Saturday, September 21, 2024
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भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 98 वीं जयंती पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा -भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी हमारे देश के राजनेता थे। जिन्होंने देश के उन्नति तथा विकास में बहुत बड़ी भागीदारी निभाई थी। इन्हें इनके नाम के अलावा भीष्म पितामह भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने आजीवन विवाह न करने का संकल्प लिया था।

प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को पूरे भारत में श्रद्धा से ‘सुशासन दिवस’ मनाया जाता है। 25 दिसम्बर को भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म दिवस है, जो उन्हें आदर और सम्मान देने के लिये सुशासन दिवस के रूप में घोषित किया गया है। भारत सरकार द्वारा यह दिवस घोषित किया गया है ।

अटल बिहारी वाजपेयी जी का पारिवारिक जीवन और शिक्षा-दीक्षा

उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी अटलजी के पिताजी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में शिक्षक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसंबर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त के समय में माता कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में ही शिक्षण कार्य के अतिरिक्त वे हिंदी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटलजी में काव्य के गुण वंशानुगत से प्राप्त हुए। अटलजी 7 भाई बहनों में प्रेम बिहारी वाजपेयी, अवध बिहारी वाजपेयी, सुदा बिहारी वाजपेयी तथा बहनों में विमला मिश्रा, उर्मिला मिश्रा, कमला देवी थे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रारम्भिक शिक्षा सरस्वती शिक्षा मंदिर, गोरखी-बाड़ा, विद्यालय में हुई। यहां से उन्होंने 8 वीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। जब वे 5 वीं कक्षा में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था। उन्हें विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में दाखिल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से इकोनोमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने लखनऊ के लॉ कॉलेज में भी दाखिला लिया, लेकिन उनका मन पढाई में नहीं लगा और वे आरएसएस की पत्रिका में एडिटर के पद पर काम करने लगे। अटलजी एक प्रखर वक्ता और ओजस्वी कवि भी थे। उन्होंने पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, वीर अर्जुन और दैनिक स्वदेश जैसी पत्रिकाओं में अपनी सेवाएं प्रदान की। अटलजी बचपन से ही अंतर्मुखी और प्रतिभा संपन्न थे।

अटल बिहारी वाजपेयी का संघर्षों भरा राजनीतिक जीवन

अटलजी कॉलेज जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था। आरंभ में वे छात्र संगठन से जुड़े। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया। वाजपेयी जी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ तो श्या9मा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ अटल बिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका रही।
वर्ष 1952 में अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, पर सफलता नहीं मिली। वे उत्तरप्रदेश की एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतरे थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार सफलता 1957 में मिली थी। 1957 में जनसंघ ने उन्हें 3 लोकसभा सीटों- लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर वे लोकसभा में पहुंचे।

वाजपेयी के असाधारण व्यवक्तित्वप को देखकर उस समय के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा”। वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में लखनऊ सीट से उतरे, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने गए। बाद में 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव हुआ, जहां से वे जीतकर सांसद बने।
इसके बाद 1968 में वाजपेयी जनसंघ के राष्ट्रीय अध्य क्ष बने। उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लाल कृष्णत आडवाणी जैसे नेता थे। 1971 में 5 वें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्यप्रदेश के ग्वालियर संसदीय सीट से चुनाव में उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में 1977 और फिर 1980 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
1984 में अटलजी ने मध्यप्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव का पर्चा दाखिल कर दिया और उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया जबकि माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे। सिंधिया से वाजपेयी पौने 2 लाख वोटों से हार गए।

वाजपेयीजी ने एक बार जिक्र भी किया था कि उन्होंने स्वयं संसद के गलियारे में माधवराव से पूछा था कि वे ग्वालियर से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे? माधवराव ने उस समय मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की रणनीति के तहत अचानक उनका पर्चा दाखिल करा दिया गया। इस तरह वाजपेयी के पास मौका ही नहीं बचा कि वे दूसरी जगह से नामांकन दाखिल कर पाते। ऐसे में उन्हें सिंधिया से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वाजपेयी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्यप्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगहों से जीते। बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी।
1996 में हवाला कांड में अपना नाम आने के कारण लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से चुनाव नहीं लड़े। इस स्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ सीट के साथ-साथ गांधीनगर से चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की। इसके बाद वाजपेयी ने लखनऊ अपनी कर्मभूमि बना ली। वे 1998 और 1999 का लोकसभा चुनाव लखनऊ सीट से जीतकर सांसद बने।

आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्वु वाली सरकार में विदेश मामलों के मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता थे जिन्होंमने संयुक्त राष्ट्रब महासंघ को हिन्दी भाषा में संबोधित किया। इसके बाद जनता पार्टी अंतरकलह के कारण बिखर गई और 1980 में वाजपेयी के साथ पुराने दोस्तब भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए।
वाजपेयी भाजपा के पहले राष्ट्रीाय अध्य।क्ष बने और वे कांग्रेस सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किए जाने लगे। 1994 में कर्नाटक तथा 1995 में गुजरात और महाराष्ट्र में पार्टी जब चुनाव जीत गई, तो उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्यरक्ष लालकृष्णा आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीलदवार घोषित कर दिया था।
वाजपेयीजी 1996 से लेकर 2004 तक 3 बार प्रधानमंत्री बने। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने, हालांकि उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई।

