Saturday, December 21, 2024
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साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना में स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल बारी की मनी 76 वीं पूण्यतिथि

सोहसराय क्षेत्र के साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना मोहल्ले में सविता बिहारी निवास स्थित सभागार में शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार प्रोफेसर (डॉ.) लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में भारत के विराट कर्मयोगी स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी की 76 वीं पूण्यतिथि मनाई गई। जिसका संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया। कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया।

मौके पर शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने समारोह में विषय प्रवेश कराते स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल बारी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि 21 जनवरी, 1884 को पुराने शाहाबाद वर्तमान में भोजपुर जिला के कोइलवर गांव में जन्मे प्रो. अब्दुल बारी जी आजादी के वीर योद्धा थे। पटना विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. करने के बाद बी. एन. कॉलेज में मिली प्राध्यापक की नौकरी को छोड़कर महात्मा गांधी के पक्के अनुयायी बन गए और आजीवन मजदूरों, वंचितों और उत्पीड़ितो के हक की लड़ाई लड़ते रहे। अब्दुल बारी साहब स्वतंत्रत भारत न देख सके और 28 मार्च 1947 को खुसरूपुर (फतुहा) रेलवे स्टेशन के पास गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। अब्दुल बारी जी एक सुशिक्षित व्यक्ति थे। उन्होंने कभी हिन्दू मुस्लिम में भेदभाव नहीं किया। उनके सम्मान में जमशेदपुर के गोलमुरी में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए “अब्दुल बारी मेमोरियल कालेज” और पटना में “अब्दुल बारी टेक्निकल सेन्टर” की स्थापना की गई। वे फकीर दिल इंसान थे। उनके जैसे व्यक्तित्व कभी नहीं मरता। अब्दुल बारी के नाम पर अब्दुलबारी पुल भी है। एक ओर जहाँ यह पुल दानापुर-मुग़लसराय रेल खंड को जोड़ता है तो दूसरी ओर पटना-भोजपुर सड़क यातायात को जोड़ता है। पटना में लंगरटोली से लेकर भिखना पहाड़ी तक की सड़क का नाम ‘बारी पथ’ है। अपने महानायकों को भूलने की बीमारी बहुजन समाज का सबसे बड़ा अभिशाप है। आखिरी कब तक स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी जैसे कद्दावर एवं युगप्रवर्तक हस्ताक्षर बौद्धिक और राजनीतिक समुदाय की तंगनजरी (दकियानूसी ) के शिकार होते रहेंगे।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में शंखनाद के अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि प्रोफेसर अब्दुल बारी प्रखर स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद एवं महान समाज सुधारक थे। 1937 के प्रांतीय चुनावों में बिहार के चम्पारण से बिहार विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे। जमशेदपुर श्रम एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस के आग्रह पर 1937 में अब्दुल बारी ने टिस्को (टाटा स्टील) वर्कस यूनियन का अध्यक्ष पद संभाला था। 1937 से 47 तक वह इस पद पर बने रहे। 1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन में चढ़बढ़ कर हिस्सा लिया। 1946 में उन्हें बिहार कांग्रेस कमेटी का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया था।

मौके पर अपने सम्बोधन में माले नेता मकसूदन शर्मा ने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले कुछ ख़ास वर्ग के स्वतंत्रता सेनानियों, राजा-महाराजाओं के योगदान को अभिलेखों के माध्यम से आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन अभिवंचित और पिछड़ों के स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को धीरे-धीरे मिटाने की कोशिश की जा रही है। प्रोफेसर अब्दुल बारी जी सर्वसमाज को एक सूत्र में बांधे रखने का प्रयास जीवनपर्यंत किया।

शिक्षाविद मो. जाहिद हुसैन ने कहा- भारत विभाजन के सख्त विरोधी प्रोफेसर अब्दुलबारी ने आजीवन राष्ट्रीय एकता और सद्भावना के लिए काम किया। 1946 के लोमहर्षक हिंदू मुस्लिम दंगों में उन्होंने अपनी बहादुरी से सैकड़ों लोगों की जान बचायी और महात्मा गांधी के साथ कई हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में जाकर अमन का पैगाम दिया और नफरत की आग को खत्म किया। बारी साहब एक साथ कई मोर्चों पर सक्रिय रहे।

मौके पर प्रोफेसर (डॉ.) शकील अहमद अंसारी ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर अब्दुल बारी गंगा जमुनी संस्कृति के प्रबल समर्थक और धर्म के आधार पर देश के विभाजन के विरोधी थे। अब्दुल बारी जी से आज के भारत में नई पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए। इन्होंने आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। समाज को एक सूत्र में बांधे रखने का प्रयास जीवनपर्यंत किया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर एवं प्रसिद्ध गजलकार नवनीत कृष्ण ने प्रो. अब्दुल बारी जी के सम्मान में राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत एक गजल प्रस्तुत किया।
अंत में शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

इनकी रही कार्यक्रम में मौजूदगी

मौके पर शंखनाद के कोषाध्यक्ष सरदार वीर सिंह, साहित्यसेवी राजहंस कुमार, प्रमोद कुमार, श्रवण कुमार, आनंद कुमार उपाध्याय, समाजसेवी धीरज कुमार, राजदेव पासवान, युवराज सिंह, विक्रम कुमार, अमर कुमार चुन्नु, नारायण रविदास, सविता बिहारी मुख्यरूप से उपस्थित थे।

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