भिखारी ठाकुर ने “उस्तरे से उस्ताद” तक का सफर किया
●’पिया कहलन बहरा जाइब, कुछ दिन में लौट के आइब’ … नवनीत
●पुण्यतिथि पर याद किये गए भोजपुरी के महानायक भिखारी ठाकुर
●भिखारी ठाकुर अपने कला के माध्यम से पूरे विश्व में जीवित हैं
बिहारशरीफ, 10 जुलाई 2021 : स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में शंखनाद कार्यालय स्थित सभागार में शनिवार को मगही व भोजपुरी के महानायक, लोक संगीतकार, नाट्य निर्देशक स्व. भिखारी ठाकुर की 50 वीं पुण्यतिथि कवियों व साहित्यकारों ने उनके तस्वीर पर माल्यापर्ण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर मनाई।कार्यक्रम का संचालन कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासकार व साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी मशहूर शायर व गजलकार नवनीत कृष्ण ने किया।
भिखारी ठाकुर को अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए, साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव, साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि भिखारी ठाकुर समाज के अनगढ़ हीरा थे। उन्हों ने समाज में फैली कुरीतियों पर नाटक व गीतों के माध्यम से करारा प्रहार किया। भिखारी ठाकुर युगद्रष्टा थे। भिखारी ठाकुर अपने कला के माध्यम आज भी विश्व जनमानस में जीवित हैं। भिखारी ठाकुर ने कला के माध्यम से समाज की बुराइयों को खत्म करने का प्रयास किया। आज मगही व भोजपुरी के महानायक, लोक संगीतकार, नाट्य निर्देशक स्व. भिखारी ठाकुर की 50 वीं पुण्यतिथि है। भिखारी ठाकुरजी का जन्म 18 दिसंबर 1887 को हुआ और मृत्यु 10 जुलाई 1971 को हुई थी। भोजपुरी के भाषा के लोक प्रसिद्ध महानायक कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर बिहार के सारण जिले कुतुबपुर दियारा गांव के रहने वाले थे। उनकी प्रमुख कृतियों में- बिदेसिया, भाई विरोध, कलयुग प्रेम, ननद भौजाई, राधे श्याम बहार हैं। ऐसा कलाकार भोजपुरी में दुबारा कोई जन्म नहीं ले सकता। भिखारी ठाकुर ने कुल 29 पुस्तकें लिखीं। आगे चलकर वह भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के समर्थ प्रचारक और संवाहक बने। भिखारी ठाकुर ने “उस्तरे से उस्ताद” तक का सफर तन्मयता के साथ तय किया।
मौके पर अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के अनुसार भिखारी ठाकुर एक समर्थ सामाजिक चिंतक थे । बेटी बचाओ, जैसे महत्वपूर्ण सवाल पर आज की वर्तमान सरकार स्लोगन प्रचारित कर रही है। जबकि भिखारी ठाकुर अपने समय में ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों को बेटियों के प्रति सामाजिक नजरिया और मानसिक बदलाव लाने को संदेश दिया।अपने नाटकों के द्वारा उन्होंने सामाजिक क्रांति का संदेश जन.-जन तक पहुंचाने का काम किया। आज के वर्तमान परिवेष में उनका अनुसरण करते हुए समाज को पुनः जागरूक करने की जरूरत है।
साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने भिखारी ठाकुर को नमन करते हुए कहा कि आज के युग में जहाँ हमारी पीढियां देश के महान व्यक्तित्व और उनके द्वारा सामाजिक उत्थान और विकास के स्थापित कीर्तिमान को भुलाते जा रहे हैं। ऐसे में साहित्यिक मंडली शंखनाद द्वारा महान विभूतियों को याद करते हुए उनके योगदान पर सामाजिक विमर्श करना अपने आप में ऐतिहासिक पहल हैं।इससे हमारे युवाओं को सीखने की जरूरत हैं।कार्यक्रम में पीएमएस कॉलेज के प्राचार्य ,हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) बृजनन्दन प्रसाद ने बताया कि भिखारी ठाकुर ने जो सामाजिक चेतना का अलख जगाया था उसे भुलाया नहीं जा सकता। उनके द्वारा गाये गीत आज भी समाज को आईना दिखाने का काम कर रहा हैं। भिखारी ठाकुर बीसवीं शताब्दी के महान लोक नाटककार,गीतकार, निर्देशक एवं लोक-कलाकारों में से एक रहे हैं जिन्हें भोजपुरी भाषा का शेक्सपियर कहा जाता है। भिखारी ठाकुर ने सन 1917 में अपनी नाच मंडली की स्थापना कर भोजपुरी भाषा में बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी-बेचवा, भाई-बिरोध, पिया निसइल, गंगा-स्नान, नाई-बाहर, नकल भांड और नेटुआ सहित कई नाटक, सामाजिक-धार्मिक प्रसंग गाथा और गीतों की रचना की है। उन्होने अपने नाटकों और गीत-नृत्यों के माध्यम से तत्कालीन समाज की समस्याओं और कुरीतियों को सहज तरीके से सामाजिक मंच पर प्रस्तुत करने का काम किया था।
इंजिनियर-वैज्ञानिक डा. आनन्दवर्द्धन ने श्रद्धा सुमन समर्पित कर कहा कि हरेक वर्ष से कहीं अधिक आत्मिक लगावपूर्ण कवि- नाटककार भिखारी ठाकुर जी को कोरोना काल में याद कर रहे हैं। ये भोजपुरी भाषी होते हुए मधुर मगही समाहित कर पुरबिया भाषा स्थापित कर दिए। बचपन से ही विदेशिया देख और बटोहिया सुन लगा ही नहीं कि रचना हमारे मगही से अलग है- सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मेरो प्राण बसे हिमखोह रे बटोहिया…। मानव पढ़- लिख नहीं सकता पर मातृभाषाविद् , वेत्ता, आचार्य हो सकता है, समाज को सही दिशा और गति दे सकता है। उस कालान्तर हिमखोह कितनों ने देखा सुना समझा होगा? ए अमर रहें और सबों की प्रेरणाश्रोत बने रहें।
शिक्षाशास्त्री मो.जाहिद हुसैन ने श्रद्धा सुमन अर्पित कर कहा कि भोजपुरी के शेक्सपीय कहे जाने वाले लोक कलावंत पद्मश्री भिखारी ठाकुर जी लोक कलाकार ही नहीं थे, बल्कि जीवन भर सामाजिक कुरीतियों और बुराइयों के खिलाफ कई स्तरों पर जूझते रहे। उनके प्रसिद्ध नाटक के कथानक पर बनी भोजपुरी फिल्म ‘बिदेसिया’ आज भी लाखों-करोड़ों दर्शकों के बीच पहले जितनी ही लोकप्रिय है।उस फिल्म में उन्होंने एक गीत के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज की है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए भिखारी ठाकुर और उनके ग्रामीण मंडली के सामाजिक जागरूकता के बारे में चर्चा की और भिखारी ठाकुर के गीत –‘पिया कहलन बहरा जाइब, कुछ दिन में लौट के आइब किया हो मोरे राम सुकवा उगल तब गइलन भागल हो राम’… ने भावपूर्ण अंदाज में प्रस्तुत किया।इस दौरान समाजसेवी धीरज कुमार, लेखिका प्रियारत्नम, रंगकर्मी जयंत अमृत, शुभम कुमार शर्मा, नितिन कुमार, राजदेव पासवान, सुरेन्द्र कुमार शर्मा सहित अनेक लोगों ने परिचर्चा में भाग लिया।