अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के सभागार में शंखनाद साहित्यिक मंडली के अध्यक्ष व प्रदेश के प्रख्यात इतिहासज्ञ व पुरातत्ववेत्ता डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की पुस्तक “हिस्टोरिकल रिकॉर्ड्स ऑफ अशोक द ग्रेट” का लोकार्पण, नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति इतिहासकार डॉ. अभय कुमार सिंह, पटना विश्वविद्यालयान्तर्गत “प्राचीन भारतीय अध्ययन एवं आर्कियोलॉजी” विभाग के पूर्व प्रोफेसर ओंकार प्रसाद जायसवाल एवं वरीय आलोचक तथा पत्रकार अरविन्द मोहन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। यह पुस्तक अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन, ‘रेडसाइन पब्लिकेशन, स्वीडेन’ ने प्रकाशित की है।
लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति इतिहासकार डॉ. अभय कुमार सिंह ने पुस्तक के संबंध में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पहली बार ऐसी कृति देखा है। यह गागर में सागर जैसी संग्रह है। अशोक के तमाम शिलालेखों के साथ उसके जीवन और कार्य पर नवीन जानकारी दी गई है।
उन्होंने इस पुस्तक की एक प्रति को नालन्दा विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में सूचीबद्ध कराया,ताकि सभी के लिए सुलभ रहे। आगे उन्होंने कहा कि यूँ तो मौर्यवंशीय शासक अशोक पर इतिहासकारों ने बहुत काम किया है, लेकिन डा० लक्ष्मीकांत सिंह हिस्टोरिकल रिकॉर्ड्स ऑफ अशोक द ग्रेट’ अपने आप में विश्व स्तरीय एवं अनूठी कृति है। आज निर्विवाद रूप से इतिहास के महानतम शासकों में अशोक का नाम आता है, लेकिन भारतीय इतिहास के एक दौर में उसे लगभग विस्मृत कर दिया गया था। जब जेम्स प्रिंसेप (1799-1840) ने अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम पढ़ा, तब अशोक के बारे में जानकारी का एक नया अध्याय खुला। खासकर कलिंग युद्ध का तो नाम भी इतिहास में नहीं मिलता है, जिसकी पूरी कहानी इस किताब में मौजूद है। जंबूद्वीप के बारे में एक ऐतिहासिक जानकारी यहाँ देखने को मिली, जो अशोक के अभिलेखों में उत्कीर्ण है। लोकार्पण समारोह के विशिष्ट अतिथि पटना विश्वविद्यालयान्तर्गत “प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययन एवं आर्कियोलॉजी” विभाग के पूर्व प्रोफेसर ओंकार प्रसाद जायसवाल ने पुस्तक को सरसरी तौर देखकर कहा कि यह रचना अपने आप में ऐतिहासिक धरोहर है। इसमें अशोक के विरासत को न केवल सहेजा गया है, बल्कि अशोक के शिलालेखों के एक-एक शब्द, लिपि, भाषा का सूक्ष्म विवेचना प्रस्तुत किया गया है। मेरी दृष्टि में आज तक अशोक के शिलालेखों पर ऐसी किताब नहीं दिखती। प्राचीन भारत के इतिहास में मौर्य काल स्वर्ण युग था। तब पाटलिपुत्र दुनिया के गिने-चुने प्राचीन नगरों में एक था। पाटलिपुत्र के मध्य में मौर्यों का राजप्रासाद स्थित था। पुरातात्विक आधार पर अशोक का साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में हिंदूकुश से पूरब में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में समुद्र तट तक विस्तृत था। प्राचीन भारत का कोई भी सम्राट इतने विस्तृत क्षेत्र का स्वामी नहीं था।
सभी मनुष्यों को अपनी संतान मानने वाले सम्राट अशोक ने जगह-जगह मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय बनवाए और कुएँ खुदवाए। सड़कें बनवाईं। सड़कों पर पेड़ लगवाए। अशोक अपने जनहितकारी कार्यों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं और इस क्षेत्र में उनकी जोड़ का दूसरा शासक इतिहास में मिलना कठिन है। कलिंग युद्ध न केवल सम्राट अशोक के जीवन का टर्निंग प्वाइंट बना, बल्कि विश्व को एक नयी वैचारिक क्रांति का संदेश दिया, जिसका नाम बौद्ध दर्शन है। सम्राट अशोक के स्तंभ और शिलालेख देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे पड़े हैं। उन्होंने भिक्षुओं के लिए पाषाणों को कटवाकर गुफाएँ बनवाईं, बौद्ध परंपरा के अनुसार 84 हजार स्तूपों के साथ विहारों का निर्माण कराए और जगह-जगह स्तंभ खड़ा किए, जिसकी चमक शानदार है। अशोक स्तंभ कारीगरी के अनोखे नमूने हैं। 40-50 फीट ऊँचा एक ही पत्थर के बने हुए जिनकी चिकनाई से प्रत्येक युग के वासी चकित होते आए हैं। सारनाथ स्तंभ पर सिंहों की जैसी शक्ति का प्रदर्शन है, उनकी फूली हुई नसों में जैसी स्वाभाविकता है, वह न केवल इस देश के बल्कि समस्त संसार के मूर्ति विन्यास में अप्रतिम है। मौर्य प्रशासन वस्तुतः एक अनुशासन (धर्म) था। मौके पर हिस्टोरिकल रिकॉर्ड्स ऑफ अशोका द ग्रेट, के लेखक शंखनाद साहित्यिक मंडली के अध्यक्ष व प्रदेश के प्रख्यात इतिहासज्ञ व पुरातत्ववेत्ता डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने पुस्तक विमोचन की महती अनुकम्पा के लिए कुलपति महोदय के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि अशोक के अबतक के ज्ञात तमाम शिलालेखों का अनूठा एवं ऐतिहासिक संग्रह है। यह किताब तीन भागों में विभाजित है। पहले भाग में अशोक के सभी शिलालेखों, उसके ट्राँस्क्रिप्ट की तस्वीरों दी गई हैं। इसके अलावा ब्राह्मी लिपि के साथ उसका रोमन संस्करण और अंग्रेजी अनुवाद चित्रित है। दूसरे भाग में शिलालेख में उल्लिखित विभिन्न तथ्यात्मक बिंदुओं पर 12 आलेख हैं। तीसरे भाग में शिलालेख का शब्दकोष दिया गया है, जिसमें शब्दों को ब्राह्मी-रोमन-देवनागरी लिपियों में अंकित कर, उसका हिन्दी व अंग्रेजी अर्थ दिया गया है। समारोह में उपस्थित शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने पुस्तक को प्राचीन भारत के इतिहास और सामाजिक स्थिति को जानने का आधारभूत रचना बताया। इस पुस्तक के आधार पर हम कह सकते हैं कि सही अर्थों में सम्राट अशोक प्रथम राष्ट्रीय शासक थे, जिन्होंने पूरे राष्ट्र को एक भाषा और लिपि देकर एकता के सूत्र में बाँध दिए। यह पुस्तक विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होगा।
लोकार्पण कार्यक्रम में शोधार्थी दीपक कुमार, आशुतोष कुमार,साहित्यसेवी धीरज कुमार सहित कई बहुत बड़ी संख्या रिसर्च स्कॉलर, प्रोफेसर एवं बुद्धिजीवी मौजूद रहे।