राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले को भारतीय नारीवाद की जननी माना जाता है। रामदेव चौधरी
बिहारशरीफ :- बिहारशरीफ के अस्पताल चौक स्थित अतिपिछड़ा/ दलित/ अल्पसंख्यक संघर्ष मोर्चा के तत्वाधान में माता सावित्रीबाई फुले के चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्प अर्पित करते हुए हर्षोल्लास के साथ जयंती मनाई गई।
इस मौके पर अतिपिछड़ा/ दलित/ अल्पसंख्यक संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामदेव चौधरी ने कहा कि राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले एक महाराष्ट्रीयन कवियित्री,शिक्षिका और समाज सुधारक थी।सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में हुआ था। इनके पिता का नाम खान्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1841 में ज्योतिबा राव फुले से हुआ था। सावित्रीबाई फुले ने अहमदनगर में सिंधिया फर्रार के स्कूल में पढ़ाई की,जहां उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण के लिए एक कोर्स भी किया। सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका और प्रधानाध्यापिका थी और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थी। उन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पुणे के भिड़े वाडा में देश का पहला लड़कियों का स्कूल खोला था। सावित्रीबाई ने महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए महिला सेवा मंडल की स्थापना की थी। सावित्रीबाई ने बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाया था और विधवा पुनर्विवाह की वकालत की थी। सावित्रीबाई को भारतीय नारीवाद की जननी माना जाता है। सावित्रीबाई के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया है। सावित्रीबाई की जयंती 3 जनवरी, बालिका दिवस के रूप में मनाई जाती है। साल 2015 में उनके सम्मान में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय कर दिया गया।
जब 1897 में नालासोपारा के क्षेत्र में ब्यूबोनिक प्लेग उभरा,तो सावित्रीबाई और उनके दत्तक पुत्र यशवंत ने इसे प्रभावित व्यक्तियों के इलाज के लिए एक क्लीनिक बनाया। यह सुविधा पुणे के पश्चिम उपनगरों में संक्रमण मुक्त वातावरण में बनाई गई थी। सावित्रीबाई ने पांडुरंग बाबाजी गायकवाड़ के बेटे को बचाने के प्रयास में वीरता पूर्वक अपना जीवन बलिदान कर दिया। मुंढवा के बाहर महार बस्ती में प्लेग की चपेट में आने का पता चलने के बाद सावित्रीबाई फुले गायकवाड़ के बेटे के पास गई और उन्हें अस्पताल ले गई। सावित्रीबाई फुले इस प्रतिक्रिया के दौरान प्लेग की चपेट में आ गई और 10 मार्च 1897 को रात 9:00 बजे उनका निधन हो गयी।
इस अवसर पर उपस्थित सभी ने एक स्वर से कहा कि सावित्रीबाई फुले के रास्ते पर ही चलकर भारत एक शिक्षित देश बन सकता है।
इस अवसर पर अतीपिछड़ा/ दलित/अल्पसंख्यक संघर्ष मोर्चा के जिला महासचिव उमेश पंडित जिला उपाध्यक्ष महेंद्र प्रसाद आशुतोष कुमार मौर्य अधिवक्ता अवधेश कुमार रंजन कुमार सुख नारायण भैया जी सनी कुमार जितेंद्र कुमार प्रियदर्शी राजेश ठाकुर आदि लोगों उपस्थित थे।