जयंती पर साहित्य सम्मेलन में हुआ भव्य समारोह, कवियों ने दी विनम्र काव्यांजलि ,केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे,पूर्व भा पु
किशोर कुणाल व हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने दी श्रंद्धाजली,अगले वर्ष से एक-एक लाख रूपए के दिए जाएँगे पुरस्कार| पटना, 28 मार्च। राष्ट्रभाषा परिषद के निदेशक सहित अनेक प्रशासनिक पदों पर अपनी मूल्यवान सेवाएँ देने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और साहित्यकार डा भगवती शरण मिश्र आधुनिक काल में हिन्दी के अग्र-पांक्तेय उपन्यासकार थे। ‘पीतांबरा’, ‘पवनपुत्र’, ‘अग्नि-पूरुष’, ‘पुरुषोत्तम’, ‘मैं राम बोल रहा हूँ’, ‘देख कबीरा रोया’, ‘अरण्या’, ‘लक्ष्मण रेखा’ ‘पद्म नेत्र’ जैसे वैदुष्यपूर्ण दर्जनों उपन्यासों, कथा-संग्रहों और आलोचना ग्रंथों से हिन्दी का भंडार भरने वाले मिश्र जी ने अपने साहित्य से भारतीय वांगमय के रहस्यमय अंशों को उजागर करने का अद्वितीय और ऐतिहासिक कार्य किया है।पटना स्थित बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में बिहार के प्रख्यात साहित्यकार,उच्च प्रशासनिक अधिकारी डॉ भगवती शरण मिश्र की प्रथम जयंती मनाई गई। कार्यक्रम के संयोजिका उषा मिश्रा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ भगवती शरण मिश्र के जीवन और साहित्य पर चर्चा की। ज्ञात हो कि उषा मिश्र स्व डॉ भगवती शरण मिश्र की बेटी हैं व संयुक्त राष्ट्र संघ में वरीय सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं। उषा मिश्र ने कहा कि देश में साहित्य के क्षेत्र में डॉ भगवती शरण मिश्र ने अद्भुत योगदान दिया है उन्होंने उच्च प्रशासनिक सेवा में जाने के वावजूद साहित्य की अलख अपने मन मे जगाए रखा,व्यस्तता के कारण साहित्य में समय नही दे पाने के कारण उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृति ली और पुनः साहित्यिक जीवन एक कवि के रूप आरम्भ किया। उसके बाद 1960 में पिता श्री की प्रथम पुस्तक आधुनिक अर्थ शास्त्र प्रकाशित हुई जिसको स्नातक के विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तक में शामिल की गई। 1961 में भारतीय अर्थ शास्त्र,1962 में प्रारंभिक अर्थ शास्त्र,1963 में माध्यमिक अर्थ शास्त्र प्रकाशित हुई ये किताबें देश मे पढ़ रहे अर्थ शास्त्र के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी रही। उषा मिश्रा अपने पिता स्व डॉ भगवती शरण मिश्र को याद करते हुए आगे कहती हैं अनेको कीर्तियो के अलावे उन्होंने देश विदेशों के कई साहित्य सम्मेलनों में हिस्सा लिया,सैकड़ो सम्मान पाए लेकिन हमें खेद है कि न ही बिहार सरकार और न ही भारत सरकार ने उन्हें किसी सम्मान के लिए याद किया।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि उन्हें डा मिश्र से तब से आत्मीय संबंध बना जब वो नवसृजित ज़िला शिवहर के प्रथम ज़िलाधिकारी बन कर आए थे। उनके साथ लेखन करने का एक सुखद अनुभव आज भी स्मरण रहता है। उनके साहित्य को पढ़कर ही उनके विराट साहित्यिक व्यक्तित्व को समझा जा सकता है।डा सुलभ ने घोषणा की कि अगले वर्ष से, प्रत्येक वर्ष बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से देश के एक मनीषी साहित्यकार को ‘डा भगवती शरण मिश्र स्मृति-सम्मान’ तथा एक विदुषी को, उनकी पुण्यवती पत्नी कौशल्या मिश्र की स्मृति में एक-एक लाख रूपए के पुरस्कार प्रदान किए जाएँगे।समारोह का उद्घाटन करते हुए, केंद्रीय खाद्यआपूर्ति राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि डा भगवती शरण मिश्र का साहित्य ही नहीं उनका व्यक्तित्व भी प्रेरणादायक है। उनके जीवन-आदर्श और आचरण में उतारने योग्य है। भले ही आज वो हमारे बीच नही हों, किंतु उनकी अविनाशी आत्मा सदैव हमारा मार्ग दर्शन करती रहेगी।श्री चौबे ने आश्वस्त किया कि वे डा मिश्र के लिए पद्म-सम्मान हेतु, प्रधानमंत्री जी से आग्रह करेंगे।महावीर मंदिर न्यास के सचिव और पूर्व भा पु से अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि भगवती बाबू हिन्दी के बहुत बड़े लेखक थे। किंतु उन्हें वह स्थान नही मिल पाया, जिसके वो अधिकारी थे। ‘पवन पुत्र’ नामक उनकी कृति भगवान हनुमान के ऊपर लिखी गई हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ रचना है। एक व्यस्त अधिकारी होकर भी उन्होंने जो विपुल साहित्य की रचना की वह एक बड़ा तपस्वी ही कर सकता है।
पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार, पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कुमार, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, कल्याणी कुसुम सिंह, वरीय अधिवक्ता रवींद्र कुमार चौबे, वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र, भगवती बाबू के पुत्र डा जनार्दन मिश्र, पुत्रियाँ अधिवक़्ता छाया मिश्र, पत्रकार आशा उपाध्याय और संयुक्त राष्ट्र संघ में वरीय सलाहकार उषा मिश्र ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। इस अवसर पर एक कवि सम्मेलन भी संपन्न हुआ, जिसमें वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, रामनाथ राजेश, डा सुमेधा पाठक, डा उमा शंकर सिंह, जय प्रकाश पुजारी, अशोक कुमार, शुभचंद्र सिन्हा, पं गणेश झा, डा आर प्रवेश, मीना कुमारी परिहार, डा बबीता ठाकुर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, प्रदीप पाण्डेय, अर्जुन प्रसाद सिंह, रमेश पाठक, मुकेश कुमार ओझा, मंजु भारती, उपेन्द्र नारायण पाण्डेय, संजय कुमार अम्बष्ट आदि कवियों ने अपनी गीति-रचनाओं से डा मिश्र को काव्यांजलि अर्पित की।