‘माँ बिचारी रो पड़ी ये सोचकर, बेटा क्योंकर वक़्त पर आया नही। राम ने मस्जिद कोई तोड़ी नहीं’ पीर ने मन्दिर कोई ढ़ाया नहीं। बेच देंगे ये लुटेरे मुल्क को, ये हक़ीक़त है कोई माया नहीं। तान छेड़ी है मुख़ालिफ़ जुल्म के, राग दरबारी कभी गाया नहीं। – कुमार आर्यन गयावी
बिहारशरीफ, नालंदा 27 जून 2021 : बज्म-ए-इत्तेहाद नालन्दा की 163 वीं तरही नशिश्त पर काव्य गोष्ठी और मुशायरा का आयोजन शहर के नामचीन शायर व साहित्यकार आफताब हसन शम्स की अध्यक्षता में दायरा पर स्थित शायर आफताब हसन शम्स साहब के आवास पर रविवार की रात एक दिवसीय काव्य गोष्ठी व मुशायरा का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शायर व साहित्यकार आफताब हसन शम्स ने लोगों से आपसी सदभाव और प्रेम से रहने की अपील की और इस तरह की साहित्यिक कृतियों को जीवंत बनाए रखने की अपील की, क्योंकि साहित्य और साहित्यकार ही देश और दुनियां को नई दिशा दे सकता है।काव्य गोष्ठी और मुशायरा का मंच संचालन बज्म-ए-इत्तेहाद नालंदा के युवा सचिव शायर तनवीर साकित ने किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए तनवीर साकित ने बज्म ए इत्तेहाद नालंदा के गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि बज्म ए इत्तेहाद शेर ओ शायरी के साथ साथ गंगा-जमुनी तहजीब को बरकरार रखते हुए हमेशा राष्ट्रीय एकता और सद्भाव को सशक्त बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।
मौके पर नामचीन शायर बेनाम गिलानी ने अपनी शे’र- ‘इक दास्तान लिखूंगा इंसानियत की आज। होने न दूंगा राइगां खून ए जिगर को मैं’। सुना कर काफी वाहवाही लूटी।
मशहूर शायर आफताब हसन शम्स ने ‘महफ़िल में शम्स एक ही खाना खराब है। अर्से से जानता हूं उस आशुफ्ता सर को मैं।’ सुन लोगों ने खूब सराहा। प्रो इम्तियाज अहमद माहिर- ‘कांटो के बदले फूल निछावर करूंगा मैं। अपना बनाऊँगा दिल ए बेदादगर को मैं’। मंच संचालन करते हुए शायर तनवीर साकित ने ‘अब आदमी को आदमी डसता है रात दिन। कहता नहीं हूं जानवर, अब जानवर को मैं। आता है अब तो लफ्ज लुटेरा जुबान पर। भगवान बोलता था कभी डाक्टर मो मैं’। पढ़ा जिसे सभी श्रोता ने खूब सराहा। कवि व साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने समकालीन कविता – ‘तेरे कंधे पर दुनिया से चला जाएगा ! मेरे कंधे पर बैठा मेरा बेटा,जब मेरे कंधे पे खड़ा हो गया। मुझी से कहने लगा, देखो पापा मैं तुमसे बड़ा हो गया। मैंने कहा, बेटा इस खूबसूरत गलतफहमी में भले ही जकड़े रहना। मगर मेरा हाथ पकड़े रखना,जिस दिन यह हाथ छूट जाएगा। बेटा तेरा रंगीन सपना भी टूट जाएगा। इन कविता के माध्यम से आपसी भाईचारा, प्यार, मोहब्बत व् अमन का सन्देश दिया। साहित्यकार व गीतकार प्रो. (डॉ.) लक्ष्मीकांत सिंह ने डॉ० इकबाल के उस शेर से अपना वक्तव्य शुरू किया जिसमें डॉ० इ़कबाल ने कहा था- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा। मेरा काम है कि चरा़ग जलाते चलो, रास्ते में दोस्त हो या दुश्मन हो। