राकेश बिहारी शर्मा – बसंत ऋतु में खेतों में हरे-पीले फूलों के जैसे कालीन बिछने लगते हैं। हर क्यारी पुकारने लगती है। यही वजह है कि बसंत पंचमी के दिन सब कुछ पीला कर देने का रिवाज है। बसंत ऋतु में प्रकृति नया श्रृंगार करती है। खेतों में झूम उठते हैं सरसों के फूल, किसानों के चेहरे भी खुशी से चमक उठते हैं। आम के पेड़ों पर बौर फूटने लगते हैं, कलियां धीरे-धीरे खिलती हुई मधुर मधु के प्यासे भौरों को आकृष्ट करने लगती हैं। बेलों पर नए फूल खिल उठते हैं। रंगबिरंगे फूलों से धरती खिल उठती है। प्रकृति की वासंती चादर और सुशोभित वसुंधरा, चारों और एक अजीब सी मस्ती और मादकता से सुवासित हो जाती है। मानव के प्रेमी हृदय में खुमार की मस्ती छाने लगती है। बसंत में प्रेम, मस्ती और मादकता की खुशबू के आधार पर प्राचीन समय से वसन्तोत्सव को मदनोत्सव का रूप प्रदान किया गया एवं मदनोत्सव को कामदेव एवं रति की उपासना का पर्व माना गया है। यही वजह है कि वसंत पंचमी पर सरस्वती उपासना के साथ-साथ रति और कामदेव की उपासना के गीत भारत की लोक शैलियों में आज भी मिलते हैं।
देश में पीले रंग का महत्व – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पीले रंग को गुरु का रंग कहा गया है। प्राचीन समय से ही पीले रंग को ऊर्जावान रंगों की श्रेणी में रखा गया है। हाल ही में अमेरिका में एक शोध में यह बात सामने आई कि पीला रंग इंसान की उमंग को बढ़ाने के साथ-साथ दिमाग को ज्यादा सक्रिय रखता है। यह अध्ययन अमेरिका के 500 से अधिक लोगों पर तीन साल तक किया गया। इसमें पता चला कि जो लोग पीले रंग के कपड़ों को ज्यादा प्राथमिकता देते थे, उनकी कार्यक्षमता और आत्मविश्वास दूसरें लोगों की तुलना में काफी अधिक था। अध्ययन से यह बात भी सामने आई कि इन लोगों ने अपने कार्य के साथ-साथ अपने को स्वस्थ रखने का ध्यान भी अधिक रखा। शायद कम लोग ही यह बात जानते होंगे कि भारत में गुरुवार को पीले वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है। इसका महत्व ऊर्जा से है। पीले रंग से निकलने वाली तरंगें वातावरण में एक औरा (आभामंडल) बनाती हैं, जो किसी को भी प्रभावित कर सकता है। पूजा में पीले रंग के कपड़े पहनने से मन स्थिर रहता है तथा मन में अच्छे विचार आते हैं। पीले रंग के बारे में कहा जाता है कि यदि आप इस रंग पर अपनी नजरें गड़ाए रखें तो यह तुरंत ही आपके मूड को बदलने की क्षमता रखता है। इससे आप दिनभर ऊर्जावान बने रह सकते हैं।
भारत में बसंत पंचमी से होती है ‘फाग’ की शुरूआत और चीनी में नववर्ष – वसंत महोत्सव चीनी लोगों के लिए सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। वसंत महोत्सव को चीनी पारंपरिक नववर्ष के रूप में भी जाना जाता है। वसंत महोत्सव न केवल चीन में मनाया जाता है बल्कि चीनी संस्कृति के प्रभाव से, चीनी वसंत महोत्सव दुनिया भर के कई देशों और क्षेत्रों में भी मनाया जाता है। अधूरे आँकड़ों के अनुसार, लगभग 20 देशों और क्षेत्रों ने पूरे देश या कुछ शहरों के लिए चीनी वसंत महोत्सव को कानूनी अवकाश बना दिया है। वसंत महोत्सव मनाने का समय वास्तव में एक दिन नहीं होता है। यह लगभग एक महीने तक जारी रहता है। इस दौरान सात दिन का सरकारी अवकाश रहता है। यह पूजा भारत, पश्चिमोत्तर, बांग्लादेश, नेपाल तथा कई अन्य राष्ट्रों में भी बड़े उल्लास के साथ की जाती है। कहा जाता है कि बसंत का त्योहार चीनी लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। सैकड़ों वर्ष पूर्व चीन में बसंत को ‘नियन’ कहा जाता था। उस समय नियन का अर्थ भरपूर फसल वाला साल था। हमारे यहां हर त्योहार की कुछ बेहद अनूठी परंपराएं हैं। कुछ प्रदेशों में बसंत पंचमी के दिन शिशुओं को पहला अक्षर सिखाया जाता हे। सरस्वती पूजन के दौरान स्लेट, कॉपी, किताब तथा पेंसिल-पेन का स्पर्श कराया जाता है। इसी तरह गांवों में आज भी बसंत पंचमी के साथ 40 दिनों का ‘फाग उत्सव’ शुरू हो जाता है। भारतीय संगीत, साहित्य और कला में बसंतु ऋतु का महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत में एक विशेष राग बसंत के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं।
