पर्यटन नगरी राजगीर के वैभारगिरी पर्वत के ऊंच शिखर पर अवस्थित भेलवा डोल जलाशय जून में रिकार्ड बारिश के बाबजूद सुखी हुई है, यह पर्यटन नगरी के प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण के लिए खतरे की घँटी है। राजगीर के वैभारगिरी पर्वत के ऊंचे शिखर पर भेलवा डोल जलाशय का आषाढ़ के महीने में भी सूखे रहना पर्यावरण के दृष्टिकोण से गम्भीर समस्या है लेकिन अफसोस है कि स्थानीय प्रशासन से लेकर वन एवँ पर्यावरण विभाग संवेदनशील नज़र नही आ रही है।भेलवा डोल जलाशय में बारिश से जमे पानी से ही सालों भर राजगीर के 22 कुंड और 52 धाराओं के जलस्रोत के रूप मे माना जाता है। हाल के दशकों में सूखे की मार ने इस जलाशय को पूरी तरह सूखा दिया। वर्ष 2019 में जब अधिकांश कुंडों की जल धाराएं बंद होने लगी तब नालंदा जिला प्रशासन से लेकर बिहार सरकार हरकत में आई थी और इसका विभागीय अधिकारियों की टीम ने स्थल निरीक्षण कर सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी जिसके बाद इस जलाशय को उड़ाही करने की औपचारिकता विभागीय निर्देश पर निभाई गयी और उड़ाही की खानापूर्ति की गई।
वैभारगिरी पर्वत के शिखर के बीचों बीच यह जलाशय लगभग 500 फिट के व्यास क्षेत्र में 20 फिट गहराई के साथ फैला हुआ है लेकिन अफसोस कि इसमें चुल्लू भर पानी आषाढ़ के बारिश के मौसम में भी जमा नही है।प्राचीन मगध के चक्रवर्ती सम्राट राजा जरासंध इसी भेलवा डोल जलाशय में स्नान के उपरांत सिद्धनाथ मन्दिर में पूजा अर्चना किया करते थे लेकिन आज इस जलाशय में पानी की बूंदें भी मयस्सर नही है।भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु जब 1920 ईसवी में राजगीर के कुंडों में स्नान के उपरांत गर्मजल के स्रोत का अध्ययन किये थे तब उन्होंने कहा था कि भेलवा डोल जलाशय में एकत्रित पानी पहाड़ो, गुफा में रिसकर पहाड़ के गंधक तत्व के सम्पर्क में आकर गर्म जल के रूप में कुंड के धाराओं में गिर रही है।बीते कई दशकों में वर्षा के अभाव के कारण राजगीर कुंड क्षेत्र के विभिन्न धाराओं के सूखने के उपरांत जब प्रशासन जागी तब आनन फानन में कुंड क्षेत्र के आसपास के पांडु पोखर सहित अन्य स्थानों के समरसेबल बोरिंग आदि को प्रशासन ने बंद करवाना शुरू किया।
बरसात के मौसम में भी जिस तरह भेलवा डोल जलाशय अभीतक सूखा हुआ है यह पर्यावरण सम्बंधित खतरे की ओर आगाह कर रहा है।बिहार सरकार के पर्यावरण संरक्षण की दिशा में लाया गया जल जीवन हरियाली प्रोजेक्ट से इस जलाशय की संरचना को अनुकूल बनाने की आवश्यकता है ताकि बरसात का पानी इस जलाशय में सालों भर एकत्रित रहे और राजगीर कुंड क्षेत्र की जल धाराएं यथावत चलती रहे।पर्यटन नगरी के सौंदर्य को चार चांद लगाने और अनेकों तरह से निखारने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि ऐसे प्राचीन जलाशयों को पुनर्जीवित करने की दिशा में सरकार द्वारा कदम उठाए जाए।