बिहारशरीफ : 13 अप्रैल 2024 को गुरुद्वारा श्री गुरुनानक देव जी शाही संगत मोगलकुआँ बिहारशरीफ में शनिवार को बड़े ही श्रद्धा के साथ भाई रवि सिंह ग्रंथी जी के देख-रेख में बैसाखी-पर्व या साजना दिवस मनाया गया। जहां भक्तों ने गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ कर संपूर्ण विश्व व समाज के खुशहाली की मनोकामना की।
मौके पर शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने बताया कि बैसाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने पंजाब के रूपनगर (रोपड़) जिले स्थित आनंदपुर साहिब में 30 मार्च, 1699 को बैसाखी के दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने पंचप्यारों के शीश मांगकर खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया। उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। गुरु गोविंद सिंह जी को अपना शीश देने के लिए तैयार हुए पांचों व्यक्तियों में से ज्यादा समाज द्वारा नीची समझी जाने वाली जातियों में से थे और खासतौर पर दस्तकार थे। उनमें से एक नाई, एक खत्री, एक जाट, एक धोबी और एक कुम्हार जाति के थे। सिक्ख पंथ के पंचप्यारों में नाई समाज के भाई साहिब सिंह जी एवं बहुजन समाज के भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई हिम्मत सिंह और भाई मोहकम सिंह का नाम शामिल हैं। उन्होंने कमजोरों और लाचारों की रक्षा करने की सीख दी। गुरु गोविंद सिंह ने पुरुषों के नाम के बाद सिंह व स्त्रियों के नाम के बाद कौर लगाकर सिक्ख कौम की स्थापना की थी।
शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा- गुरु गोबिंद सिंह जी जन्मजात योद्धा तथा मानवता के रक्षक थे। उन्होंने कभी भी अपनी सत्ता को बढाने या किसी राज्य पर काबिज होने के लिए नहीं लड़े। पूरी उम्र दुनिया को समर्पित करने वाले गुरु गोबिंद सिंह जी ने त्याग और बलिदान, सामाजिक उत्थान, मानव सेवा का जो अध्याय लिखा, वो दुनिया के इतिहास में अमर हो गया। गुरु गोबिंद सिंह द्वारा बनाया गया खालसा पंथ आज भी सिक्ख धर्म का प्रमुख पवित्र पंथ है।
मौके पर भाई सरदार वीर सिंह ने कहा कि बैसाखी सिख धर्म के लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह न केवल फसलों के पकने को बताता है वरन वर्ष 1699 में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित किए गए खालसा पंथ की भी याद दिलाता है। यह केवल एक जश्न और खुशियों से भरा त्यौहार नहीं है वरन एक धार्मिक उत्सव है जब दुनिया भर में मौजूद सिख समुदाय खालसा पंथ की स्थापना करने वाले महान गुरु को याद करते हैं।
शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा कि वैशाख महीने के प्रथम दिन को बैसाखी कहा जाता है। बैसाखी से पंजाबी नववर्ष का आरंभ होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, बैसाखी को हर साल 13 अप्रैल या 14 अप्रैल के दिन मनाया जाता है। यह ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है, क्योंकि सर्दियां समाप्त हो रही हैं और गर्मियों का आगमन हो रहा है। इसके अलावा बैसाखी रबी फसलों की कटाई का त्योहार भी है। किसान अपनी मेहनत का फल प्राप्त करते हैं और खुशियां मनाते हैं।
मौके पर सद्भावना मंच (भारत) के संस्थापक भाई दीपक कुमार ने कहा कि बैसाखी विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है। यह भाईचारे और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। यह पर्व पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। बैसाखी सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जो विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है। यह त्योहार भाईचारे, सामाजिक सद्भाव और समानता का प्रतीक है।
बैसाखी पर्व के अवसर पर गुरुद्वारा में प्रातः काल पांच बजे अमृत वेले, गुरुग्रंथ साहिब जी का प्रकाश, उपरांत पंचवानी का पाठ और सुखमणि साहिब बारह माहा का पाठ व गुरुवाणी पाठ की गई। श्रद्धालुओ ने निशान साहिब की पूजा की। इसके साथ ही गुरुद्वारे में मत्था टेका और अरदास की। इसके बाद भाई रवि सिंह ग्रंथी ने उपस्थित लोगों के साथ कीर्तन दरबार सजाकर शबद-कीर्तन गायन किया व बैसाखी पर्व के बारे में विस्तार से बताया। सभी ने एक-दूसरे को बैसाखी की शुभकामनाएं दीं। इस मौके पर सभी समुदाय के उपस्थित लोगों के बीच गुरुद्वारा में कड़ा प्रसाद व लड्डू इत्यादी प्रसाद का वितरण किया गया।
इस दौरान भाई सतनाम सिंह, रघुबंस सिंह, जसवंत सिंह, धीरज कुमार, युवराज सिंह जी, भाई दीप सिंह जी, रिंकू कौर, जसप्रीत कौर, एकामनी कौर,राजू कुमार, भगीरथ कुमार सहित कई श्रद्धालु उपस्थित रहकर इंसानियत और परोपकार की शिक्षा ली एवं गुरुनानक देव जी के अनमोल संदेशों का आत्मसात किया।