1998 के दोबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्या3दा सीटें मिलीं और कुछ अन्यह पार्टियों के सहयोग से वाजपेयीजी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली, लेकिन बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया जिसके चलते सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से सत्ताे में आई और वे इस पद पर 2004 तक बने रहे। इस बार वाजपेयीजी ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

वाजपेयी जी के दत्तक पुत्री नमिता और नंदिता

जीवन भर विवाह न करने की प्रतिज्ञा लेने वाले अटल जी की दो बेटियां हैं। दरअसल दोनों बेटियां नमिता कौल और नंदिता कौल अटल जी के मित्र बीएन कॉल और राजकुमारी कौल की हैं। इन दोनों को अटल जी ने गोद लिया और एक पिता की तरह उनकी देखरेख की। बाद में नमिता भट्टाचार्य और उनके पति रंजन भट्टाचार्य का परिवार भी उनके साथ रहने लगा था।

वाजपेयी के घर का सदस्य मित्र बीएन कॉल और राजकुमारी कौल

कॉलेज की मित्र राजकुमारी कौल से उनका विवाह न हो सका, लेकिन राजकुमारी की शादी के बाद भी दोनों साथ रहे और उनके रिश्ते को दोनों ने कोई नाम नहीं दिया। अटलजी का कद राजनीति में इतना बढ़ा था कि विरोधी दल और मीडिया कभी उनकी निजी जिंदगी में तांकझांक नहीं कर सके। राजकुमारी के बारे में बताया जाता है कि जब अटलजी प्रधानमंत्री थे तब कौल वाजपेयी जी के घर की सदस्य थीं। राजकुमारी के निधन के बाद वाजपेयी के आवास से जो प्रेस रिलीज जारी की गई थी, उसमें उन्हें वाजपेयी के ‘घर का सदस्य’ संबोधित किया गया था।

अटल बिहारी वाजपेयी का निधन

अटल बिहारी जी को सन 2009 में एक बार दिल का दौरा पडा था। जिसके बाद वह बोलने में सक्षम नहीं रह गए थे। बाद मे वे किडनी संक्रमण तथा अन्य कई सारे लोगों से पीड़ित हो चुके थे। 11 जून 2015 मे लोगों को उनके किडनी संक्रमण के बारे में पता चला था। इसकी वजह से उन्हें (एम्स) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में दाखिल करवाया गया था। इनकी मृत्यु 93 वर्ष की उम्र में 16 अगस्त 2018 को शाम के 5:05 बजे एम्स अस्पताल में ही हो गई थी। डॉक्टर ने बताया कि पिछले 36 घंटो से इन की तबीयत ठीक नहीं थी। 17 अगस्त 2018 को इनकी दत्तक पुत्री ने इन्हें मुखाग्नी दी तथा कई सारे नेता इनके निधन समारोह में शामिल हुए थे। अटल बिहारी जी के अस्थियों को बहुत से पवित्र नदियों में अर्पित किया गया था।

अटल जी उत्कृष्ट राजनेता, यशस्वी संपादक, कवि और पत्रकार होने के साथ-साथ अच्छे कम्पोजिटर भी थे। ऐसे साहित्यप्रेमी राजनेता कम होते हैं। लेकिन अटल जी इन दोनों परिभाषाओं से परे थे। वे वास्तव में शब्दों का संधान बहुत कुशलता से कर लेते थे। चाहे वह भाषण में हो प्रत्युत्तर हो, तर्क हो, लेखनी हो या कविता हो। उनका साहित्यिक प्रस्फुटन बहुत अनूठा था।

अटल जी के प्रमुख किताबें

अटल जी एक अच्छे कवि तथा एक अच्छे लेखक भी थे। मेरी 51 कविताएं, मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान, कैदी कविराय की कुंडलियां ,21 कविताएं, न्यू डाइमेंशन आफ इंडियन फॉरेन पॉलिसी आदि प्रमुख किताबों के रचयिता थे। खराब स्वास्थ्य के कारण 2005 में राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। उन्हें 2014 में भारत रत्न से भी नवाजा गया था।

श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी एक अध्ययनशील राजनेता थे, उनका मानना था कि शिक्षा ही किसी भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति के द्वार खोलती है।
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी जिसने 2003 में पुरानी पेंशन योजना को खत्म कर दिया था और मौजूदा राष्ट्रीय पेंशन योजना को 1 अप्रैल, 2004 को सत्ता से बाहर होने से ठीक एक महीने पहले पेश किया था।
इसी क्रम में 2004 में उन्होंने राज्य को तीन विश्वविद्यालयों की सौगात देने का कार्य किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी आज हमारे बीच नहीं हैं किंतु वह भारत के करोड़ों दिल में आज भी जिंदा हैं उन्हें शत-शत नमन।

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