जवाहरलाल नेहरू की 60 वीं पूण्यतिथि पर विशेष: एक अनूठे और दूरदृष्टा नेता
● नेहरू जी में अद्भुत लेखन क्षमता और विद्वता था
●पहले भारत में 20 नवम्बर को मनाया जाता था बाल दिवस
र राकेश बिहारी शर्मा——27 मई को भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के नेतृत्वकर्ता एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्य तिथि है। नेहरू जी के योगदान के बिना 21 वीं सदी के भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। आधुनिक भारत के शिल्पी पंडित जवाहर लाल नेहरू का कद छोटा दिखाने के लिए कोई चाहे कितना भी गड़े हुए मुर्दे उखाड़े, मगर नेहरू का कद छोटा होने वाला नहीं है।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका जन्मदिन प्रत्येक वर्ष बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था, जो एक धनाढ्य परिवार के थे और माता का नाम स्वरूपरानी था। उनके पिता पेशे से वकील थे।
जवाहरलाल नेहरू उनके इकलौते पुत्र थे और 3 पुत्रियां थी। नेहरू जी को बच्चों से बड़ा स्नेह और लगाव था और वे बच्चों को देश का भावी निर्माता मानते थे।
जवाहरलाल नेहरू की शिक्षा
जवाहरलाल नेहरू को दुनिया के बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन से पूरी की थी। उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। हैरो और कैम्ब्रिज में पढ़ाई कर 1912 में नेहरू जी ने बार-एट-लॉ की उपाधि ग्रहण की और वे बार में बुलाए गए।उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद नेहरू जी साल 1912 में स्वदेश वापस लौट आए और स्वतंतत्रा संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
नेहरू की राजनीति में प्रवेश और कमला से शादी
नेहरू जी ने साल 1916 में कमला जी से शादी कर ली। इसके एक साल बाद 1917 में होम रुल लीग से जुड़े और देश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई। वहीं, साल 1919 में नेहरू जी पहली बार गांधी जी के संपर्क आए। यहीं से नेहरू जी की राजनीति जीवन की शुरुआत हुई। इसके बाद गांधी जी के साथ मिलकर नेहरू जी ने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
नेहरू जी ने राजनीति में प्रवेश देहरादून में की थी। दरअसल सन् 1920 में जब देहरादून में कांग्रेस ने राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया तो उसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू ने ही की थी। बिलायत से लौटने के बाद उनका यह पहला राजनीतिक कार्यक्रम था। इस सम्मेलन में लाला लाजपत राय और किचलू जैसे बड़े नेता शामिल हुए थे।
जवाहर लाल नेहरू शुरू से ही गांधी जी से प्रभावित रहे और 1912 में कांग्रेस से जुड़े। 1920 के प्रतापगढ़ के पहले किसान मोर्चे को संगठित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
1928 में लखनऊ में साइमन कमीशन के विरोध में नेहरू घायल हुए और 1930 के नमक आंदोलन में गिरफ्तार भी हुए। उन्होंने 6 माह जेल काटी।
लाहौर अधिवेशन के अंतर्गत पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार 31 दिसंबर 1929 ई. को रावी नदी के तट पर तिरंगे को 12 बजे रात में फहराया था। देश की आजादी की खातिर नेहरू जी कई बार जेल गए। इसके बावजूद उनका मनोबल कम नहीं हुआ। सन् 1947 में भारत को आजादी मिलने पर जब भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार वल्लभभाई पटेल और आचार्य कृपलानी को सर्वाधिक मत मिले थे। किंतु महात्मा गांधी के कहने पर दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू 1947 में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। आजादी के पहले गठित अंतरिम सरकार में और आजादी के बाद 1947 में भारत के प्रधानमंत्री बने थे। हर वर्ष हमारे देश में 14 नवम्बर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन होता है। बाल दिवस को लेकर बच्चे काफी उत्साहित होते हैं। इस दिन स्कूलों में बच्चों के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, साथ ही खेलों का भी आयोजन किया जाता है।
बाल दिवस का इतिहास
बाल दिवस भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है। पंडित नेहरू का जन्म 14 नवंबर को हुआ था। नेहरू जी बच्चों को बेहद प्यार करते थे बच्चे उन्हें चाचा नेहरू करके पुकारते थे। इसलिए यह खास दिन बच्चों को समर्पित किया गया है। नेहरू जी सभी बच्चों को भारत का आने वाला भविष्य मानते थे इसलिए उनका मानना था कि बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने बच्चों की शिक्षा को पहली प्राथमिकता दी थी।
नेहरू जी में अद्भुत लेखन क्षमता और विद्वता था
