राकेश बिहारी शर्मा – हिंदी साहित्य जगत की महान लेखिका महादेवी वर्मा का साहित्य जगत में उसी प्रकार से नाम है जैसे कि मुंशी प्रेमचंद व अन्य साहित्यकारों का। महादेवी वर्मा ने केवल साहित्य ही नहीं अपितु काव्य समालोचना, संस्मरण, संपादन तथा निबंध लेखन के क्षेत्र में प्रचुर कार्य कया है अपितु इसके साथ ही वे एक अप्रतिम रेखा चित्रकार भी थीं। हिंदी साहित्य को एक नए आयाम तक पहुंचाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा का नाम साहित्य के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका जन्म होली के दिन हुआ था। वह काफी हसमुंख स्वभाव की थीं। महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च 1907 को प्रातः 8 बजे उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद में एक साहू परिवार में हुआ था। महादेवी वर्मा अपने परिवार में कई पीढ़ियों के बाद उत्पन हुई। उनके परिवार में दो सौ सालों से कोई लड़की पैदा नहीं हुई थी।
उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। हेमरानी देवी बड़ी धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी महिला थीं। माताजी जबलपुर से हिन्दी सीख कर आई थी। दादा फ़ारसी और उर्दू तथा पिताजी अंग्रेज़ी के अच्छे जानकर थे। महादेवी वर्मा के पिता शिक्षक के साथ-साथ एक वकील भी थे। महादेवी वर्मा के माता-पिता दोनों ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे। उनके माता-पिता एक अच्छे कवि थे। पारिवारिक माहौल के कारण ही महादेवी जी को बचपन से ही कविता लिखने का शौक था। हिंदी की सबसे सशक्त कवयित्री होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। निराला ने उन्हें “हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती भी कहा है।” वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार और रूदन को देखा, परखा और करूण होकर अंधकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। महादेवी जी छायावाद रहस्यवाद के प्रमुख कवियों में से एक हैं। हिन्दुस्तानी स्त्री की उदारता, करुणा, सात्विकता, आधुनिक बौद्धिकता, गंभीरता और सरलता महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में समाविष्ट थी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की विलक्षणता से अभिभूत रचनाकारों ने उन्हें ‘साहित्य साम्राज्ञी’, ‘हिन्दी के विशाल मंदिर की वीणापाणि’, ‘शारदा की प्रतिमा’ आदि विशेषणों से अभिहित करके उनकी असाधारणता को लक्षित किया। महादेवी जी ने एक निश्चित दायित्व के साथ भाषा, साहित्य, समाज, शिक्षा और संस्कृति को संस्कारित किया। कविता में रहस्यवाद, छायावाद की भूमि ग्रहण करने के बावज़ूद सामयिक समस्याओं के निवारण में महादेवी वर्मा ने सक्रिय भागीदारी निभाई। आधुनिक हिंदी की अन्यतम कवयित्री महादेवी वर्मा, छायावाद–काल की प्रमुख स्तम्भ हीं नहीं, कविता की महादेवी थी। “मैं नीर भरी दुःख की बदली” की इस अमर कवयित्री ने हिंदी काव्य–सागर में गीतों की अनेक निर्झरनियाँ गिराई, जिनका उद्गम उनका करुणा से भरा विशाल हृदय था।
महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। महादेवी वर्मा ने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया, व्यष्टिमूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। महादेवी वर्मा कोमल भावनाओं की संवाहक थीं। सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने पहली कविता लिखी थी− “आओ प्यारे, तारे आओ मेरे आंग में बिछ जाओ।”
उन दिनों के प्रचलन के अनुसार महादेवी वर्मा का विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था परन्तु महादेवी जी को सांसारिकता से कोई लगाव नहीं था अपितु वे तो बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं और स्वयं भी एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं। विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। महादेवी वर्मा की शादी 1914 में ‘डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा’ के साथ इंदौर में 9 साल की उम्र में हुई, वो अपने माँ पिताजी के साथ रहती थीं क्योंकि उनके पति लखनऊ में पढ़ रहे थे। उन्होंने ससुराल जाने की बजाय शिक्षा का मार्ग चुना। