14 मार्च को शुरू होने वाला भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सहयोग से आयोजित भारतीय इतिहास में नारी एवं पर्यावरण आंदोलन विषय पर दो दिवसीय सेमिनार नालन्दा कॉलेज में मंगलवार को सम्पन्न हो गया। समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा के प्रति कुलपति प्रो आभा सिंह मौजूद रहीं तो वहीं समापन उदबोधन मगध विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर इतिहास विभाग के प्रो पीयूष नारायण सिन्हा ने दिया। समापन सत्र की शुरुआत करते हुए सह समन्वयक डॉ बिनीत लाल ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए कहा की दो दिनों तक इतनी बड़ी संख्या में मौजूद देश भर के विद्वानों ने 12 अलग-अलग सत्रों में अपने शोध पत्र प्रस्तुत कर विषय पर गम्भीरता से विमर्श किया। उन्होंने कहा की इस दो दिवसीय सेमिनार में बहुत कुछ अलग करने की कोशिश की गई जिसमें अथितियों को स्वागत करने के लिए बुके के जगह पर फलों की टोकरी भेंट करना, प्लास्टिक का उपयोग ना के बराबर करना, ऐतिहासिक काल में पर्यावरण से जुड़ी महिलाओं के बारे में पोस्टर प्रदर्शनी लगाना, स्थानीय कलाकारों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम करना और गणमान्य लोगों के शुभकामना संदेश के साथ सभी शोध सारांश को स्मारिका के रूप में प्रकाशित करना शामिल है। सेमिनार के समन्वयक डॉ रत्नेश अमन ने दो दिनों की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा की प्रतिभागियों ने सभी सत्रों में उत्साह से भाग लिया और सभी सत्रों में श्रोताओं के द्वारा बहुत सारे प्रश्न भी पूछे गए। उन्होंने आइसीएचआर, इतिहास संकलन समिति, प्राचार्य, आयोजन समिति और सभी वोलंटियर्स को इतने सफलता पूर्वक कार्यक्रम में सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। स्वागत भाषण देते हुए प्राचार्य डॉ राम कृष्ण परमहंस ने कहा की कॉलेज सभागार का उद्घाटन कल ही पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आरके सिंह के द्वारा किया गया और इस पहले ही कार्यक्रम की सफलता से हम काफ़ी उत्साहित हैं। उन्होंने नारी एवं पर्यावरण विषयक सेमिनार में विस्तार से चर्चा आयोजित करने के लिए सभी प्रतिभागियों समेत अतिथियों एवं आयोजन में लगे हुए सभी लोगों का आभार जताया।
मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए बीएनएमयू के प्रति कुलपति प्रो आभा सिंह आयोजन के व्यवस्था पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा की इस प्रासंगिक विषय पर नालन्दा जैसी ज्ञान की धरती पर चर्चा और परिचर्चा करना सराहनीय है। उन्होंने कहा की नारियों की स्थिति तो हमेशा ही भारतीय समाज में उच्च रहा है और वो प्रकृति के बहुत नज़दीकी से जुड़ी रही है लेकिन किसी कालखंड में संस्कृति को नष्ट करने की प्रवृत्ति के कारण हमारी दशा कमजोर हो गई। ऐसे में इस तरह संस्थानों में विमर्श से देश और प्रदेश को निश्चित रूप से एक नई दिशा मिल सकती है। समापन उदबोधन करते हुए प्रो पीयूष कमल सिन्हा ने कहा की 200 से अधिक विद्वतजनों ने गम्भीरता से चिंतन करके शैक्षणिक जगत में अपनी भूमिका का निर्वहन किया है और नारियों की भूमिका को रेखांकित करने का प्रयास किया। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य प्रो राजीव रंजन ने इस सेमिनार के विषय की महत्ता पर बोलते हुए कहा की इतिहास में कई ऐतिहासिक तथ्यों को जानबूझकर छुपाया गया है इसलिए आवश्यक है की इतिहास का पुनर्लेखन भारतीय परिप्रेक्ष्य में सही तरीक़े से किया जाए और इस काम में इतिहास संकलन समिति लगातार नालन्दा कॉलेज के साथ मिलकर काम कर रही है। सायं काल में अतिथियों एवं प्रतिनिधियों के लिए गीत विहार के कलाकारों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया।
इससे पहले सोमवार को पहले दिन उद्घाटन के बाद तकनीकी सत्र में शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता प्रो आरपी कछवे, प्रो अनिता, डॉ शशांक शेखर झा, डॉ श्रवण कुमार, डॉ भावना, डॉ दयाशंकर मेहता आदि लोगों ने किया। दूसरे दिन भी विभिन्न तकनीकी सत्रों में विद्वतजनों ने अपना प्रस्तुतीकरण किया। बाद में प्लेनरी सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ विजय कुमार वर्मा, नालन्दा विश्वविद्यालय के डॉ अविराम शर्मा और सुद्धु कानहु विश्वविद्यालय के प्रो डीएन वर्मा ने उदबोधन दिया। गौरैय्या संरक्षण अभियान के प्रमुख राजीव पांडेय ने भी अतिथियों को संगठन के दो साल पूरे होने के अवसर पर घोंसला भेंट किया। डॉ लाल ने बताया की अलग अलग सत्रों में रिपोर्टिंग करने के लिए छात्रों को ही रैपोर्टीयर बनाया गया था जिसके आधार पर बाद में विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर भारत सरकार को भेजा जाएगा। सेमिनार में बिहार के सभी विश्वविद्यालयों के विद्वानों के अलावे झारखंड, ओड़िसा, दिल्ली, पंजाब, मेघालय, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के भी विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। दो दिनों के सेमिनार में प्रमुख रूप से अतिथियों में विभिन्न कॉलेजों के प्राचार्यों के अलावे वरिष्ठ प्रोफ़ेसर शामिल थे।