Saturday, September 21, 2024
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 अटल बिहारी वाजपेयी की 97 वीं जयंती पर विशेष: अटलजी एक प्रखर वक्ता और कवि भी थे ● आप दोस्तों को बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसियों को नहीं : अटलजी ● अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनीति में अटल थे और सदा अटल रहेंगे

प्रस्तुति :-  राकेश बिहारी शर्मा – प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर को पूरे भारत में श्रद्धा से ‘सुशासन दिवस’ मनाया जाता है। 25 दिसम्बर को भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म दिवस है, जो उन्हें आदर और सम्मान देने के लिये सुशासन दिवस के रूप में घोषित किया गया है। भारत सरकार द्वारा यह दिवस घोषित किया गया है ।
उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में शिक्षक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसंबर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त के समय में माता कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में ही शिक्षण कार्य के अतिरिक्त वे हिंदी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। अटलजी में काव्य के गुण वंशानुगत से प्राप्त हुए। अटलजी 7 भाई बहनों में प्रेम बिहारी वाजपेयी, अवध बिहारी वाजपेयी, सुदा बिहारी वाजपेयी तथा बहनों में विमला मिश्रा, उर्मिला मिश्रा, कमला देवी थे। अटलजी स्वस्वती विद्यालय से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्तह करने के बाद उन्हों ने बी॰ए॰ की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) से किया। इसके बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से इकोनोमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने लखनऊ के लॉ कॉलेज में भी दाखिला लिया, लेकिन उनका मन पढाई में नहीं लगा और वे आरएसएस की पत्रिका में एडिटर के पद पर काम करने लगे। अटलजी एक प्रखर वक्ता और कवि भी थे। उन्होंने पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, वीर अर्जुन और दैनिक स्वदेश जैसी पत्रिकाओं में अपनी सेवाएं प्रदान की। अटल बिहारी पढाई के साथ-साथ आजादी की लड़ाई में भी सक्रिय रहे। वे बहुत से अखबारों के सम्पापदक भी रहे। अटल जी ने आजादी से पहले स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। इसी दौरान उनकी मुलाकात श्यामाप्रसाद मुखर्जी से हुई जो कि भारतीय जनसंघ के लीडर थे। मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय को अटल जी का राजनीतिक गुरु भी कहा जाता है। 1977 में अटल जी को जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बनाया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु के बाद अटल जी जनसंघ के लीडर बने और पूरे भारत में पार्टी का कार्य विस्तार किया। वे 1968 से लेकर 1973 तक जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे थे। अटलजी ने वर्ष 1980 में लालकृष्ण आडवाणी और भैरवसिंह शेखावत के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्थापना की और पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। पार्टी के विस्तार के लिए पूरे भारत में घूम-घूम कर लोगों से संपर्क साधने का काम किया। वर्ष 1997 में चुनाव के बाद अटल जी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और देश की कमान संभाली तो सरकार बनने के तुरंत 1 महीने बाद ही राजस्थान के पोखरण जिले में परमाणु परिक्षण करवाए यह मिशन पूर्ण से सफल रहा और काम के कारण उन्हें पूरे विश्व में पहचान दिलाई। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता थे जो प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे थे। देश के इस सर्वोच्च पद पर पहुंचने के लिए वाजपेयी को वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा। मात्र 13 दिनों के लिए 06 मई से 21 जून 1996 तक देश के दसवें प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी ने शपथ ली। 