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बंध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था ही। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। सन् 1966 में पति की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। महादेवी वर्मा के विशाल परिवार में गाय, हिरण, बिल्ली, गिलहरी, खरगोश, कुत्ते आदि के साथ लता और पुष्प भी थे। अपने संस्मरणों में उन्होंने इन सबकी चर्चा की है। उन्होंने साहित्यकारों के लिए साहित्यकार संसद बनाई। मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत होने के कारण वे प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोगों की खुले दिल से सहायता करती थीं। महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। महादेवी वर्मा ने बी.ए. जबलपुर से किया। महादेवी वर्मा अपने घर में सबसे बड़ी थी उनके दो भाई और एक बहन थी। 1919 में इलाहाबाद में ‘क्रॉस्थवेट कॉलेज’ से शिक्षा का प्रारंभ करते हुए महादेवी वर्मा ने 1932 में उन्होंने प्रयाग विवि से संस्कृत में एमए किया। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना चाहतीं थीं। परन्तु महात्मा गांधी जी ने उन्हें नारी शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रेरित किया। अतः उन्होंने प्रयाग में ही महिला विद्यापीठ महाविद्यालय की स्थापना की। जिसकी वे कुलपति भी बनीं। कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ एक विशिष्ट गद्यकार थीं। ‘यामा’ में उनके प्रथम चार काव्य-संग्रहों की कविताओं का एक साथ संकलन हुआ है। ‘आधुनिक कवि-महादेवी’ में उनके समस्त काव्य से उन्हीं द्वारा चुनी हुई कविताऐं संकलित हैं। कवि के अतिरिक्त वे गद्य लेखिका के रूप में भी पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। ‘स्मृति की रेखाएं’ और ‘अतीत के चलचित्र’ उनकी संस्मरणात्मक गद्य रचनाओं के संग्रह हैं। ‘शृंखला की कड़ियाँ’ में सामाजिक समस्याओं, विशेषकर अभिशप्त नारी जीवन के जलते प्रश्नों के सम्बन्ध में लिखे उनके विचारात्मक निबन्ध संकलित हैं। रचनात्मक गद्य के अतिरिक्त ‘महादेवी का विवेचनात्मक गद्य’ में तथा ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ और ‘आधुनिक कवि-महादेवी’ की भूमिकाओं में उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा का भी पूर्ण प्रस्फुटन हुआ है। महादेवी वर्मा अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में ही बिताया। 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में रात 9 बजकर 30 मिनट पर उनका देहांत हो गया। महादेवी वर्मा जी एक प्रसिद्ध कवयित्री और एक सुविख्यात लेखिका तो थीं ही साथ ही वो एक समाज सुधारक भी थीं। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया। साथ ही महादेवी वर्मा जी ने महिलाओं को समाज में उनका अधिकार दिलवाने की और समाज में उचित आदर सम्मान दिलवाने के लिए कई महत्वपूर्ण एवं क्रांतिकारी कदम उठाये थे। महादेवी वर्मा ने भारत की गुलामी और आज़ादी दोनों को ही देखा है तथा आजादी के पश्चात समाज सुधारक के रूप में अपना अमूल्य योगदान दिया है। महादेवी वर्मा ने निरीह व्यक्तियों की सेवा करने का व्रत ले रखा था। वे बहुधा निकटवर्ती ग्रामीण अंचलों में जाकर ग्रामीण भाई-बहनों की सेवा सुश्रुषा तथा दवा निःशुल्क देने में निरत रहती थी। वास्तव में वे निज नाम के अनुरूप ममतामयी, महीयसी महादेवी थी। भारतीय संस्कृति तथा भारतीय जीवन दर्शन को आत्मसात किया था। उन्होंने भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में कभी समझौता नहीं किया। महादेवी वर्मा ने एक निर्भीक, स्वाभिमाननी भारतीय नारी का जीवन जिया। राष्ट्र भाषा हिन्दी के सम्बन्ध में उनका कथन है ‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’ उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित हिंदी सम्मेलन की अध्यक्षता भी की थी। 16 सितम्बर 1991 को महाकवि जयशंकर प्रसाद के साथ उनका युगल डाक टिकट जारी किया गया।
छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा की 34 वीं पूण्यतिथि पर विशेष : कोमल भावनाओं की संवाहक साहित्यकार महादेवी वर्मा
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