Monday, December 23, 2024
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बिहार के लोकप्रिय सीएम नीतीश कुमार के 72 वीं जन्मदिन पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा—-भारत के राजनीतिक में नीतीश कुमार का राम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनका नाम लेते ही एक ऐसे राजनेता की छवि उभरती है, जिन्होंने अपनी दूरदर्शिता और कर्मठता से बिहारी जनता के सामाजिक-आर्थिक जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने में सक्षम रहे हैं। वे एक सफल राजनेता के साथ-साथ महान समाज सुधारक भी हैं।
यह सर्वविदित है कि जनमानस पर अनेक व्यक्तित्व अपनी छाप छोड़ते हैं, जिन्हें दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो हृदय को तो जीतते हैं, परंतु उनकी छाप अधिक समय तक अंकित नहीं रहती है। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, वे गुमनाम से हो जाते हैं । दूसरे प्रकार के ऐसे व्यक्तित्व होते हैं, जो अपने जीवन काल में तो लोकप्रिय होते ही हैं, लेकिन आगे भी उनकी लोकप्रियता बढती जाती है। ऐसे ही बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार जी हैं।

नीतीश कुमार का जन्म और पारिवारिक जीवन

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आज अपना 72वां जन्मदिन है। नीतीश कुमार का जन्म स्थान के बारे में उनके पैतृक गांव के कुछ बुजुर्ग जानकर लोग कहते हैं की नीतीश कुमार का जन्म बिहार के नालंदा जिले में स्थित कोलावां गांव के एक सम्भ्रांत किसान नाना अनथ सिंह के घर में 1 मार्च 1951 को हुआ था। कोलावां निवासी अनथ सिंह को मात्र तीन ही पुत्री प्राप्त हुई। सबसे बड़ी पुत्री की शादी बरुनतर, मंझली की पुत्री की शादी कल्याण बिगहा और छोटी पुत्री की शादी समनहुआ हरनौत में किये थे। लेकिन कुछ लोग नीतीश कुमार का जन्म स्थान बख्तियारपुर, जिला-पटना बताते हैं तो कोई हरनौत के कल्याण विगहा।
लेकिन परिवारिक जानकार नीतीशजी के भैया सतीश बाबू के सबसे छोटे साले राजदेव प्रसाद जी और सेवदह निवासी समाजसेवी चन्द्रउदय कुमार मुन्ना जी के कथनानुसार नीतीश जी का जन्म कोलावां के एक सम्भ्रांत किसान नाना अनथ सिंह के घर में ही हुआ था। नीतीश कुमार जी का बचपन का नाम मुन्ना है नीतीश कुमार के पिता स्वतंत्रता सेनानी श्री कविराज राम लखन सिंह और माता परमेश्वरी देवी जो कुशल गृहिणी थी, पिता बख्तियारपुर में आयुर्वेद के अच्छे चिकित्सक थे। नीतीश जी के पिता भारत की स्वतंत्रता कि लड़ाई मे भी सक्रीय रूप से भाग लिया था और वो एक कुशल लोकप्रिय आयुर्वेदिक वैद्य भी थे। स्वतंत्रता सेनानी श्री कविराज राम लखन सिंह को दो पुत्र और तीन पुत्री हुए। उनमें उषा देवी, सतीश प्रसाद, प्रभा देवी, नीतीश कुमार और सबसे छोटी इंदु देवी हैं।

