Monday, December 23, 2024
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चक्रवर्ती सम्राट अशोक की 2368 वीं जयंती पर विशेष

चक्रवर्ती सम्राट अशोक की 2368 वीं जयंती पर विशेष

●सम्राट अशोक का नाम इतिहास के पन्नो में स्वर्णाक्षरों से अंकित है

●सम्राट अशोक ने की थी लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना

●सम्राट अशोक पशुओं के लिए चिकित्सालय बनवाने वाला पहला राजा था

● लोक कल्याणकारी राजा थे चक्रवर्ती सम्राट अशोक

राकेश बिहारी शर्मा, –सम्राटों के सम्राट, चक्रवर्ती सम्राट अशोक का नाम इतिहास के पन्नो में स्वर्णाक्षरों से अंकित है। सम्राट अशोक एक शूरवीर और ताकतवर व प्रतापी राजा थे, जिन्होंने भारतीय इतिहास में अपनी छाप छोड़ी है। वास्तव में अशोक का राज्य एक ‘लोक कल्याणकारी राज्य’ था। मानव कल्याण को लेकर अशोक का दृष्टिकोण जाति, धर्म व राष्ट्र की सीमाओं से परे था। उसके पास असीम साधन व शक्ति होने बावजूद उसने कभी ‘‘दैवीय अधिकार’’ का दावा नहीं किया वरन् वह स्वयं को जनता का सेवक समझता रहा। अशोक ने न केवल मनुष्य वरन् समस्त प्राणिजगत के कल्याण का प्रण लिया तथा अपना संपूर्ण जीवन इस साधना में लगाकर साम्राज्य के समस्त साधनों को प्रजाहित के लिए समर्पित कर दिया। सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य के तीसरे राजा थे, जो युद्ध के अपने त्याग, धम्म की अवधारणा के विकास और बौद्ध धर्म के प्रचार के रूप में जाना जाता था।
मगध साम्राज्य का इतिहास ही भारत का इतिहास रहा है। भारत का पहला सम्राट अशोक मौर्य वंश का था, जिसका युद्ध के बाद हृदय परिवर्तन हुआ और युद्ध छोड़, शांति का रास्ता अर्थात बुद्ध को अपनाया। इसके बाद उसने अपने साम्राज्य के हर कोने में शिलालेखों, स्तंभलेखों सहित अन्य अभिलेखों के माध्यम से सामान्य जनों को नैतिक के अलावे जीवन की बेहतरी की शिक्षा दी।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्म और बौद्ध धर्म

