बिहारशरीफ-बबुरबन्ना, 14 जून 2022 (विक्रम संवत् 2079 – जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा) : मानव धर्म के सच्चे उपासक और भक्तिकाल के महान कवि संत कबीर दास की 624 वीं जयंती साहित्यकारों, कवियों व समाजसेवियों ने नालंदा की साहित्यिक भूमि सोहसराय के बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद नालंदा के तत्वावधान में बिहारी निवास स्थित सभागार में शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में भारतीय रहस्यवादी संत महाकवि कबीर दास के छायाचित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि के तदोपरांत दीप प्रज्जवलित कर मनाई गई।
समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज महान कवि एवं संत कबीर दास की जयंती है। कबीर भारतीय मनीषा के प्रथम विद्रोही संत हैं, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है। संत कबीर जी का कोई जीवन वृत्तांत पता नहीं चलता परंतु, विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर उनका जन्म विक्रम संवत 1455 तथा मृत्यु विक्रम संवत 1575 माना जाता है। संत कबीर भारतीय संत परंपरा और संत-साहित्य के महान हस्ताक्षर हैं। अंधों की बस्ती में रोशनी बेचते कबीर वाकई अपने आने वाले समय की अमिट वाणी थे। उन्होंने कहा कि संत कबीर के अलावा महात्मा ज्योतिबा फुले, संत गाडगे बाबा, महात्मा गांधी, डॉ भीमराव अंबेडकर, दीन दयाल उपाध्याय के साथ-साथ अन्य महापुरुषों ने देश में समरसता, सरलता और ऊंच-नीच व भेदभाव को दूर करने में चेतना जगाने का काम किया। कबीर समाज सुधारक ही नहीं बल्कि एक महान क्रांतिकारी कवि थे। वे कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ-साफ झलकती है।
समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार डॉ. हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने कहा कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता के लिए कबीर से ज्यादा सामर्थक और ताकतवर वैचारिक क्रांति कोई दूसरा संत नहीं कर सका। आज के गुम हो रहे नैतिक मूल्यों के वातावरण में अशांत मानव जीवन के लिए उनका ढाई आखर प्रेम अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने कबीर को साधना के क्षेत्र में युग-युग का गुरु बताया और कहा कि कबीर ने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर साहित्य क्षेत्र में नवनिर्माण किया। कबीर ने आडंबरों से भारतीय समाज को मुक्त कराया। मौके पर अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि संत कवि कबीर दास जी समाज में फैले आडम्बरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। वे लेखक और कवि थे। उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। कबीर ने जिस भाषा में लिखा, वह लोक प्रचलित तथा सरल भाषा थी। उन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं ग्रहण की थी, इसके बावजूद वे दिव्य प्रभाव के धनी थे। कबीरदास जी को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था।
शिक्षाविद् राजहंस कुमार ने कहा कि कबीर ने लोगों को एक नई राह दिखाई। घर-गृहस्थी में रहकर और गृहस्थ जीवन जीते हुए भी शील-सदाचार और पवित्रता का जीवन जिया जा सकता है तथा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि पूजा-पाठ और धार्मिक आडंबरों से आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती है। उन्होंने कबीर के प्रसिद्ध भजन ‘झीनी-झीनी, बीनी चदरिया’ का मधुर गान किया। समाजसेवी व साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने कहा कि कबीर एक ऐसे संत है, जिनके लिये पंथ और ग्रंथ का भेद बाधक नहीं। वे दो संस्कृतियों के संगम हैं। उनका मार्ग सहजता है, यही कारण है कि उन्होंने सहज योग का मार्ग सुझाया। वे जाति-पांति के भेदभावों से मुक्त एक सच्चा इंसान थे। उनका उपदेश आज भी प्रासंगिक है। कबीर मानवीय मूल्यों के समन्वयक थे। उन्होंने पाखंडों, कुरुतियों और अंध विश्वासों का खंडन किया।
साहित्यसेवी साधुशरण चौधरी ने कहा- कबीर ने भारतीय समाज को दकियानूसी सोच व उंच-नीच की भावनाओं से बाहर निकाला। उन्होंने कहा कि संत कबीर दास एक जन के नहीं बल्कि सामान्यजन के थे और उनकी वाणी गरीबों, पीडितों के साथ-साथ समाज के कमजोर वर्गां के उत्थान के लिए था। मौके पर साहित्यसेवी अभियंता आनंद प्रियदर्शी ने अपने उद्बोधन में कहा- कबीर ने भारतीय समाज को दकियानूसी सोच व उंच-नीच की भावनाओं से बाहर निकाला। उन्होंने कहा कि संत कबीर दास एक जन के नहीं बल्कि सामान्यजन के थे और उनकी वाणी गरीबों, पीडितों के साथ-साथ समाज के कमजोर वर्गां के उत्थान के लिए था।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन शंखनाद के महासचिव साहित्यसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने किया।
इस अवसर पर धीरज कुमार, सविता बिहारी, राजदेव पासवान, शिवम श्रेष्ठ, स्वाति कुमारी, सुरेश प्रसाद सहित कई समाजसेवियों ने भाग लिया।