नीतीश कुमार का राजनैतिक सफर

नीतीश कुमार शुरू से लीक से हटकर चलने वाले रहे हैं। तमाम विरोधों के बावजूद अपने निर्णयों पर अडिग रहने वाले समाजवादी नेता नीतीश कुमार सबसे लंबे समय तक बिहार का मुख्यिमंत्री बनने का रिकार्ड बना चुके हैं। उन्हें राजनीति की दुनियां के राजकपूर की संज्ञा भी दी जाती है। राजकपूर की तरह ही आगे की सोचने के कारण नीतीश कुमार की तुलना उनसे की जाती है।
सुशासन बाबू और विकास पुरुष के नाम से प्रसिद्ध नीतीश कुमार बिहार अभियांत्रिकी महाविद्यालय के छात्र रहे हैं। वर्तमान में इस महाविद्यालय को राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान पटना के नाम से जाना जाता है। 1974 एवं 1977 में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति में वे शामिल हुए थे। यहीं से उन्होंने राजनीतिक की बारीकियां सीखीं। नीतीश कुमार बिहार में रहते हुए ही अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्होंने पटना के बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग यानी एनआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की है। वहां से अपनी पढ़ाई करने के बाद नीतीश काफी समय तक बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम भी करते रहे। इलेक्ट्रिकल के क्षेत्र में कई साल काम करने के बाद नीतीश का मन राजनीति की ओर लगने लगा। समय के साथ-साथ नीतीश बिहार में प्रसिद्धि पाने लगे और एक बड़े राजनीतिज्ञ के रूप में उभरकर सामने आए। नीतीश कुमार वर्ष 1985 में पहली बार बिहार विधानसभा के लिए चुने गए। वर्ष 1987 में उन्हें युवा लोकदल के अध्यक्ष बनाया गया। 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुन लिया गया। वे वर्ष 1989 में हुए लोकसभा के लिए पहली बार चुने गये। 1990 में पहली बार में केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि राज्य मंत्री बनाए गए थे। वर्ष 1991 में नीतीश कुमार जी को जनता दल का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया साथ ही उन्हें जनता दल का उपनेता भी चुना गया था। उन्होंने 1989 और 2000 में बाढ़ लोकसभा से चुनाव जीता। इसी दौरान 1998-99 तक वे केंद्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री के तौर पर काफी सराहनीय कार्य किया। हालांकि अगस्त 1999 में गैसाल में हुए रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

नीतीश ने 8 बार थामी बिहार की कमान, टीमें बदलीं लेकिन वही रहे कप्तान

नीतीश कुमार ने 3 मार्च 2000 को पहली बार एनडीए की तरफ से बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। परंतु बहुमत का आंकड़ा न मिलने के कारण उन्हें महज 7 दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ा था। वर्ष 2000 में ही में केंद्रीय कृषि मंत्री बनाए गए। मई 2001 से 2004 तक उन्होंने बाजपेयी सरकार में केंद्रीय रेल मंत्री के तौर पर कार्य किया। नवंबर 2005 में बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल की सरकार को उन्होंने उखाड़ फेंका और पहली बार बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनाए गए। वर्ष 2010 में बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों के आधार पर नीतीश कुमार भारी बहुमत से गठबंधन को जीत दिलाने में सफल रहे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जनता दल (यूनाइटेड) के वर्षीय नेता जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि एक साल के अंदर ही पार्टी को संकट से बचाने के लिए उन्होंने पुन: 2015 में बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वर्ष 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन तोड़ दिया और 27 जुलाई 2017 को भाजपा के समर्थन से बिहार के छठे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की, तथा 16 नवंबर 2020 को सातवीं बार बिहार के 37 वें मुख्यमंत्री के रूप में तथा 9 अगस्त 2022 को NDA से अलग हुए और 10 अगस्त 2022 को 8 वीं बार आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। वे बिहार के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री हैं।