प्राचीन भारत के इतिहासकारों में आम सहमति है कि सम्राट अशोक की जाति अज्ञात है। लेकिन कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अशोक के दादा चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म ‘मुरा’ नाई जाति की महिला से तत्कालीन शासक नंद के राजमहल में हुआ था। ‘मुरा’ वर्ण-व्यवस्था के तहत नाई जाति की थी। सम्राट अशोक का अर्थ है “बिना दुःख के” जो उनके दिए गए नाम की सबसे अधिक संभावना थी। उनका जन्म 304 ई. पू में चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी को पाटलिपुत्र में हुआ था। उनके पिता और माता का नाम बिन्दुसार एवं सुभद्रांगी था। उनके बारे में कहा जाता है कि वे अपने शासनकाल में विशेष रूप से निर्मम थे, जब तक कि उन्होंने कलिंग साम्राज्य के खिलाफ अभियान नहीं चलाया। 260 ईसा पूर्व, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी नरसंहार, विनाश और मृत्यु हुई कि सम्राट अशोक ने युद्ध का त्याग किया और समय के साथ, बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गया। अपने आप को धम्म की अवधारणा में उदाहरण के रूप में शांति के लिए समर्पित कर दिया।
हालाँकि सम्राट अशोक का नाम पौराणिक ग्रंथों में दिखाई देता है, लेकिन उसके जीवन के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। कलिंग अभियान के बाद उनकी युवावस्था, सत्ता में वृद्धि, और हिंसा का त्याग बौद्ध स्रोतों से प्राप्त होता है, जिन्हें कई मायनों में ऐतिहासिक से अधिक पौराणिक माना जाता है।
उनकी जन्मतिथि अज्ञात है, और कहा जाता है कि वह अपने पिता बिंदुसार के सौ पुत्रों में से एक थे। उनकी माता का नाम एक पाठ में सुभद्रांगी के रूप में दिया गया है। बिन्दुसार के 100 पुत्रों की कहानी को अधिकांश विद्वानों ने खारिज कर दिया है, जो मानते हैं कि सम्राट अशोक चार में से दूसरा पुत्र था। उनके बड़े भाई, सुसीमा, वारिस स्पष्ट और ताज राजकुमार थे और सम्राट अशोक की कभी भी सत्ता संभालने की संभावना इतनी कम और यहां तक कि पतली थी क्योंकि उनके पिता ने उन्हें नापसंद किया था।
उन्हें उच्च शिक्षित किया गया था, मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित किया गया था। भले ही उन्हें सिंहासन के लिए उम्मीदवार नहीं माना जाता था– वे बस शाही बेटों में से एक के रूप में। द आर्टशास्त्र समाज से संबंधित कई अलग-अलग विषयों को कवर करने वाला एक ग्रंथ है, लेकिन मुख्य रूप से, राजनीतिक विज्ञान पर एक मैनुअल है जो प्रभावी ढंग से शासन करने के लिए निर्देश प्रदान करता है। इसका श्रेय चंद्रगुप्त के प्रधान मंत्री चाणक्य को दिया जाता है, जिन्होंने चंद्रगुप्त को राजा बनने के लिए चुना और प्रशिक्षित किया। जब चंद्रगुप्त ने बिंदुसार के पक्ष में त्याग दिया, तो कहा जाता है कि बाद में उन्हें अर्थशास्त्री के रूप में प्रशिक्षित किया गया था और इसलिए, निश्चित रूप से उनके बेटे होंगे। जब सम्राट अशोक 18 वर्ष की आयु के आसपास थे, तो उन्हें विद्रोह करने के लिए पाटलिपुत्र की राजधानी से तक्षशिला भेजा गया था। एक किंवदंती के अनुसार, बिन्दुसार ने अपने बेटे को एक सेना प्रदान की लेकिन कोई हथियार नहीं; हथियार अलौकिक साधनों द्वारा बाद में प्रदान किए गए थे। इसी किंवदंती का दावा है कि सम्राट अशोक उन लोगों के लिए दयालु था जो उसके आगमन पर अपनी बाहें बिछाते थे।

भारतीय इतिहास में कलिंग युद्ध का इतिहास

भारतीय इतिहास में कलिंग के युद्ध का एक प्रमुख स्थान है इस युद्ध में सबसे ज्यादा खून खराबा हुआ था। यह युद्ध महान मौर्य सम्राट अशोक और राजा अनंत पद्मनाभन के बीच 262 ईसा पूर्व में कलिंग (जो आज ओडिशा राज्य है) लड़ा गया था। अशोक ने युद्ध में राजा अनंत पद्मनाभन को पराजित किया, जिसके परिणामस्वरूप कलिंग पर विजय प्राप्त की और मौर्य साम्राज्य में इसको मिला लिया। इस युद्ध के परिणाम विनाशकारी थे मौर्य सम्राट अशोक ने अंततः शांति का मार्ग चुना और बौद्ध धर्म को अपनाया।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया

