स्थानीय सोहसराय के बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ नालंदा के तत्वावधान में सविता बिहारी निवास स्थित सभागार में देश के सामाजिक क्रांति के अग्रदूत, जन कवि संत शिरोमणि रैदास की 647 वीं जयंती शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक मनाई गई। मौके पर संत शिरोमणि रैदास जी के तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित व दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। मौके पर समारोह में साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि कविराज संत शिरोमणि रैदास जी उन महान संतों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है, जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। रविदास जी भारत के महान संत, समाज सुधारक और जनमानस के कवि थे।
उन्होंने कहा रविदास की संतई और समाज सुधार के कार्यों का प्रताप था कि मीराबाई जैसी क्षत्राणी ने भी इन्हें अपना गुरु मान लिया। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग सोचते होंगे कि ये सब जयंती मनाने की क्या जरूरत है, तो मैं आपको बता दूँ कि कोई भी जयंती या संगोष्ठी आयोजित करने के मात्र दो ही कारण होते है। पहला कि आप अपने देश के महापुरुषों व अपनी संस्कृति को जाने कि भारत वर्ष में ऐसे भी महापुरुषों ने जन्म लिया। और दूसरा यह कि उनके द्वारा किए गए सुधारों उनके जीवन के आदर्शो को सीखकर आप उन जैसा महान और प्रतिभावान बने। आप सबको मेरी तरफ से संत रैदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ। आप सब अपने जीवन में सफलता की बुलन्दियो को छुएं। आप सबको अपना लक्ष्य प्राप्त हो। हमारी शुभकामनाएँ सदैव आप सभी उपस्थित लोगों के साथ है। अध्यक्षीय सम्बोधन में शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए बताया कि संत कुलभूषण कविराज संत रैदास जी ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
रविदासजी के बहुत से पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित किए गए है। उनकी काव्य रचनाओं को रैदासी के नाम से जाना जाता है। साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने कहा कि रैदास एक महान संत और समाज सुधारक के साथ-साथ दर्शन शास्त्री और एक महान कवि थे। संत रैदास जी रविदास के नाम से भी जाने जाते है। निर्गुण सम्प्रदाय के प्रसिद्ध संत रैदास अपनी स्वरचना के माध्यम से अपने अनुयायियों और समाज के लोगों को सामाजिक और आध्यात्मिक सन्देश दिया। समाजसेवी सुरेन्द्र प्रसाद शर्मा ने संत रैदास जी को संत के रूप में याद करते हुए कहा कि उनके सामाजिक संदेश को ग्रहण करने की जरूरत है, तभी हम सब लक्ष्य को पा सकेंगे। संत रैदास जी ने अपनी रचनाओं के जरिए समाज में हो रही बुराइयों को दूर करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। शिक्षाविद् कवि राज हंस ने कहा कि संत रैदास मध्ययुगीन इतिहास के संक्रमण काल में हुए थे। उस समय समाज के ठीकेदारों की पैशाविक मनोवृति से दलित और उपेक्षित लोग पशुवत जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य थे। संत रैदास यह सब देखकर बहुत विचलित होते थे उनकी समन्वयवादी चेतना इसी का परिणाम है। उनकी स्वानुभूतिमयी चेतना ने भारतीय समाज में जागृति का संचार किया और उनके मौलिक चिंतन ने शोषित और उपेक्षित लोगों में आत्मविश्वास का संचार किया।
मौके पर जिले के नामचीन हास्य व्यंग्य कवि तंग अय्यूवी ने कहा कि संत रविदास जी एक महान संत, दर्शनशास्त्री, रहस्यवादी कवि, निर्भीक समाज-सुधारक और निर्गुण संप्रदाय अर्थात् संत परंपरा के कुशल नेतृत्वकर्ता थे।
नारायण रविदास ने कहा संत रविदास जी किसी एक जाति या धर्म के नही अपितु समग्र समाज व धर्म के है। उनका जीवन चरित्र ही समाज के आदर्श और संबल प्रदान करने वाला रहा है। रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। आज भी संत रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। इस दौरान समाजसेवी देवनारायण पासवान, धीरज कुमार, समाजसेविका सविता बिहारी, स्वाति कुमारी, साधना देवी, श्यामा देवी, प्रिंश राज, पृथ्वी राज, अनुष्का कुमारी, आरती कुमारी, खुशी कुमारी,मन्नू कुमार सहित दर्जनों लोग उपस्थित हुए।