बिहारशरीफ के दीपनगर में भीम आर्मी (भारत एकता मिशन) सह आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) एवं अति पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक संघर्ष मोर्चा के संयुक्त बैनर तले अशोक विजयदशमी एवं धम्म दीक्षा दिवस तथा सम्राट अशोक और मदारी पासी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर धूमधाम के साथ जयंती मनाई गई। इस अवसर पर अति पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामदेव चौधरी भीम आर्मी (भारत एकता मिशन) सह आजाद समाज पार्टी(कांशीराम)के प्रदेश सचिव रणजीत कुमार चौधरी ने संयुक्त रूप से कहा कि विजयदशमी का असली नाम अशोक विजयदशमी है। इसी दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी। विजयदशमी बौद्धौं का पवित्र त्यौहार है। ऐतिहासिक सत्यता है कि महाराज अशोक ने कलिंग युद्ध के दसवें दिन बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी। सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धम्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है।
सम्राट अशोक ने संपूर्ण एशिया में तथा अन्य आज के सभी महाद्वीपों में भी बौद्ध पंथ का प्रचार किया। सम्राट अशोक के संदर्भ के स्तंभ एवं शिलालेख आज भी भारत के कई स्थानों पर दिखाई देते हैं। सम्राट अशोक के धम्म विजय को ब्राह्मणों ने चालाकी से दशहरा में बदल दिया। सम्राट अशोक की जयंती को राम जयंती में बदल दिया ओर अशोक विजय दशमी को दशहरा में बदल दिया क्योंकि मौर्य वंश में 10 महाराज हुए थे। मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहदत थे। बृहदत्त की हत्या कर पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की स्थापना की। पुष्यमित्र शुंग ने ही वैदिक धर्म की स्थापना की, जो विदेशी ब्राह्मण था। जिस दिन पुष्यमित्र शुंग राजा बना उसे दिन भी अशोक विजयदशमी था, उसने ही मौर्य वंश के 10 राजाओं का पुतला अलग-अलग न बनाकर एक ही पुतला में 10 सर वाला पुतला बनाकर रावण दहन की प्रचलन आरंभ की जो आज तक चल रहा है। 250 हजार वर्ष बाद विजयदशमी के दिन ही भारत के नागपुर में संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने बौध्द धम्म दीक्षा ली थी। भारत के मूल निवासियों का पर्व अशोक विजयदशमी है न की दशहरा। आगे दोनों नेताओं ने कहा कि मदारी पासी भारतीय किसान आंदोलन एका आंदोलन के नेता थे। इनका जन्म आज के दिन उत्तर प्रदेश के हरदोई में हुआ था।
एका आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक शाखा थी, असहयोग आंदोलन (एनसीएस) से जुड़ी थी।लेकिन जब कांग्रेस राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन में व्यस्त थी तो उसने चल रहे एका आंदोलन को कुछ हद तक उपेक्षा की। यही वह समय था जब मदारी पासी ने खुद को एका आंदोलन में शामिल किसानों के बीच एक करिश्माई जमीनी नेता के रूप में स्थापित किया। सभी धर्मौ और जातियों के किसानों और छोटे जमींदारों को एकजुट किया। यूपी के सीतापुर,अनुसूचित बाराबंकी और हरदोई जिलों में मदारी पासी के नेतृत्व में एका आंदोलन अकर्मक किसान आंदोलन के रूप में देखा गया। उनकी मृत्यु 27 या 28 मार्च 1931 को भूमिगत रहते हुई थी। ब्रिटिश शासक ने भारतीय किसानों पर 50 पैसा का कर लगाया था, जिसे एका आंदोलन का जन्म हुआ। जिसे 50 पैसे का कर का खात्मा किया मदारी पासी ने। इस अवसर पर भीम आर्मी के प्रखंड अध्यक्ष अखिलेश अंबेडकर राजकुमार भगत राजेंद्र यादव देवनंदन यादव उमेश यादव रामवृक्ष यादव सुधीर पासवान संजय पासवान सूरज कुमार आदि लोगों उपस्थित थे।