कहा जाता है कि महात्मा गांधी को सरदार पटेल से अधिक नेहरू इसलिए भी पसन्द थे क्योंकि धारा प्रवाह अंग्रेजी और हिन्दी बोलने के साथ ही उनमें लेखन की अद्भुत क्षमता भी थी और इसके लिए वह बहुत अध्ययन करते थे। इसी वजह से वह भारत से बाहर भी सबसे लोकप्रिय भारतीय नेता थे। नेहरू जी ने कई ग्रन्थ भी लिखे जिनमें डिस्कवरी ऑफ इंडिया, एन ऑटोबायोग्रफी ( टुवार्ड्स फ्रीडम), ए ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री, लेटर फाॅर नेशन, लेटर फ्रॉम अ फादर टु हिज डॉक्टर एवं द युनिटी ऑफ इंडिया जैसे कालजयी ग्रन्थ शामिल हैं। इनमें से एन ऑटोबाइग्राफी की शुरुआत उन्होंने देहरादून जेल से ही की थी। इस ग्रन्थ में उन्होंने पहाड़ के नैसर्गिक सौंदर्य और देहरादून का भी उल्लेख किया है। भारत के लिए नेहरू की जेल की कोठरी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नेहरू को अपनी विख्यात पुस्तक ”डिस्कवरी आफ इण्डिया“ लिखने की यहीं सूझी थी और उस पुस्तक के अधिकांश हिस्से इसी कोठरी में लिखे गए थे। नेहरू को उनकी पुत्री इन्दिरा गांधी इसी वार्ड में मिलने आती थीं।
पहले देश में 20 नवम्बर को मनाया जाता था बाल दिवस
अंतरराष्ट्रीय या विश्व बाल दिवस इस दिन नहीं बल्कि हर साल 20 नवंबर को मनाया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि एक समय भारत में भी इसी दिन बाल दिवस मनाया जाता था। यह दिवस अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को बढ़ावा देने, दुनिया भर में बच्चों में जागरूकता और बच्चों के कल्याण में सुधार करने के लिए मनाया जाता है। 20 नवंबर एक महत्वपूर्ण तारीख है क्योंकि इसी दिन 1959 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाल अधिकारों को अपनाने की घोषणा की थी। इसके बाद इस वर्ष से उनके जन्मदिन को बाल दिवस समारोह की आधिकारिक तारीख के रूप में स्थापित करने के लिए प्रस्ताव जारी किया गया, तभी से बाल दिवस भारत में 14 नवंबर को मनाया जाता है। भारत के अलावा अन्य देशों में अभी भी 20 नवंबर को ही बाल दिवस मनाया जाता है।
बाल दिवस मनाने का उद्देश्य
पंडित नेहरू के अनुसार बच्चे ही हमारे समाज का आधार हैं। इसलिए इस दिन को बच्चों के अधिकारों, उनकी देखभाल करने और उनको अच्छी शिक्षा देने के साथ ही लोगों को इस बारे में जानकारी देना ही इसका मुख्य उद्देश्य है। पंडित नेहरू का मानना था कि बच्चे ही हमारा आने वाला कल है और उनके कंधों पर देश की जिम्मेदारी है।
जवाहरलाल नेहरू का निधन
साल 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद जवाहर लाल नेहरू पहले प्रधानमंत्री बने और 1964 तक, जब तक उनमें सांसें रहीं, वह देश का नेतृत्व करते रहे। 20 नवंबर 1962 को जब प्रधानमंत्री नेहरू ने चीन के साथ युद्ध में भारत की हार स्वीकार की तो वह अंदर से टूट चुके थे। नेहरू जी को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब उन्होंने चीन की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था लेकिन चीन ने 1962 में धोखे से आक्रमण कर दिया था। नेहरू जी इसे चीन का विश्वासघात मानते थे, यही वजह थी कि इस सदमें से वह बीमार हो गए और लगभग एक साल उन्होंने कश्मीर में बिताया जिससे उनके सेहत में सुधार हो सके, लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि वो अंदर से निराशा और दुख में डूब चुके थे। नेहरू जी इसे चीन का विश्वासघात मानते थे, और चीन के इस धोखे के बाद से नेहरू टूट गए थे। जनवरी 1964 में नेहरू जब भुनेश्वर के दौरे पर थे, तब उनको हार्ट अटैक आया था, लेकिन तब डॉक्टरों ने संभाल लिया था और उन्हें आराम की सलाह दी थी। लेकिन 26 मई 1964 की शाम जब नेहरू अपनी बेटी इंदिरा के साथ छुट्टियां मनाकर दिल्ली लौटे तो रात 8 बजे वह सीधे अपने कमरे में चले गए और दवाई लेकर लेट गए। नेहरू 26-27 मई की रात सो नहीं पाए थे और उन्हें पीठ में भयंकर दर्द उठ रहा था। 27 मई 1964 को सुबह 6.30 बजे के करीब उन्हें पैरालिसिस का अटैक आया और फिर तुरंत बाद हार्ट अटैक भी आ गया। नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के बुलाने पर डॉक्टर मौके पर पहुंचे और नेहरू को बचाने की कोशिश की, 8 घंटे तक वह कोमा में रहे, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
27 मई 1964 की दोपहर 2 बजकर 5 मिनट पर रेडियो के जरिए ये ऐलान हुआ कि पंडित जवाहर लाल नेहरू का निधन हो गया है। रोशनी खत्म हो गई है। उस दिन प्रधानमंत्री आवास के बाहर लाखों लोगों का हुजूम उमड़ा था जो अपने नेता को अंतिम विदाई देने आए थे। 29 मई को पंडित नेहरू का अंतिम संस्कार हुआ, जिसमें दुनियाभर के नेता और राजनयिक आए थे।