गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः, सब धरती कागज करूं, लिखनी सब बनराय। सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय।।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।
हिंदी पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के अवतार आदिगुरू महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। इस दिन महर्षि वेद व्यास के रूप में भगवान विष्णु की पूजा करने और अपने गुरूजनों से आशीर्वाद प्राप्त करने का विशेष विधान है। इस वर्ष गुरू पूर्णिमा 24 जुलाई दिन शनिवार को पड़ने के कारण विशेष संयोग का निर्माण कर रही है। भारत में हर धर्म के त्योहारों को धूमधाम से मनाने की परंपरा है।
महाभारत काल से ही देश में गुरुओं का स्थान सबसे ऊंचा रहा है। शिष्य को अंधकार से निकालकर सही मार्ग पर ले जाते हैं शिक्षक, गुरुओं को सम्मान देने के लिए गुरू पूर्णिमा मनाया जाता है। गुरू की महिमा अनंत है। समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को, चाणक्य ने चद्रंगुप्त मौर्य को श्रेष्ठ महान कुशल शासक बनाया। जिन्होंने देश की धारा को ही बदल दिया। जीवन में शिक्षक एवं गुरू का महत्व आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को श्री वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को गुरू पुर्णिमा के रूप में मानाया जाता है। आज के दिन भगवान वेद व्यास ने वेदों की रचना की थी वहीं 18 पुराणों व उप पुराणों की रचना की थी। समाज में ऋषि मुनियों तथा गुरुओं के द्वारा दिए गये ज्ञान को समाज योग्य बनाया व समाज को व्यवस्थित करने का कार्य किया। पंचम वेद महाभारत की रचना आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पूर्ण की थी। तथा विश्व का प्रसिद्ध आर्ष ग्रंथ ब्रहम सूत्र का लेखन कार्य भी आज के दिन प्रारंभ किया गया था। इन सब कार्यों को देखते हुए देवताओं ने वेद व्यास का पूजन किया। वेद व्यास जी ने बद्रीनाथ के समीप माणा गांव की गुफा में रहकर यह महत्वपूर्ण कार्य किया था। तभी से व्यास की पूजा गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। गुरू के ज्ञान के बिना मानव जीवन शून्य है। गुरू के ज्ञान व शिक्षा से ही सभी कार्य सफल होते हैं और आदर्श मानव का निर्माण होता है। माता-पिता व गुरुजन जो कहें उसे सुनें अपनी बुद्धि के अनुसार कार्य करें।