, हिंदी और संस्कृत के उद्भट विद्वान और हिंदी सेवी आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा की 103 वीं जयंती कवियों व साहित्यकारों ने स्व. देवेंद्रनाथ शर्मा के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर मनाई।
समारोह का आयोजन कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासकार व साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी शायर नवनीत कृष्ण ने किया।समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि आज महान बहुभाषाविद हिंदी सेवी आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा की जयंती है। बीसवीं शताब्दी के हिन्दी के सुप्रतिष्ठ एवं सम्मान्य हस्ताक्षर आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका अवदान साहित्य की विधाओं में तो स्मरणीय है ही, इसके साथ ही आलोचना, काव्य-शास्त्र और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में उनकी कृतियाँ आज भी प्रासंगिक और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वे पाणिनीय व्याकरण शास्त्र के निष्णात विद्वान् थे जो उन्हें पैतृक दाय के रूप में अपने पूज्य पितृचरण सर्वतन्त्र स्वतन्त्र पंडित शिवशरण शर्माजी से प्राप्त हुआ था। कलम के धनी लेखक, प्रभावी वक्ता होने के साथ-साथ आचार्यजी कुशल प्रशासक भी थे। वे सम्भवतः अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने पटना विश्वविद्यालय एवं दरभंगा-संस्कृत विश्वविद्यालय इन दोनों के कुलपतित्व का भार एक साथ निर्वहण किया था। देवेन्द्रनाथ जी तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन के यशस्वी संयोजक रहे। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो किसी पद को सुशोभित करते हैं तो उस पद की गरिमा बढ़ जाती है। आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा ऐसे ही आदर्श व्यक्ति थे।
अध्यक्षीय सम्बोधन में साहित्यकार डॉ० लक्ष्मीकांत ने आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा, हिंदी व संस्कृत भाषा साहित्य के आकाश के उदीयमान नक्षत्र के समान थे। हिंदी भाषा और साहित्य को भारत से बाहर स्थापित करने में आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा की अग्रणी भूमिका रहा है। वे लगभग एक दर्जन देशों की यात्रा हिंदी के शिक्षण के प्रचार व प्रसार के लिए किए। हिन्दी साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि लंदन विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ० फ़र्थ के विशेष अनुरोध पर ही “भाषा विज्ञान की भूमिका” नामक पुस्तक का लेखन किया गया। यह किसी भारतीय लेखक की प्रथम भाषा विज्ञान की पुस्तक है जो विदेशी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है। आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा जी का जन्म 07 जुलाई 1918 में सारण जिला के सत्तरघाट के पास गंडक नदी के तटवर्ती कृतपुरा ग्राम में एक समपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। जो वर्तमान में गोपालगंज जिला के बैकुंठपुर प्रखंड के अन्तर्गत आता है। इनके माता श्रीमती क्षीरा देवी एक धर्मपरायण महिला थी, और इनके पिता पंडित शिवशरण शर्मा उर्फ लंगरू पंडित, धर्मसमाज संस्कृत कालेज, मोतीहारी के प्राचार्य थे। आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा का बचपन गाँव में बिता तथा बाकी शिक्षा उनकी मोतीहारी में हुई। बाद पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। पुनः दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त किए गए।उसके बाद पटना विश्वविद्यालय के तथा भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। दर्जनों पुस्तकों के लेखक तथा हिंदी के ध्वजवाहक की मृत्यु भी हिंदी के सेवा करते समय ही हुई। 17 जनवरी 1991 के दिन “स्टील आथोरिटी आफ इंडिया” के हिंदी कार्यक्रम, जो चाणक्य होटल’ पटना में आयोजित था; वहीं भाषण देते समय गिर पड़े थे।
बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां मृत घोषित कर दिया गया। यह एक सदी के हिंदी के महानायक की कर्मभूमि के क्षेत्रमें महापरिनिर्वाण था।वैज्ञानिक साहित्यकार व मगही कवि डॉ. आनंद वर्द्धन ने श्रद्धा सुमन अर्पित कर कहा कि बहुभाषाविज्ञान वेत्ता आचार्य देवेन्द्रनाथ जी राज्य और देश के अनेकों शैक्षिणिक एवं साहित्यक संस्थानों के उच्चतम पदों को सुशोभित करते भारतीय साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय गरिमा दिलाई। ए अमर हैं और सबों की प्रेरणाश्रोत हैं।कार्यक्रम में मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने आचार्य शर्मा को बहुभाषा-विद भाषा-शास्त्री बताते हुए कहा कि वे हिन्दी के यशस्वी लेखक और विद्वान होने के साथ हीं एक बड़े नाटककार के रूप में भी याद किए जाते रहेंगे। उन्होंने संस्कृत से आचार्य करने के पश्चात हिंदी में एम ए किया। बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे।मौके पर पीएमएस कॉलेज के प्राचार्य प्रो. (डॉ.) बृजनन्दन प्रसाद ने कहा कि हिंदी और संस्कृत के उद्भट विद्वान और हिंदी सेवी आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा पुरातन भारतीय ज्ञान के नूतन संस्करण थे। भारतीय दर्शन और वैदिक साहित्य का उन्हें गहरा अध्ययन था। भाषा-विज्ञान, साहित्यलोचन के वे यशस्वी विद्वान ही नहीं, महान आचार्य भी थे।इस दौरान साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह, समाजसेवी धीरज कुमार, शिक्षाशास्त्री मो. जाहिद हुसैन, कवयित्री प्रियारत्नम, जयंत अमृत, शुभम कुमार शर्मा सहित कई लोगों ने परिचर्चा में भाग लिया।