आरंभ में अशोक भी अपने पितामह चंद्रगुप्त मौर्य और पिता बिंदुसार की भाँति युद्ध के द्वारा साम्राज्य विस्तार करता गया। कश्मीर, कलिंग तथा कुछ अन्य प्रदेशों को जीतकर उसने संपूर्ण भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया, जिसकी सीमाएं पश्चिम में ईरान तक फैली हुई थीं। परंतु कलिंग युद्ध में जो जनहानि हुई उसका अशोक के हृदय पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह हिंसक युद्धों की नीति छोड़कर धर्म विजय की ओर अग्रसर हुआ। अशोक की प्रसिद्धि इतिहास में उसके साम्राज्य विस्तार के कारण ही नहीं है वरन् धार्मिक भावना और मानवतावाद के प्रचारक के रूप में भी है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ के अनुसार अशोक के इष्टदेव शिव थे, लेकिन अशोक युद्ध के बाद अब शांति और मोक्ष चाहते थे और उस काल में बौद्ध धर्म अपने चरम पर था। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वह प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ। उन्होंने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया। उन्होंने सभी सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया। और जनकल्याण के लिए उन्होंने चिकित्सालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्म प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान भी भेजा।

सम्राट अशोक की मृत्यु

चक्रवर्ती सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व हुआ था लेकिन उनका निधन कहां और कैसे हुआ यह बता पाना थोड़ा मुश्किल है। तिब्बती परंपरा के अनुसार उसका देहावसान तक्षशिला में हुआ। उनके एक शिलालेख के अनुसार अशोक का अंतिम कार्य भिक्षु संघ में फूट डालने की निंदा करना था। संभवत: यह घटना बौद्धों की तीसरी संगीति के बाद की है। सिंहली इतिहास ग्रंथों के अनुसार तीसरी संगीति अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में हुई थी।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक का दार्शनिक इतिहास

