सहज जीवन का सरल सूत्र दे गये संत रविदासजी
● संत रविदास समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाई
राकेश बिहारी शर्मा – बिहारशरीफ दलित विकास कमेटी नालंदा के द्वारा नगर निगम परिसर में देश के सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, जन कवि, सर्व समाज के उत्थान में अहम भूमिका निभाने वाले भक्तिकालीन संतशिरोमणि गुरु रविदास जी की 648वीं जयंती समारोह एवं व्याख्यान माला का आयोजन बड़ी श्रद्धा भाव से किया गया। जिसकी अध्यक्षता कार्यक्रम के संयोजक अनिल रविदास ने जबकि संचालन साहित्यकार महेंद्र कुमार विकल ने की।
मौके पर महापौर श्रीमती अनिता देवी, नगर आयुक्त श्री दीपक कुमार मिश्रा, उप नगर आयुक्त रीना महतो, समाजसेवी परमेश्वर महतो, साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, सरदार वीर सिंह, महेश दास ने संत शिरोमणि रविदास जी के प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
मौके पर जयंती समारोह में “शंखनाद” साहित्यिक मंडली के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा है कि जन कवि संत शिरोमणि रविदासजी भारत में 15वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक थे। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। छुआछूत आदि का उन्होंने विरोध किया और पूरे जीवन इन कुरीतियों के खिलाफ ही काम करते रहे। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से जातिप्रथा का घोर विरोध किया। वे एक मानवतावादी संत थे। उन्होंने अमानवीय व्यवस्था को स्वीकार करने से इंकार किया। संत रविदास समानतापूर्ण समाज के समर्थक थे। उनकी कविताओं से भी यही सीख मिलती है। उन्होंने आह्वान किया कि समाज में जातीय भेदभाव को समाप्त करने के लिये संत रविदास जी द्वारा बताये गये मार्ग पर चलने का संकल्प लें।
संचालन करते हुए साहित्यकार कवि महेंद्र कुमार विकल ने कहा कि आज भी संत रविदास के विचार समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। बल्कि विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण संत रविदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।
मौके पर बिहार सिख फेडरेशन नालंदा के अध्यक्ष भाई सरदार वीर सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि संत रविदास मध्ययुगीन इतिहास के संक्रमण काल में हुए थे, उस समय ब्राह्मणों की पाशविक मनोवृति से दलित और उपेक्षित पशुवत जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। रविदास जी ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। संत रविदास की 41 कविताओं को गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल किया गया है।
नगर आयुक्त दीपक कुमार मिश्रा ने कहा कि संत रविदास जी एक समाज सुधारक, दार्शनिक, भविष्यद्रष्टा, जैसी अनेक विशेषताओं से विभूषित थे। उनके व्यक्तित्व को एक जाति विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता है।
समाजसेवी परमेश्वर महतो ने कहा संत रविदास जी किसी एक जाति या धर्म के नही अपितु समग्र समाज व धर्म के हैं। उनका जीवन चरित्र ही समाज के आदर्श और संबल प्रदान करने वाला रहा है।
समारोह में अध्यक्षता करते हुए अध्यक्ष अनिल रविदास ने कहा कि रविदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। आज भी संत रविदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
राजू रविदास ने कहा- रविदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने अनुयायियों, समाज और देश के कई लोगों को धार्मिक और सामाजिक संदेश दिया था।
मकसूदन शर्मा ने कहा कि संत रविदास का संदेश किसी समुदाय विशेष के लिए नहीं, पूरे मानव समाज और राष्ट्र के सभी पीड़ित तबकों के लिए है। रविदास मानवता को एक माला में पिरोना चाहते थे। गैर बराबरी को खत्म करना चाहते थे। छुआछूत को समाप्त करना चाहते थे।
जनक दास ने कहा- संत रविदास का कर्मों में विश्वास था। वे यह भी मानते थे कि पवित्र ग्रंथों को पढ़ना भी सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है।
रणजीत कुमार ने कहा कि संत रविदास की शिक्षा आज भी समाज को प्रेरणा देती है। वे हमारे प्रेरणास्रोत हैं। वे कर्मों में विश्वास करते थे।
मौके पर समाजसेवी मनोज ताती ने कहा कि रविदास ने छुआछूत और जातिवाद को खत्म कर आपसी सद्भाव एवं प्रेम से रहना सिखाया। जिसके लिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
इस अवसर पर समारोह में संजय रविदास, अजय रविदास, मनोज रविदास, महेश दास, संतोष राजवंशी, सिकंदर राजवंशी सहित सैकड़ों अन्य श्रद्धालुओं ने संत गुरु रविदास जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।