Monday, December 23, 2024
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कोरोना से खतरनाक बना कचड़ा,पर्यटक नगरी कचड़े में तब्दील,प्रतिनिधि हुए विलुप्त

राजगीर नगर परिषद के शहरी क्षेत्र में कोरोना से ज्यादा भयावह और डरावने वाली तस्वीरें पूरे शहर के विभिन्न वार्डो से आ रही है। शहर के मुख्य सड़क,चौक चौराहों से लेकर संकीर्ण गलियों में फैले हुए कचड़े का ढेर संक्रमण के खतरे को आमंत्रण दे रहा है। स्थानीय नागरिको का कहना है कि नगर परिषद राजगीर की इतनी बद्दतर हालात कभी नही देखी गयी थी फिर भी प्रतिनिधि डायनासोर की तरह विलुप्त नजर आ रहे हैं। सड़को पर फैली गंदगी भरी तस्वीरें पर्यटको को राजगीर की गलत तस्वीर दिखा रही है।नगर परिषद के सफाईकर्मी से लेकर कर्मचारी हड़ताल पर हैं।अधिकारी हड़ताल का हवाला दे खामोश बैठे हैं।इस बीच जनता के चुने हुए प्रतिनिधि भी शहर की समस्या पर मौनी बाबा बने हुए हैं।जनप्रतिनिधि सड़क और नाली को ऊँचा, नीचा,आगे पीछे करने और करवाने में व्यस्त नजर आ रहे हैं।इन सबके बीच पर्यटक नगरी राजगीर अभूतपूर्व संकट में जी रहा है।

कोरोना से खतरनाक बना कचड़ा,पर्यटक नगरी कचड़े में तब्दील,प्रतिनिधि हुए विलुप्त

नगर परिषद कार्यालय से लगातार गाली गलौज और मारपीट की तस्वीर आने लगी है।सहायक टैक्स दारोगा प्रमोद कुमार द्वारा शनिवार को सफाईकर्मी दिलेश्वर डोम की जमकर पिटाई कर दी है।सफाईकर्मी हड़ताल पर डटे हैं अब तो टैक्स दारोगा प्रमोद कुमार की बर्खास्तगी की मांग भी उठने लगी है।डोम कल्याण संघ के अध्यक्ष बादल कुमार टैक्स दारोगा प्रमोद कुमार पर करोड़ो की सम्पति नगर परिषद से कमाने और फर्जी नियुक्ति का आरोप लगा रहे हैं।मामला तो गम्भीर हैं ही क्योंकि टैक्स दारोगा प्रमोद कुमार टैक्स वसूलते कभी नही दिखते,वे तो सभी बैंकों के चेकबुक अपने पास रखते हैं और चेक भी खूब काटते हैं।हर कटे हुए चेक पर साहब का कमीशन फिक्स है।अपने साथ साथ दूसरे का भी हिसाब रखना पड़ता है। नगर परिषद के कर्मचारी संघ अध्यक्ष मुक्ति शंकर सिंह भी अपने लोगो के साथ हड़ताल पर डटे हैं,आखिर मामला कर्मचारियों के हित से जुड़ा है।कोरोना से खतरनाक बना कचड़ा,पर्यटक नगरी कचड़े में तब्दील,प्रतिनिधि हुए विलुप्त

आरोप प्रत्यारोप के खींचतान में शहर की खूबसूरती बदसूरती में बदल चुकी है।आम आदमी कचड़े में जीने को मजबूर हो या नाक पर रुमाल रखने को विवश हो जनप्रतिनिधियों को एक बहाना मिल गया है कि सबकुछ हड़ताल पर है। वैसे इस हड़ताल से उन समाजसेवियों को कोई फर्क नही पड़ता जो समाजसेवा को भी व्यवसाय बना दिये हों।
राजनीति और समाजसेवा में नफा नुकसान का आकलन किया जाता है लेकिन जब समाजसेवा व्यवसाय बन जाये तो फिक्र किस बात की।

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