दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे विश्व पुस्तक मेले के अनेकों रंग में एक रंग कविता कोश द्वारा लेखक मंच पर आयोजित लोग रंग का भी है। जिसमें देश भर से लोक भाषा के कवि व साहित्यकार को आमंत्रित किया गया है। मगही भाषा के प्रतिनिधित्व के लिए इग्नू नई दिल्ली में कार्यरत नालंदा के युवा कवि संजीव मुकेश को आमंत्रित किया गया है। कविता कोश द्वारा हर वर्ष विश्व पुस्तक मेला में लोग रंग के माध्यम से लोक भाषा के समकालीन साहित्यिक विकास पर चर्चा व संवाद किया जाता है।
इस वर्ष भी मगही से संजीव कुमार मुकेश सहित अंगिका से अरुण कुमार पासवान, अवधी से कमलेश भट्ट कमल, पंजाबी से तनवीर, बज्जिका से डॉ भावना, ब्रज से उर्मिला माधव, भोजपुरी से मनोज भावुक, मैथली से सोनी नीलू झा व हरियाणवी से सुरेखा को आमंत्रित किया गया है। कार्यक्रम का संचालन कविता कोश के उप निदेशक राहुल शिवाय करेंगे।
देश भर से कुल 9 लोक भाषा को साहित्यकार हैं आमंत्रित:
मगही- संजीव कुमार मुकेश
अंगिका- अरुण कुमार पासवान
अवधी- कमलेश भट्ट कमल
पंजाबी- तनवीर
बज्जिका- डॉ. भावना
ब्रज- उर्मिला माधव
भोजपुरी- मनोज भावुक
मैथिली- सोनी नीलू झा
हरियाणवी- सुरेखा कादियान
कौन है संजीव मुकेश:
साहित्यिक पारिवारिक माहौल ने कविता लिखने को किया प्रेरित। पिताजी श्री उमेश प्रसाद उमेश भी हैं मगही से वरिष्ठ साहित्यकार। पत्नी श्रीमती मीनाक्षी मुकेश व दस साल का बेटा सार्थक शांडिल्य भी लिखता है कविता।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में सहायक एग्जीक्यूटिव के पद पर कार्यरत मुकेश दिल्ली में रहते हैं। मगध साहित्य उत्सव व माँ मालती देवी स्मृति सम्मान समारोह के संयोजक है। मगही जन जागृति अभियान के ब्रांड अम्बेसडर मुकेश मगही को समर्पित संस्था “अखिल भारतीय मगही मंडप” और “विश्व मगही परिषद” से जुड़े हैं। नालंदा जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रेस सलाहकार हैं। राष्ट्रीय कवि संगम के प्रदेश महामंत्री हैं। बिहार साहित्य सम्मेलन के आजीवन भी हैं। मगही के प्रचार-प्रसार व उन्नयन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय भी हैं।
क्या है कविता कोश:
कविता कोश के संयुक्त निदेशक शारदा सुमन व उप निदेशक राहुल शिवाय बताते हैं कि कविता कोश आज किसी परिचय का मोहताज नहीं रह गया यह कहना कविता कोश के महत्व को कम करने जैसा होगा। क्योंकि कविता कोश स्वयं ही ‘साहित्य प्रेम’ का पर्याय बन चुका है। इस परियोजना की शुरुआत भले ही हिन्दी से हुई हो लेकिन आज यह हिन्दी समेत भारत की तमाम लोक भाषाओं की रचनाओं का एक अमूल्य भंडार बन गया है।
कविता कोश ने न सिर्फ़ लोक भाषाओं की रचनाओं के संकलन का काम किया है बल्कि विलुप्त होती जा रही कई भाषाओं को इसने पुनर्जीवित कर दिया है। कविता कोश के प्रयासों का ही असर है कि आज की युवा पीढ़ी भी अपनी जड़ों से जुड़ी भाषा में रचना करने लगे हैं। ऐसे वक्त में जबकि हिन्दी का दामन छोड़ कर लोग अंग्रेजी की तरफ आकर्षित होते जा रहे हैं, युवाओं को लोक भाषाओं की तरफ मोड़ देना न तो छोटा काम है ना ही आसान। लेकिन, कविता कोश ने यह मुमकिन कर दिखाया है।