नीतीश ने आखिरी बार चुनाव 2004 में लड़ा था

नीतीश कुमार ने 1985 में पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता था। इसके बाद वे सांसद रहे। अब 2006 से वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने हुए हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने विधानसभा का कोई चुनाव नहीं लड़ा है। नीतीश ने आखिरी चुनाव 2004 में लड़ा था। 2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार दो जगह से खड़े हुए थे। बाढ़ और नालंदा दो सीटों से उन्होंने चुनाव लड़ा था। 1999 का लोकसभा चुनाव नीतीश ने बाढ़ से जीता था। लेकिन 2004 में उन्हें बाढ़ की राजनीतिक फिजां कुछ बदली हुई लगी। तब उन्होंने अपने गृह जिले नालंदा की याद आयी। नालंदा के सीटिंग सांसद जॉर्ज फर्नांडीस थे। नीतीश ने जॉर्ज को मुजफ्फरपुर शिफ्ट कर नालंदा से नॉमिनेशन कर दिया। नीतीश की आशंका सच साबित हुई। 2004 में नीतीश बाढ़ में राजद के विजय कृष्ण से चुनाव हार गये। नालंदा सीट पर उनकी विजय हुई जिससे उनकी सांसदी बची रह गयी। बाढ़ की हार से नीतीश को बहुत सदमा पहुंचा था। बाढ़ लोकसभा क्षेत्र के बख्तियारपुर से उनका जज्बाती रिश्ता रहा है। उनका बचपन यहीं गुजरा है। यहीं पढ़ कर ही वे पढ़ाई में अव्वल आये तो इंजीनियर बने। उन्होंने एक बार कहा भी था कि मैं कहीं भी रहूं, दिल मेरा बाढ़ में बसता है। नीतीश कुमार केन्द्रीय मंत्री रहते चुनाव हार गये थे। इस हार ने उन्हें विचलित कर दिया था।

2005 में जब नीतीश बाबू मुख्यमंत्री चुने गये थे तब सांसद थे

2004 में वाजपेयी सरकार की करारी हार हुई। नीतीश जी मंत्री की बजाय केवल सांसद रह गये। बिहार में राबड़ी देवी की सरकार चल रही थी। यह समय नीतीश का संक्रमण काल था। उस समय तक नीतीश, लालू यादव की तुलना में पीछे थे। लालू केंद्र में रेल मंत्री थे तो उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थीं। यहां से नीतीश को एक नया रास्ता बनाना था। 2000 में वे सात दिन का मुख्यमंत्री बन कर आलोचना का पात्र बन चुके थे। इसके बाद नीतीश मजबूत इरादों के साथ मैदान में उतरे। उन्होंने भाजपा के साथ मिल राबड़ी सरकार को उखाड़ फेंकने का बिगुल फूंका। नीतीश ने भाजपा के सहयोग से 2005 का विधानसभा चुनाव जीत लिया। इस चुनाव में नीतीश खुद खड़े नहीं हुए थे क्यों कि उस समय वे सांसद थे। मुख्यमंत्री बनने के लिए नीतीश ने सांसदी से इस्तीफा दे दिया। अब उन्हें छह महीने के अंदर बिहार विधान मंडल के किसी सदन का सदस्य बनना था। नीतीश ने चुनाव लड़ने का जोखिम नहीं लिया। उन्होंने विधान परिषद का सदस्य बनने का फैसला किया। 2006 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। इसके बाद से नीतीश कुमार अभी तक विधान परिषद के ही सदस्य हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश ने खुद कोई चुनाव नहीं लड़ा है।
सन् 1957 में प्रधानमंत्री नेहरू ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संदर्भ में लोकसभा में कहा था- “बोलने के लिए वाणी की जरूरत होती है; किंतु मौन के लिए वाणी और विवेक दोनों की जरूरत पड़ती है”। बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के विषय में भी शायद पंडित नेहरू का यह वाक्यांश सटीक बैठता है। मुख्यमंत्री नीतीश बाबू चाहे प्रतिपक्ष में रहे या पक्ष में, सदन के एक-एक पल का उपयोग किया, ताकि संसदीय जनतंत्र मजबूत हो एवं जन- भागीदारी का यह मुखर मंच अपने मकसद में कामयाब हो। वे कर्पूरी ठाकुर की राजनीति के कायल रहे हैं। उन्होंने राजनीति में सिद्धांतों और मूल्यों की पैरवी की और इन्हें सही मायनों में अपनाया भी। यह कहना अतिशयोक्तिऔ नहीं होगी कि उनके कार्यकाल में बिहार राज्य का कायाकल्प हो गया है। नीतीश बाबू के बहुआयामी व्यक्ति त्व एवं कार्यों का विवेचन करने के बाद हम ख सकते हैं की एक राजनेता के रूप में वे अपनी वाणी से कुछ न कहकर अपना उत्तर रचनात्मक कार्यो के रूप में देते हैं। उनकी मान्यता है कि सुशासन का लाभ अंतिम व्यक्तिय तक पहुँचे।

