Monday, December 23, 2024
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“भीमा-कोरेगांव युद्ध” की याद में शौर्य विजय दिवस मनाया गया।

पुणे के भीमा कोरेगांव युद्ध की याद में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के तत्वधान में बिहारशरीफ के रहुई प्रखंड के पचासा गांव में शौर्य विजय दिवस धूमधाम से मनाया गया। सर्वप्रथम भीमा कोरेगांव युद्ध में मारे गए महार शहीदों को पुष्प अर्पित कर एवं 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई और उनके वीरगाथा की चर्चा की गई। इस मौके पर डॉ भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के प्रदेश अध्यक्ष रामदेव चौधरी ने कहा कि दरअसल 1 जनवरी 1818 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में 500 महारों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की 28000 सैनिकों को हराया था इसलिए तबसे अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोग इस युद्ध को ब्रह्मणवादी सत्ता के खिलाफ जंग मानते आ रहे हैं। 5 नवंबर 1817 को खड़की और यरवदा कि हार के बाद पेशवा बाजीराव द्वितीय ने परवे फाटा के नजदीक फुलगांव में डेरा डाले था उनके साथ उनकी उच्च जातियों से सुसज्जित 28000 की सेना थी लेकिन उसमें महार समुदाय के सैनिक नहीं थे।इस लड़ाई का जिक्र जेम्स ग्रोटडफ की किताब ए हिस्ट्री ऑफ द मराठाज में भी मिलता है। जिसके अनुसार भीमा नदी किनारे हुए इस युद्ध में महार समुदाय के सैनिकों ने 28000 मराठों को रोके रखा।भारत सरकार ने महार रेजीमेंट पर 1981 में स्टांप भी जारी किया था। हालांकि इस लड़ाई को लेकर अनुसूचित जाति और मराठा समुदाय में लोगों के अलग-अलग तर्क है कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अंग्रेजों की नहीं महारो की अपनी “अस्मिता^ की लड़ाई थी। क्योंकि पेशवा शासक महारों से “अस्पृश्य” व्यवहार करते थे कुछ इतिहासकार बताते हैं कि अनुसूचित जातियों की इतनी बुरी दशा थी कि नगर में प्रवेश करते वक्त अपनी कमर में एक झाड़ू बांधकर एवं गले में हंड्डी पहन कर चलना होता था

"भीमा-कोरेगांव युद्ध" की याद में शौर्य विजय दिवस मनाया गया।

ताकि उनके पैरों के निशान झाड़ू से मिटते चले और थूकना हो तो हंड्डी में थूके ताकि कोई स्वर्ण ‘अपवित्र’ ना हो जाए। कुएँ और तालाब के पानी निकालने को लेकर भी उनसे भेदभाव होता था। महारो ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों को हराया था ब्राह्मणों ने छुआछूत अनुसूचित जातियों पर थोप दिया था इससे वह नाराज थे जब महारों ने आवाज उठाई तो ब्राह्मण नाराज हो गए इसी वजह से महार ब्रिटिश फौज में शामिल हो गए इस लड़ाई में मारे गए सैनिकों की याद में में अंग्रेजों ने 1851 में जयस्तंभ बनवाया था। जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गवाई थी। महारो और मराठों के बीच पहले कभी मतभेद नहीं हुए मराठों का नाम इसलिए लाया जाता है कि क्योंकि ब्राह्मणों ने मराठों से पेशवाई छीनी थी जिसे मराठा नाराज थे अगर ब्राह्मण छुआछूत खत्म कर देते तो शायद यह लड़ाई नहीं होती। प्रदेश उपाध्यक्ष नंदलाल रविदास ने कहा कि 1 जनवरी 1927 को बाबा साहब ने इस स्थान पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया था तब से इस स्थान पर पूरे भारत से अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोग जयस्तंभ को देखने आते हैं और अपने पूर्वजों के वीरता को देखकर सौर ऊर्जा लेकर लौटते हैं। इस दिन से अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोग पूरे भारतवर्ष में शौर्य विजय दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। इस शौर्य विजय दिवस के कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तम कुमार ने की। इस अवसर पर जिला महासचिव महेंद्र प्रसाद किशोर प्रसाद रजनीश पासवान बबलू पासवान परमेश्वर दास कृष्णदास नवल दास शर्मिला देवी उषा देवी श्रीदेवी शशिकांत रविदास सोनी कुमारी शकिंदर दास सुशील कुमार मानिकचंद रविदास भोला पासवान सुनील कुमार जग दर्पण आदि लोग उपस्थित थे।

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