भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में तप रही धरती,●बढ़ते तापमान से स्वास्थ्य प्रणाली पर नुकसानदेह असर● जानलेवा गर्मी में लू का बढ़ता प्रकोप
राकेश बिहारी शर्मा :- देशभर में गर्मी बढ़ती जा रही है और पारा बढ़ने के साथ ही लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका असर दिखायी दे रहा है। जैसा कि भारत में अप्रैल से लेकर जून महीने के आखिरी सप्ताह तक तेज गर्मी का मौसम होता है और इसी मौसम में तेज गर्म हवाएं या लू का मौसम भी आता है। बिहार में भीषण गर्मी और लू का प्रकोप शुरू हो चुका है। कई जिलों में पारा 45 डिग्री के पार हो गया है। गर्मी के इस मौसम में स्वयं को सुरक्षित रखना आवश्यक है। जरा सी लापरवही स्वास्थ्य के लिए काफी घातक हो सकती है।जानलेवा लू का समय से बहुत पहले आ जाना देश के लिए बड़े खतरे की निशानी है। लू केवल इंसान के लिए शारीरिक संकट ही नहीं है। बल्कि निम्न वर्ग, खुले में काम करने वालों आदि के साथ-साथ किसान और मजदूर के लिए सामाजिक-आर्थिक रूप से भी विपरीत प्रभाव डालती है। इन दिनों मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र और रायलसीमा क्षेत्र के कुछ हिस्सों सहित मध्य भारत के कई शहरों में जबरदस्त गर्मी पड़ रही है।भारतीय मौसम विभाग के 150 से अधिक केंद्रों पर 28 अप्रैल को अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया। साथ ही, लू और अत्यधिक गर्मी का असर उत्तर, पूर्वी एवं दक्षिणी राज्यों में देखा गया है। कई जगह तो समय से एक महीने पहले 28 मार्च को अधिकतम तापमान 41 डिग्री सेल्सियस से अधिक रिकॉर्ड किया गया था। मौसम विभाग ने कहा है कि देश के अधिकांश इलाकों में अधिकतम तापमान धीरे-धीरे बढ़ने की संभावना है, जिससे आने वाले 45 दिन पश्चिम मध्य प्रदेश, उत्तरी आंतरिक कर्नाटक और विदर्भ सहित अलग-अलग इलाके लू की चपेट में हैं या होंगे। सौराष्ट्र और कच्छ, रायलसीमा, तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, कराईकल एवं केरल और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में गर्म और आर्द्र स्थिति की भविष्यवाणी की गयी है। इस साल कई हिस्सों में मार्च में ही लू चलने लगी थी।
लू अर्थात हीट वेव आम तौर पर रुकी हुई हवा की वजह से होती है। उच्च दबाव प्रणाली हवा को नीचे की ओर ले जाती है. यह शक्ति जमीन के पास हवा को बढ़ने से रोकती है। नीचे बहती हुई हवा एक टोपी की तरह काम करती है। यह गर्म हवा को एक जगह पर जमा कर लेती है। हवा के चले बिना बारिश नहीं हो सकती है, गर्म हवा को और गर्म होने से रोकने के लिए कोई उपाय नहीं होता है। इंसान के शरीर का औसत तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है।
जब बाहर तापमान 40 से अधिक हो और हवा में बिलकुल नमी न हो, तो यह घातक लू में बदल जाती है। शरीर का तापमान बढ़ने से शरीर का पानी चुकने लगता है और इसी से चक्कर आना, कोमा में चले जाना, बुखार, पेट दर्द, मितली आदि के रूप में लू इंसान को बीमार करती है। शरीर में पानी की मात्रा कम होने से मौत हो सकती है।
हमारा तंत्र जानता है कि आने वाले दिनों में गर्मी और लू का प्रकोप बढ़ना ही है। चार साल पहले पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा तैयार पहली ‘जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट’ में आगाह किया गया है कि 2100 के अंत तक भारत में गर्मियों (अप्रैल-जून) में चलने वाली लू या गर्म हवाएं तीन से चार गुना अधिक हो सकती हैं। घनी आबादी वाले गंगा नदी बेसिन के इलाकों में इसकी मार ज्यादा तीखी होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मियों में मानसून के मौसम के दौरान 1951-1980 की अवधि की तुलना में 1981-2011 के दौरान 27 प्रतिशत अधिक दिन सूखे दर्ज किये गये।
इसमें चेताया गया है कि बीते छह दशक के दौरान बढ़ती गर्मी और मानसून में कम बरसात के चलते देश में सूखाग्रस्त इलाकों में इजाफा हो रहा है। खासकर मध्य भारत, दक्षिण-पश्चिमी तट, दक्षिणी प्रायद्वीप और उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्रों में औसतन प्रति दशक दो से अधिक अल्प वर्षा और सूखे दर्ज किये गये। संभावना है कि अल्प वर्षा की आवृत्ति में भी औसतन वृद्धि हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से तैयार जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट 2022 के अनुसार 2021 में भीषण गर्मी के चलते भारत में सेवा, विनिर्माण, खेती और निर्माण क्षेत्रों में लगभग 13 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। गर्मी बढ़ने के प्रभाव के चलते 167 अरब घंटे के संभावित श्रम का नुकसान हुआ, जो 1999 के मुकाबले 39 प्रतिशत अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार तापमान में डेढ़ फीसदी इजाफा होने पर बाढ़ से हर साल होने वाला नुकसान 49 प्रतिशत बढ़ सकता है। चक्रवात से होने वाली तबाही में भी इजाफा होगा। लैंसेट काउंट डाउन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 2000-2004 और 2017-2021 के बीच भीषण गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या में 55 प्रतिशत का उछाल आया है। बढ़ते तापमान से स्वास्थ्य प्रणाली पर हानिकारक असर हो रहा है।
कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने भारत में एक लाख लोगों के बीच सर्वे कर बताया है कि गर्मी/लू के कारण गरीब परिवारों को अमीरों की तुलना में पांच फीसदी अधिक आर्थिक नुकसान होगा क्योंकि संपन्न लोग बढ़ते तापमान के अनुरूप अपने कार्य को ढाल लेते हैं, पर गरीब ऐसा नहीं कर पाते। जिन इलाकों में लू से मौतें हो रही हैं, वहां गंगा और अन्य विशाल जल निधियों का जाल है।
इन इलाकों में हरियाली कम हो रही है तथा तालाब, छोटी नदियां आदि जल निधियां या तो उथली हैं या लुप्त हो गयी हैं। कंक्रीट के साम्राज्य ने भी गर्म हवाओं की घातकता को बढ़ाया है। यदि लू के प्रकोप से बचना है, तो परिवेश को पर्यावरण अनुकूल बनाने के प्रयास करने होंगे तथा काम के समय को बदलने की योजना बनानी होगी। मेहनतकश लोगों के लिए शेड, पंखे आदि की व्यवस्था के साथ-साथ बेहतर स्वास्थ्य सेवा जरूरी है।
रिसर्च भी इस बात की पुष्टि करती है कि जलवायु में आते बदलावों की वजह से गर्मी और लू का कहर बढ़ रहा है।
आज जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है और जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उससे जीवन का हर पहलू प्रभावित हो रहा है। बात चाहे शिक्षा की हो या स्वास्थ्य की वो इन बदलावों से प्रभावित हुए बिना नहीं है। बढ़ता तापमान लोगों की जेब से लेकर उनकी दिनचर्या तक को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में यदि हम इन बढ़ते खतरों को लेकर अब भी नहीं जागे तो न केवल मौजूदा पीढ़ी को बल्कि हमारी आने वाली नस्लों को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।