नीतीश कुमार का आदर्श विवाह मंजू कुमारी सिन्हा से

1972 की सर्दियों में नीतीश जी के पिता रामलखन बाबू ने उनकी शादी तय कर दी, और 22 फरवरी 1973 को मंजू सिन्हा से शादी हुई। उस वक्त उनकी आयु 21 वर्ष थी और पटना इंजीनियरिंग कॉलेज में आखरी वर्ष में थे वो। लड़की थीं सेवदह गाँव के अमीर किसान और स्कूल शिक्षक कृष्ण नंदन सिन्हा जी की ज्येष्ठ सुपुत्री मंजू कुमारी सिन्हा, जो पटना में ही मगध महिला कॉलेज की छात्रा थी। कृष्ण नंदन सिन्हा के तीन पुत्री और दो पुत्र हुए थे, उनमें मंजू कुमारी सिन्हा, अरुण कुमार, अजीत कुमार, अजय कुमार और सबसे छोटी अंजू कुमारी थी।
नीतीश कुमार से मंजू कुमारी सिन्हा की शादी तय होने के बाद नीतीश जी के हमउम्र दोस्तों ने मंजू जी को आपस में देख लेने का प्रस्ताव दिया,15 वर्ष की आयु में पटना आने वाले नीतीश कुमार आरम्भ से ही संकोची किस्म के विद्यार्थी थे, वो मंजू जी को देखने नहीं गए, हाँ उनके दोस्त (अरुण जी, नरेंद्र जी, कौशल जी) मंजू कुमारी सिन्हा के होस्टल के घंटो चक्कर काटने के बाद उनकी एक झलक पाने में कामयाब हो गए थे, और नीतीश जी को ढूंढकर बता दिया था कि लड़की सौम्य और सुंदर और आकर्षक मुस्कान वाली हैं।
आज जो भी नीतीश जी समाज सुधार के लिए कर रहे हैं वो सब कार्य व्यक्तिगत जीवन में भी प्रमुखता से कर चुके हैं। 22 हज़ार दहेज का लेन-देन का प्रस्ताव दोनों परिवारों बीच था, भनक नीतीश जी को पड़ी,। समाजवाद और लोहियावादी विचारधारा को आत्मसात करने वाले नीतीश जी मन ही मन दहेज रहित और साधारण पध्दति से विवाह करने का मौन संकल्प ले चुके थे। आखिरकार सबको उनकी जिद के आगे झुकना पड़ा, और दहेज वापस की गई और फिर शादी हुई। इस शादी की काफी प्रशंसा क्षेत्र में हुई, यहाँ तक कि महान उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु जी ने कहा कि “वो नीतीश जैसे नवयुवक को ही अपना दामाद बनाना पसंद करेंगे जो महिलाओं की हिस्सेदारी चूल्हे-चौके से आगे हर क्षेत्र में करने का पक्षधर है”। शादी के बाद दोनों परिवार नीतीश जी के इंजीनियर के रूप में जीविका शरू करने की आशा में थे, लेकिन नीतीश जी राजनीति को ही अपना कैरियर बनाने का संकल्प कर चुके थे। मंजू जी उनकी इस इच्छा को भली भांति जानती थी और 1974 से 1977 के जेपी और छात्र आंदोलन के दौरान जब वो जेल में थे या भूमिगत थे हर परिस्थिति में उनका हौसला बढ़ाया था।
वर्ष 1974 में जेपी आंदोलन में शामिल होने पर उन्हें आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया गया था। तभी सितंबर से नवम्बर तक वो गया जेल में थे, उस वक्त मंजू जी को याद करके नीतीशजी कहा करते हैं –“गया सेंट्रल जेल का सुपरिंटेंडेंट निहायत क्रूर आदमी था। वह कैदियों के रिश्तेदारों को सप्ताह में केवल एक बार मिलने की इजाजत देता था और वह किसी को भी दरवाजे के अंदर नहीं आने देता था। मुलाकाती को लोहे की जाली लगी खिड़की के बाहर खड़ा रहना पड़ता था और कैदी को अंदर। मंजू जी सप्ताह में एक बार मुझसे मिलने आती थी, लेकिन उस निर्दयी ने मेरी पत्नी को भी अंदरआने की अनुमति नहीं दी। उसने खिड़की में जड़ी लोहे की जाली भी ऐसी बनवाई थी कि मैं मंजू की उँगली भी नहीं छू सकता था, ताकि मैं अगले सप्ताह फिर मिलने की उम्मीद में उस याद के साथ रह सकूँ। कल्पना कीजिए; हम जवान थे और हमारा विवाह हुए अभी डेढ़ वर्ष ही बीता था”। वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में टिकट चुकने के बाद हरनौत से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन