बिहारशरीफ, 01 मई 2022 : रविवार की देरशाम मंसूर नगर के राहुल भवन में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया गया। इस मजदूर दिवस के मौके पर भाकपा एवं ट्रेड यूनियन के शिक्षाविदों एवं सदस्यों ने एक विचार गोष्ठी एवं अपनी एकजुटता प्रदर्शित किया। जिसकी अध्यक्षता भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के जिला मंत्री राम नरेश प्रसाद ने किया। आयोजित गोष्ठी में बिहार अराजपत्रित प्रारम्भिक शिक्षक संघ के राज्य परिषद् सदस्य राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि 01 मई अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में विगत सौ वर्ष से ज़्यादा समय से मनाया जाता है उन्होंने इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मजदूर दिवस 1886 में अमेरिका के मजदूर यूनियनों ने काम का समय आठ घंटे और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी की मांग को लेकर शिकागो हेमार्केट नामक शहर में प्रदर्शन कर रहे थे उसी दौरान बम धमाका हुआ यह बम किसने फेका किसी को पता नही चला इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी और सात मजदूर मारे गये इस घटना के उपरांत अमेरिका में काम का समय आठ घंटे और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी लागू किया। मौजूदा समय में भारत सहित अन्य मुल्कों में भी ये नियम लागू कर दिया गया। उन्होंने कहा- वर्तमान समय में मजदूरों को अपने हक की लड़ाई को और तेज करने की जरूरत है। सरकार मजदूरों के बारे में उदासीन होने से मजदूरों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। उनको सरकारी लाभ से वंचित किया जा रहा है। संगठन को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा- सभी को अपने बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिये। मजदूर तबका समाज की रीढ़ है। इनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिये सामूहिक प्रयास होने चाहिये। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भाकपा के राज्य परिषद् सदस्य मोहन प्रसाद ने कहा कि भारतवर्ष में 90 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। कृषि कार्य में लगे मजदूरों की मजदूरी की कोई गारंटी नहीं है। इसके अलावा अन्य कार्यो में लगे संगठित और असंगठित मजदूरों के जीवन के सुरक्षा की भी जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है। शासन द्वारा बड़ी-बड़ी योजनायें बनाई गई हैं, परंतु धरातल में मजदूरों का उत्पीड़न हो रहा है। वर्तमान समय में मजदूर संगठनों की मान्यता रद्द किया जा रहा है और मजदूर संगठनों पर प्रतिबंध भी लगाया जा रहा है जो अलोकतांत्रिक कार्रवाई है।
मजदूर अधिकारों पर हमले की इजाजत किसी भी सरकार को नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा- मोदी सरकार आने के बाद मजदूर वर्ग पर हमले बहुत तेजी से बढ़े हैं। मोदी सरकार खुलकर पूंजीपतियों के पक्ष में खड़ी है। लंबे संघर्ष के बाद हासिल श्रम कानूनों को मोदी सरकार पूंजीपतियों के इशारे पर खत्म कर देना चाहती है। मोदी सरकार की पूंजीपति-परस्त नीतियों ने देश को तेजी से बढ़ती बेरोजगारी, छंटनी व कारखाना-बंदी की ओर धकेल दिया है। सरकारी क्षेत्र में मोदी सरकार ने लाखों नौकरियों को खत्म कर दिया है और सरकारी उपक्रमों को बड़ी बेशर्मी के साथ प्राइवेट हाथों में सौंप रही है। मौके पर भाकपा नेता सरदार शिवकुमार यादव ने कहा कि मोदी सरकार का अब तक का कार्यकाल निराशाजनक और हर मोर्चे पर विफल रहा है। यह सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट करने पर तुली हुई है। दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले किये जा रहे हैं। दलित प्रेम का नाटक किया जा रहा है, जबकि मनुवादी नेता दलितों और महिलाओं के लिए गुलामी के दस्तावेज मनु स्मृति को देश के संविधान पर तरजीह देना चाहते हैं। साहित्यकार वैज्ञानिक डॉ. आनंद वर्द्धन ने कहा कि केंद्र और बिहार की सरकारें मजदूर से ज्यादा कम्पनियों के लिए फिक्रमंद हैं। श्रम कानूनों में मालिकपक्षीय संशोधनों से मजदूरों की हालात नारकीय हो गई है। उत्पादन और देश की अर्थव्यवस्था की मुख्य ताकत होने बावजूद मजदूरों को बुनियादी सुविधाओं और अधिकारों से वंचित रखा गया है। समान काम के लिये समान वेतन का फैसला सरकारी फाइलों की शोभा बढ़ा रहा है। सरकार के रहमोकरम पर निर्भर रहने के बजाय मजदूरों को एक और मई दिवस का गौरवमय इतिहास रचने की जरूरत है। शिक्षक मो. जाहिद हुसैन ने कहा कि मजदूर वह है, जिसके पास बेचने के लिए कुछ भी न हो और फिर वह अपनी मेहनत को बेचता है। हर मेहनतकश इंसान मजदूर है,क्योंकि वह अपने-आप में एक संसाधन है। मजदूर खून-पसीना एक कर किसी कार्य को करता है और फिर वह मेहनताना प्राप्त करता है। वास्तव में उन्हें खून जलाने…