1870 में भूमि दान देकर की थी महाविद्यालय की स्थापना- 152 साल पुराने नालन्दा कॉलेज में कॉलेज के लिए भूमि दानदाता रायबहादुर ऐदल सिंह जी के 186वीं जयंती मनायी गयी। इस अवसर पर नालन्दा के सांसद कौशलेंद्र कुमार, कुलपति, मुंगेर विश्वविद्यालय प्रो. श्यामा राय, ऐदल सिंह के वंशज रौशन कुमार, बीएन मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार प्रो. कुमारेस, शिक्षाविद शिव शंकर सिंह, कॉलेज के प्राचार्य, शिक्षक, छात्र, कर्मचारी, पूर्व छात्र के अलावे शहर के गणमान्य लोग मौजूद रहे। जयंती समारोह वंदे मातरम् गायन से शुरू हुआ और बाद में मौजूद अतिथियों ने ऐदल सिंह के प्रतिमा पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि कर श्रधांजलि अर्पित किया। कॉलेज के प्राचार्य डॉ रामकृष्ण परमहंस ने मौजूद अतिथियों का स्वागत शॉल और बुके भेंट कर किया। मंच संचालन करते हुए राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ बिनीत लाल ने कहा की नालन्दा विश्वविद्यालय और उदंतपूरी विश्वविद्यालय के नष्ट कर देने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में जो एक शून्यता की स्थिति पैदा हो गई थी उसे इस महान विभूति ने अपनी भूमि दान देकर पूरी कर दी। ऐदल सिंह के चौथे पीढ़ी के वंसज रौशन कुमार ने इस अवसर पर कॉलेज प्रशासन और आयोजकों का आभार जताते हुए कहा की
महान विद्यादानी रायबहादुर ऐदल सिंह की दूरदर्शिता, शिक्षा के प्रति उनका समर्पित भाव तथा चिंतन आज भी समाज के लिए प्रेरणादायी और अद्वितीय है। वे एक अत्यन्त ही उद्यमी एवं कर्मठ व्यक्ति थे। परिवार को भी उन्होंने बेहतरीन परवरिश दी थी इसलिए आज हमलोग भी उनके रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं। उनके दिल में इस नालन्दा की भूमि के प्रति अगाध लगाव था तभी वे कॉलेज को अपना नाम देने के बदले नालन्दा के नाम से खोला। मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद मुंगेर विश्वविद्यालय की कुलपति और कॉलेज की पूर्व प्राचार्या प्रो श्यामा राय ने कहा की रायबहादुर साहब ने अपनी दूरदर्शी सोच के कारण ही यह समझा की शिक्षा अगर अच्छी होगी, तो देश भी अच्छा होगा।
समाज को ठीक करने के लिए राज्य व देश की शिक्षा व्यवस्था को ठीक करना होगा। उन्होंने कहा की कॉलेज के 150 साल पूरे होने कार्यक्रम की शुरुआत जो अपने कार्यकाल में उन्होंने की थी वर्तमान प्राचार्य भी उसे बेहतर तरीक़े से करेंगे ऐसा विश्वास जताया। प्राचार्य डॉ परमहंस ने कहा की इस कॉलेज के प्रति वे हमेशा ही ऋणी रहेंगे क्यूँकि उनके साथ साथ उनके परिवार के भी सभी सदस्यों ने यहीं से शिक्षा ग्रहण की है। यह इसलिए सम्भव हो पाया कि इस महापुरुष की सोच 152 साल पहले अपने समय से कहीं आगे था। उन्होंने विश्वास दिलाया की वे अपने कार्यकाल में कॉलेज की पुरानी गौरवशाली इतिहास को स्थापित करने की हरसंभव प्रयास करेंगे और सरकार भी हमारी योजनाओं पर कार्यवाही कर रही है जिससे जल्द ही एक ऐतिहासिक कार्यक्रम इस परिसर में होगी। प्रसिद्ध शिक्षाविद शिव शंकर सिंह ने कहा की बाबू ऐदल सिंह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। बाबू ऐदल सिंह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे। इस मौक़े पर ऐदल सिंह पर शोध करने वाले विद्वान डॉ लक्ष्मी कांत सिंह और राकेश बिहारी शर्मा ने भी उनके जीवन दर्शन पर विस्तार से चर्चा किया और कहा की उनकी उपलब्धियों और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘राय बहादुर’ की उपाधि देकर सम्मानित किया था। यदि हम राय बहादुर बाबू ऐदल सिंह को नालन्दा के साहित्यिक कृतियों व शैक्षिक संस्थानों के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि के रूप में अभिहित करें, तो शायद अतिशयोक्ति न होगी। उन्होंने कहा की बिहार में नालन्दा के कर्मयोगी दानवीर राय बहादुर बाबू ऐदल सिंह केवल एक जमींदार ही नहीं थे, अपितु वह एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न महान समाजसेवी तथा साहित्य सेवी पुरुष थे।अंत में धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के डॉ श्याम सुंदर प्रसाद ने किया।
ज्ञात हो कि नालन्दा कॉलेज प्रदेश का दूसरा पुराना कॉलेज है जिसने अपना शताब्दी वर्ष 1970 में पूरा किया था। इस अवसर पर कॉलेज पर 20 पैसे का डाक टिकट भी जारी किया गया था। उस समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी के अलावे पृथ्वी राज कपूर, रामधारी सिंह दिनकर जैसी हस्तियों ने भी अपने कार्यक्रमों की प्रस्तुति की थी। जयंती समारोह में कॉलेज के शिक्षक प्रो आरपी कच्छवे, डॉ रत्नेश अमन, डॉ चंद्रिका प्रसाद आदी की गरिमामयी उपस्थिति रही।
कार्यक्रम के आयोजन में छात्र संघ के बलबीर तथा अभिराम, चन्द्रमणि, सज्जन, सुमन्त, विपुल, रौशन गोपाल आदि ने भूमिका निभाई तो वहीं रामरतन, बदे सिंह, टुनटुन सिंह, संजीव कुमार, माधव लाल, झूलन लाल, भूपाल सिंह, पिंकु सिंह, अमित सिंह आदि पूर्व छात्रों ने भी कार्यक्रम में भागीदारी कर श्रधांजलि अर्पित किया।