पिछड़ी जाति में सम्पन्न तबकों में आरक्षण का विरोध करने, धन बल का उपयोग नहीं होने की वजह से ये चुनाव वो 5000 वोट से हार गए। इस हार को दिलो दिमाग से झटकने के बाद नीतीश फिर से हरनौत क्षेत्र के गांव-गांव मंह जनसंपर्क में व्यस्त हो गए, मंजू सिन्हा शिक्षिका के रूप में पहली नियुक्ति उच्च विद्यालय सेवदह हरनौत में हुई थी। उसी विद्यालय में मंजू सिन्हा के पिता श्री कृष्णनंदन सिन्हा जी भी शिक्षक थे। सेवदह से 1979 में मंजू जी को कंकड़बाग के स्कूल में भी शिक्षिका के रूप में काम की थी (कंकड़बाग उनका मायका श्री कृष्णनंदन सिन्हा का मकान विद्यालय के नजदीक था) वर्ष 1980 के जून माह में नीतीश कुमार के सारी योग्यताओं के बावजूद चुनाव हार गए, इस हार ने उनका खुद में विश्वास पूरी तरह हिला कर रख दिया। इस हार के बाद कुछ ही हफ्ते बाद मंजू जी ने 20 जुलाई 1980 को निशान्त को जन्म दिया। बढ़ी जिम्मेदारी और चुनाव की नाकामियों ने उन पर और भी दवाब बढ़ा दिया, उन्होंने ठेकेदार बनने का फैसला कर लिया था, लेकिन उनके दोस्तों और मंजू जी दोनों को मालूम था कि वो राजनीति के अलावा कुछ और ना तो कर पाएंगे ना खुश् रह पाएंगे, लेकिन परेशान रहने वाले नीतीश को देखकर उनके ससुराल वाले काम-धंधे के साथ राजनीति करने की सलाह देते थे और कभी कभी मंजू जी भी उनकी बातों में आ जाती थीं, इससे उन दोनों के संबंध में तनाव हुआ, नीतीश पटना आते थे मंजू जी और निशांत से मिलने अक्सर लेकिन ज्यादा दिन रुकते नही थे। दोस्तों और मार्गदर्शकों की प्रेरणा से नीतीश अपने आपको एक आखरी मौका देने के लिए व्यवहारिक रूप से जुट गए, मंजू जी को वादा करके” इस बार सफल नही हुआ तो राजनीति त्याग कर कोई परंपरागत काम करेंगे और गृहस्थ जीवन में रम जाएंगे, लेकिन मंजू जी उनको विजयी देखना चाहती थी और बिना नीतीश जी के जानकारी के उन्होंने उनके दोस्त नरेंद्र को बुलाकर अपनी सारी बचत 20000 रुपये दे दिए चुनाव खर्च के लिए..
ये चुनाव नीतीश जी 22000 वोट से जीते, पटना में 1985 से 1989 तक दोनों साथ थे, 1989 में नीतीश जी लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली पहुँचे और उनको मंत्री भी बनाया गया, नीतीश जी ने बिहार भवन में प्रतिनियुक्ति पर मंजू जी का तबादला दिल्ली करवाया, लेकिन मीडिया में पद के दुरूपयोग के आरोप से आहत नीतीश जी ने फैसला किया कि मंजू जी अपना पद नही ग्रहण करेंगी और वापस पटना जाकर उसी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर देंगी। नीतीश बाबू का मानना था कि राजनीति एक जोखिम भरा काम है अगर वो असफल होते हैं तो उनका परिवार वित्तिय रूप से परेशान हो जाएगा इसलिए मंजू अपनी नौकरी बनाये रखें। उसके बाद नीतीश जी 2005 तक दिल्ली में सांसद / मंत्री के तौर रहे, इस दौरान दोनों निरंतर संपर्क में थे और नीतीश अक्सर उनसे मिलने जाते थे। नीतीश जी निजी तौर पर अकेले रहना पसंद करते हैं बचपन से, और निजी जिंदगी पर कभी चर्चा नही करते। 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वो इस इंतज़ार में थे कि रिटायरमेंट के बाद मंजू जी अणे मार्ग आयेंगी… वो आयी 15 मई 2007 को… अपनी आखिरी विदाई के लिए… और नीतीश जी का इंतज़ार जीवन भर के लिए… इंतज़ार ही रहेगा।
लंग फेलियर की वजह से मंजू जी का निधन 14 मई 2007 को दिल्ली के मैक्स अस्पताल में हुआ, वो 30 अप्रैल से दिल्ली में भर्ती थीं, उस दौरान से लेकर उनके दश-कर्म तक फूट-फूट कर रोते रहे नीतीश कुमार को देखकर कोई भी उस रिश्ते की सच्चाई समझ सकता है।