भारत में वसंत ऋतु का आगमन – भारत में पतझड़ के बाद वसंत ऋतु का आगमन होता है। हर तरफ रंग-बिरंगें फूल खिले दिखाई देते हैं। इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं। उन्हें देखकर किसान हर्षित होते हैं। चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है। इसीलिए वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है। इस दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
वसंत शब्द का मार्मिक अर्थ है – वसंत शब्द का अर्थ है वसंत और पंचमी का पांचवां दिन। इसलिये माघ महीने में जब वसंत ऋतु का आगमन होता है तो इस महीने के पांचवें दिन यानी पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। वसंत उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है। जो फरवरी मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती जिन्हें विद्या, संगीत और कला की देवी कहा जाता है। है। उनका अवतरण इसी दिन हुआ था और यही कारण है कि भक्त इस शुभ दिन पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। साथ ही इसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
भारतीय परम्परा में वसंत पंचमी – हमारी प्राचीन साहित्यिक कृतियों के साथ-साथ मूर्ति कला, चित्रकला, स्थापत्य कला के मध्यमों से भी कामदेव वर्णित किये गये हैं। राधा-कृष्ण के प्रेम, रास, वसन्तोत्सव एवं होली चित्रों की मोहकता लुभाती हैं। खजुराहो, कोणार्क जैसे मंदिरों पर पूरा कामशास्त्र मूर्तियों में झलकता हैं। कहीं कोई फूहड़ता नहीं है, सब कुछ सहज, सरल होकर जीवन में काम की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रतिपादित करते हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार भारत में सभी शुभ कार्यों के लिए वसंत पंचमी के दिन अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। वसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं। इसलिए प्राचीन काल से वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। सरसों के फूलों से भरे खेत पीले दिखाई देते हैं। अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। वसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है। वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं।
वसंत पंचमी और मौसम विज्ञान – वसंत पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। हालांकि विश्व में बदलते मौसम ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है। पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वों पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है।
वसंत पंचमी और आध्यात्मिक, वैदिक महत्व – चूंकि वसंत पंचमी का पर्व इतने शुभ समय में पड़ता है। अतः इस पर्व का स्वतः ही आध्यात्मिक, धार्मिक, वैदिक आदि सभी दृष्टियों से अति विशिष्ट महत्व परिलक्षित होता है। कडकड़ाती ठंड के बाद वसंत ऋतु में प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है। यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है। मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। देश के कई स्थानों पर पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में तो बसंत पंचमी के दिन से ही लोग समूह मंे एकत्रित होकर रात में चंग ढफ बजाकर धमाल गाकर होली के पर्व का शुभारम्भ करते है।
वसंत पंचमी और विद्यालयों में सरस्वती की आराधना – वसंत पंचमी के दिन विद्यालयों में भी देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। भारत के पूर्वी प्रांतों में घरों में भी विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है और वसंत पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद अगले दिन मूर्ति को नदी, तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। देवी सरस्वती को ज्ञान, कला, बुद्धि, गायन-वादन की अधिष्ठात्री माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्यार्थी, लेखक और कलाकार देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। विद्यार्थी अपनी किताबें, लेखक अपनी कलम और कलाकार अपने संगीत उपकरण और बाकी चीजें मां सरस्वती के सामने रखकर पूजा करते हैं।