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आपसी सदभाव, प्रेम व मानवता का पै़गाम शायरों व कवियों के ज़रिए फैलाना है। यह आयोजन भी इसी की एक कड़ी है। उन्होंने अपनी रूमानी शे’र ‘जमीं-आसमां अगर ना बदले तो क्या, इंसान के अदब वो अंदाज बदल गए हैं। रूह-ए-तमद्दुन ग़र ना बदले तो क्या, घरों में दस्तर-ख़्वान अब अलग हो गए हैं। शेर,ग़र चारदीवारी में कैद हुए तो क्या, नाज़नीन को अब लोग शेरनी कहने लगे हैं’ सुनाते हुए लोगों को आत्मविभोर क्र दिया।
गुफरान नजर ने अपनी शे’र ‘बचपन की याद आई तो आती चली गई। हसरत से देखता ही रहा अपने घर को मैं’। सुनाया।
कुमार आर्यन गयावी ने मर्मस्पर्शी गजल ‘माँ बिचारी रो पड़ी ये सोचकर, बेटा क्योंकर वक़्त पर आया नही। राम ने मस्जिद कोई तोड़ी नहीं’ पीर ने मन्दिर कोई ढ़ाया नहीं। बेच देंगे ये लुटेरे मुल्क को, ये हक़ीक़त है कोई माया नहीं। तान छेड़ी है मुख़ालिफ़ जुल्म के, राग दरबारी कभी गाया नहीं।
नालंदा जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन सचिव महेंद्र कुमार ‘विकल’ ने जमाने को आईना दिखाते हुए ग़ज़ल के माध्यम से ‘आदमी के काटने से सांप भी मरने लगे है, इसलिए इंसान से इंसान अब डरने लगे है। धर्म वो ईमान की बातें किताबी रह गई, स्वार्थ सिद्धि के लिए सब झूठ अब गढ़ने लगे है। जात-ओ- मज़हब के झगड़े सब सियासी खेल हैं, देखिए इस जाल में सब लोग ही फसने लगे हैं। सुनाते हुए लोगों को झकझोरा। जिसे सुनकर लोगों सोचने पर मजबूर हो गये।
प्रो. (डा.) जियाउर रहमान जाफरी ने ‘आंखो में जितने आंसू थे दामन पे आ गए। जब छोड़कर के जाने लगा अपने घर को मैं’। शायर अशफाक चकदीनवी- ‘दसतार जिस के सर पे हो और मोतबर भी हो। मुश्किल में हूं कि ढूंढूं कहां उस बशर को मैं’। शायर जफर आलम फिरदौसी- ‘खन्दां न हो सका दिल ए मुजतर तेरे बगैर। खामोश तकता रहता हूं दीवार ओ दर को मैं’। नवनीत कृष्ण- ‘मैं आज तक भी तुझको भुला पाया ही नहीं। तकता रहूंगा कब तलक इस रहगुजर को मैं’।
वसीम असगर- ‘अफकार से गूरेजां जमाने से बेख़बर। अब क्या कहूं जमाने के अहले नजर को मैं’।
तंग अययूबी- ‘डाकू है चोर है कि लुटेरा है क्या पता। पहचानता नहीं हूं अभी राहबर को मैं’।
आसिफ अली तालिब- ‘रहजन की सब सिफात अभी राहबर में हैं। पहचानता नहीं हूं अभी राहबर को मैं’।
युवा शायर अमन कुमार नालान्द्वी ने ‘तेरे सिवा कहीं भी ठिकाना नहीं मिला। जाए पनाह ढूंढने को जाऊं किधर को मैं’। सुनाया।
इस अवसर पर अधिवक्ता राणा रंजीत सिंह, मास्टर फारुक आजम, मो. जावेद अख्तर, मो. आजम, पत्रकार मो. दानिश सहित बिहारशरीफ के विभिन्न मोहल्लों के कई शायर व कवियों ने इस मुशायरे में अपनी मौजूदगी से लोगों का दिल जीत लिया और गंगा-जमुनी तहज़ीब की रवायत को नए सिरे से ज़िंदा रखने की जरूरत पर बड़े सलीके के साथ जोर दिया।