नीतीश कुमार का सम्मान एवं पुरस्कार

वर्ष 2010 में एनडीटीवी इंडियन ऑफ द ईयर 2010 में फोर्ब्स इंडिया पर्सन ऑफ द ईयरवर्ष 2010 में सीएनएन और वर्ष 2009 में एनडीटीवी ने राजनीति के क्षेत्र में नीतीश कुमार को इंडियन ऑफ द ईयर का खिताब दिया। वर्ष 2008 में सीएनएन–आईबीएन ने राजनीति के क्षेत्र में नीतीश कुमार को महान भारतीय का सम्मान प्रदान। वर्ष 2007 में एक सर्वे के आधार पर सीएनएन-आईबीएन ने नीतीश कुमार को सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री की उपाधि से सम्मानित किया। नीतीश कुमार को बिहार के संदर्भ में समाज सुधारक कहा जाता है। उन्होंने बिहार में व्याप्त जातीय और लिंग के आधार पर भेदभाव को न्यूनतम करने जैसे महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। उनकी साफ और निष्पक्ष छवि के कारण ही विपक्षी दलों के प्रतिष्ठित और अग्रणी नेता जैसे सोनिया गांधी, पी. चिदंबरम, राहुल गांधी ने उन्हें एक सफल, विकास के लिए प्रयासरत राजनेता और मुख्यमंत्री कहकर संबोधित किया है। 28 मार्च, 2017 को पटना में आयोजित एक समारोह में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ की अणुव्रत महासमिति द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार को अणुव्रत पुरस्कार 2016 प्रदान किया गया। 08 जनवरी 2018 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने उनको प्रथम मुफ्ती मोहम्मद सईद अवॉर्ड फॉर प्रॉबिटी इन पॉलिटिक्स एंड पब्लिक लाइफ प्रदान किया।

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