सभ्यता के प्रारम्भ से ही भारतीय दर्शन विद्वानों के बीच विशेष अभिरुचि का विषय रहा है। भारत में वेदों एवं उपनिषदों के समय से ही दार्शनिक जिज्ञासा एवं दार्शनिक चिंतन का ज्ञानपिपासु बुद्धजीवियों के बीच प्रचलित प्रतिष्ठित रहे हैं। मौर्य काल के बारे में मेगस्थनीज ने लिखा है कि भारतवर्ष के लोग कभी झूठ नहीं बोलते, मकानों में ताले नहीं लगाते और न्यायालयों में बहुत कम जाते हैं। निश्चित प्राचीन भारत के इतिहास में मौर्य काल स्वर्ण युग था। तब पाटलिपुत्र दुनिया के गिने-चुने प्राचीन नगरों में एक था। पाटलिपुत्र के मध्य में मौर्यों का राजप्रासाद स्थित था। स्ट्रैबो ने लिखा है कि पाटलिपुत्र का राजभवन एशिया के प्रसिद्ध सूसा तथा एकबटना के राजभवन से कहीं अधिक शानदार था। जो लोग मौर्य कला पर ईरानी कला के प्रभाव के पक्षपाती हैं, उन्हें इसका जवाब खोजना चाहिए। पुरातात्विक आधार पर अशोक का साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में हिंदूकुश से पूरब में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत था। प्राचीन भारत का कोई भी सम्राट इतने विस्तृत क्षेत्र का स्वामी नहीं था। डॉ. स्मिथ ने लिखा है कि दो हजार साल से भी पहले भारत के प्रथम सम्राट ने उस वैज्ञानिक सीमा को प्राप्त कर लिया था, जिसके लिए उसके ब्रिटिश उत्तराधिकारी व्यर्थ की आहें भरते रहे तथा जिसे 16-17 वीं सदी के मुगल बादशाह भी कभी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर सके। अशोक के राजपद का आदर्श था कि हर समय और हर जगह पर मुझे जनता की आवाज सुनने के लिए बुलाया जा सकता है। चाहे मैं भोजन कर रहा होऊँ, चाहे अंतःपुर में होऊँ, मैं सो रहा होऊँ या अपने उद्यान में होऊँ, मेरे राज्य के अधिकारी जनता की कोई भी बात मुझ तक पहुँचा सकते हैं। सर्व लोकहित मेरा कर्तव्य है। सर्व लोकहित से बढ़कर कोई दूसरा कर्म नहीं है।
सभी मनुष्यों को अपनी संतान मानने वाले सम्राट अशोक ने जगह-जगह मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय बनवाए और कुएँ खुदवाए। सड़कें बनवाईं। सड़कों पर पेड़ लगवाए। अशोक अपने जनहितकारी कार्यों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं और इस क्षेत्र में उनकी जोड़ का दूसरा शासक इतिहास में मिलना कठिन है। कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने गंगा घाटी के धर्म को उठाकर विश्व धर्म का रूप दे डाले। लेनिन ने मार्क्स के सिद्धांतों को लागू किए और अशोक ने बुद्ध के सिद्धांतों को लागू किए तथा इस सिद्धांत पर चलकर वे दुनिया में वो मुकाम और शोहरत हासिल किए जो कम ही सम्राटों को नसीब हुए। जिस दार्शनिक और दर्शन की खोज में सम्राट अशोक के पिता यूनान तक अपनी आँखें गड़ाए हुए थे, अशोक की आँखों ने वो दार्शनिक और दर्शन यहीं भारत में ही खोज निकाले। सम्राट अशोक के स्तंभ और शिलालेख देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे पड़े हैं। उन्होंने भिक्षुओं के लिए पाषाणों को कटवाकर गुहाएँ बनवाईं, बौद्ध परंपरा के अनुसार 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराए और जगह – जगह स्तंभ खड़ा किए, जिसकी चमक शानदार है। अशोक स्तंभ कारीगरी के अनोखे नमूने हैं। 40-50 फीट ऊँचा एक ही पत्थर के बने हुए जिनकी चिकनाई से प्रत्येक युग के वासी चकित होते आए हैं। सारनाथ स्तंभ पर सिंहों की जैसी शक्ति का प्रदर्शन है, उनकी फूली हुई नसों में जैसी स्वाभाविकता है, वह न केवल इस देश के बल्कि समस्त संसार के मूर्ति विन्यास में अप्रतिम है। मौर्य प्रशासन वस्तुतः अनुशासन था। जयचंद्र विद्यालंकार इसे अनुशासन ही मानते हैं। सुविधा के हिसाब से इसे प्रशासन भी कहें तो रोमिला थापर ने लिखा है कि मौर्य शासन-प्रणाली विस्तृत रूप से नियोजित की गई थी, जिसमें अनेक विभाग तथा अधिकारी थे, जिनके कार्य पूर्णतः स्पष्ट कर दिए गए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रशासन अकबर के शासन काल में मुगल-साम्राज्य के प्रशासन से कहीं अधिक संगठित था। सेना भी ऐसी कि सेल्यूकस की फौज को हारनी पड़ी, जबकि मुगल सेना दुर्बल पुर्तगाली फौज से हार गई।सही अर्थों में सम्राट अशोक प्रथम राष्ट्रीय शासक थे, जिन्होंने पूरे राष्ट्र को एक भाषा और लिपि देकर एकता के सूत्र में बाँध दिए। स्वतंत्र भारत ने सारनाथ स्तंभ के सिंह-शीर्ष को अपने राजचिह्न के रूप में ग्रहण कर मानवता के इस महान नायक के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है।
अशोक वास्तव में वह राजा था जिसने इतने वर्षों तक शासन किया और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को फैलाने और इसे विश्व धर्म के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्र के एकीकरण को शुरू करने और उसे बनाए रखने में उनका योगदान वास्तव में असाधारण था। उन्हें आज भी महान सम्राट, अशोक महान कहा जाता है। कलिंग युद्ध की समाप्ति के बाद जब उन्होंने धर्म अभ्यास द्वारा अपनी विजय शुरू की तो मौर्य साम्राज्य वास्तव में संपन्न था और सभी राजवंशों के बीच सबसे अधिक आबादी 30 मिलियन थी।

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