Saturday, September 21, 2024
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कविता का जन्म ही वियोग और आह के बीच हुआ है: शकील अहमद अंसारी

राकेश बिहारी शर्मा – बिहारशरीफ-बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद नालंदा के तत्वावधान में विश्व कविता दिवस के मौके पर ‘कविता कल और आज’ विषय पर 21 मार्च दिन मंगलवार को देरशाम तक परिचर्चा का आयोजन किया गया।

जिसकी अध्यक्षता साहित्यिक मंडली शंखनाद के उपाध्यक्ष बेनाम गिलानी ने तथा संचालन “शंखनाद” के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया।

आयोजित परिचर्चा के मुख्य अतिथि बहुभाषाविद प्रोफेसर (डॉ.) शकील अहमद अंसारी, महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, उपाध्यक्ष हिंदी-उर्दू के प्रख्यात साहित्यकार व शायर बेनाम गिलानी ने दीप प्रज्जवलन कर परिचर्चा का शुभारम्भ किया।

मौके पर साहित्यिक मंडली “शंखनाद” के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने परिचर्चा के दौरान उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि विश्व कविता दिवस प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी, जिसका उद्देश्य कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था। कविता साहित्य का एक रूप है, जिसका उपयोग प्राचीन काल से ही मानवीय परिस्थितियों, इच्छा, संस्कृति, पीड़ा आदि को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

कविता व्यक्ति और व्यक्ति के रचनात्मक पक्ष को पकड़ती है और उसे अपने व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त करने और दूसरों को लयबद्ध तरीके से प्रेरित करने में मदद करती है। कविता सभ्यताओं के बीच एक सेतु के रूप में काम करके सांस्कृतिक अंतर को कम करती है। उन्होंने कविता की वर्तमान स्थिति पर बात रखते हुए कहा- कविता सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम क्रम-विधान है। आज के समय में लोग कविता के मूल तत्व को समझने का प्रयास नहीं कर रहे। कविता के मूल स्वरूप को कायम रखने के लिए कविता पर गंभीरता के साथ चर्चा करना आवश्यक है।

मौके पर अध्यक्षता करते हुए “शंखनाद” के उपाध्यक्ष बेनाम गिलानी ने कहा कि आज हमलोग कविता दिवस मना रहे हैं जिसका आरंभ 1999 से हुआ। यह साहित्य जगत का कैसा दुर्भाग्य है कि इतने सालों बाद यह ज्ञात हुआ कि कविता भी काम की चीज है। जबकि यह अकाट्य सत्य है की भारत में तो नहीं किंतु यूनान में कविता लगभग पांच हज़ार वर्ष पुर्व से रची जा रही है। ऐसी बात भी नहीं है कि हम ने अज्ञानता के कारण वश किया। ऐसा केवल इस लिए हुआ कि हमने कविता कि प्रासंगिकता को देर से अनुभव किया। जबकि कविता या साहित्य से हमारा धर्म हमारी तहज़ीब एवं हमारा आचरण सदा जुड़ा रहा। यदि हम साहित्य एवं कविता से अनभिज्ञ हैं तो हम स्वयं से अनभिज्ञ हैं।

कविता का जन्म ही वियोग और आह के बीच हुआ है: शकील अहमद अंसारी  कविता का जन्म ही वियोग और आह के बीच हुआ है: शकील अहमद अंसारी

परिचर्चा के मुख्य अतिथि बहुभाषाविद प्रोफेसर (डॉ.) शकील अहमद अंसारी ने मगही, हिंदी और उर्दू कविता की वर्तमान स्थिति पर बात करते हुए कहा कि कविता सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम क्रम-विधान है। वर्तमान कविता की यात्रा सुदीर्घ है। कविता के छोटे से अंश में जीवन दर्शन होता है। कविता सृजन का एक सुगम्य हिस्सा होता है। उन्होंने अनुभूति के कवि सुमित्रानंदन पंत जी के उक्ति से बतायाकि वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान, निकल कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान! कविता का जन्म ही वियोग और आह के बीच हुआ है! कविता प्रबल मनोवेगों का स्वत:स्फूर्त प्रवाह है,जो शांत क्षणों में पुन: स्मृत की जाती है।

मौके पर मंच संचालन करते हुए मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा कि कविता दिल की आवाज है। कविताओं में भावनाएं होती हैं, जो इंसान को सोचने पर मजबूर करती है। कविता क्रांति की अलख जगाती है, कविता सच्चाई की बात करती है, कविता मन के छुपे रहस्यों को उजागर कर देती है। जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि जैसी कहावत है।‌ कविता मन की याचना है, कविता मन की प्रवृत्ति है। कम शब्दों में व्यापक बाद पर कविता के माध्यम से ही कही जा सकती है।

शंखनाद के कोषाध्यक्ष सरदार वीर सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया की हर भाषा में कविताएं लिखी जाती हैं कविताएं दिल से जुड़ी हुई होती हैं। कविता समाज को नई चेतना प्रदान करती है, आनन्द का सही मार्ग दिखाती है और मानवीय गुणों की प्रतिष्ठा करती है। कविता कवि के लिए ही नहीं है अपितु हर एक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होती है, जो साहित्य और संस्क्रति से प्रेम करता है।

साहित्यसेवी सुरेन्द्र प्रसाद शर्मा ने कहा- कविता केवल रसात्मक या कर्णप्रिय अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि कविता वह है जो कानों के माध्यम से हृदय को आंदोलित करे। जिस भाव की कविता हो उस भाव को जागृत करने में सक्षम हो।
इस परिचर्चा में शिक्षाविद जाहिद हुसैन, समाजसेवी धीरज कुमार, साहित्यसेवी अमर सिंह, सविता बिहारी, विक्रम कुमार, राजदेव पासवान, नारायण रविदास, रामप्रसाद चौधरी, स्वाति कुमारी सहित शहर के कई कवियों और सृजनधर्मियों ने कविता को गंभीरता के साथ जानने और समझने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता जताई।

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