13 दिनों तक ही सरकार चलने के बाद अटल जी की सरकार गिर गई और फिर सन् 1988 में सरकार गिरने के 2 साल बाद पार्टी सत्ता में आई और 19 मार्च 1998 में अटल जी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और फिर 10 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद के लिए शपथ ली थी। अटलजी चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य थे, लोकसभा, निचले सदन, दस बार, और दो बार राज्य सभा, ऊपरी सदन में चुने गए थे। प्रखर कवि, पत्रकार, दिग्गज राजनेता, भारत माता के वीर सपूत अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन के शुरुआती दिन काफी संघर्ष मय रहे और उन्हें पहले ही लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वह हर के बाद भी रुके नहीं। बलरामपुर लोकसभा सीट से साल 1957 में विजयी होकर सांसद बने। 1972 में ग्वालियर से चुनाव लड़ा और विजयश्री का वरण किया। साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के शासनकाल में लगाए गए आपातकाल की कठिन यातना के खिलाफ संघर्ष और फिर जेल ने अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन को पूरी तरह बदल लिया। आपातकाल समाप्ति के बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी जेल से बाहर आए तो उनके तेवर में पहले से अधिक तल्खी और विशाल अनुभव भंडार साफ झलकता था। साल 1977 में मोरारजी भाई देसाई की जनता पार्टी सरकार में अटल जी ने विदेशी मंत्री के तौर पर भारतीय विदेश नीति का अटल अध्याय लिखा। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय इतिहास के ऐसे प्रज्ञा पुरुष थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में भारत की गौरवशाली परम्परा एवं एकसूत्र वाक्य-“वसुधैव कुटुम्बकम” की विवेचना के साथ सर्वप्रथम हिन्दी में भाषण देकर देश के मस्तक को विश्व पटल पर गौरवान्वित करने का अद्वितीय कार्य किया। 6 अप्रैल सन् 1980 को जब भारतीय जनता पार्टी का अभ्युदय हुआ तब वे निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए, जहाँ उन्होंने मुम्बई में देश की राजनीति को कायाकल्पित करने वाला बहुचर्चित अध्यक्षीय भाषण दिया था। उन्होंने गांधीवादी समाजवाद से लेकर महात्मा फुले, समाजवाद, किसानों के हालात, महिला उत्पीड़न सहित अन्य समस्त देशव्यापी समस्याओं की वस्तुस्थितियों पर अपने संपादकीय लेखों की तरह ही विस्तृत प्रकाश डालते हुए राजनीति के मैदान में जूझने और लड़ने का निनाद करते हुए “अंधेरा-छंटेगा-सूरज निकलेगा-कमल-खिलेगा” की भविष्यवाणी की जो भविष्य में विभिन्न राजनैतिक उतार-चढ़ावों के लम्बे समय के बाद सच साबित हुई। अटलजी का प्रत्येक कथन मानो कालजयी था।
अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भाजपा को देश की राजनीति में लोकप्रिय बनाया। भाषण का बेबाक अंदाज और उनकी बेलाग शैली की वजह से लोग उनके मुरीद बने। संसद में अटल की भाषण कला से जवाहर लाल नेहरू भी प्रभावित हुए। उदार छवि की वजह से अटल को विरोधी दलों के नेताओं का भी सहयोग मिला। भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमलहृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्रप्रहरी, भारतमाता के सच्चे सपूत, अजातशत्रु अटल बिहारी बाजपेयी अपनी लेखनी के प्रति अटलजी सदैव गंभीर रहे,उन्होने अपने पत्रकार और कवि को कभी खत्म नहीं होने दिया। जब तक वे होशोहवास में रहे कविता लिखते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ‘एम्स अस्पताल’ में 93 साल की उम्र में 16 अगस्त 2018 को संध्या 5 बजकर 5 मिनिट पर अपनी आखरी सांस ली। अटलजी अपने चाहने वालों और राजनैतिक विरोधियों के दिलों में सदा बने रहेंगे। उन्होंसने कभी विवाह नहीं किया, उन्होंने लंबे समय से दोस्त राजकुमारी हक्सर पिता गोविंद नारायण हक्सर और माता मनमोहिनी हक्सर की पुत्री थी। राजकुमारी कौल उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध राजवंशपरिवार से थी। राजकुमारी कौल और अटल बिहारी वाजपेयी ने एक साथ ग्वालियर के लक्ष्मीबाई कॉलेज में पढ़ाई की थी। आजादी के दौरान राजकुमारी के पिता गोविंद नारायण हकसर ने उनकी शादी कश्मीरी पंडित कॉलेज शिक्षक बृज नारायण कौल (बी॰एन॰ कौल) से कर दी। राजकुमारी कौल और बी॰एन॰ कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को अटलजी ने दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकार किया। अटल जी के साथ नमिता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य साथ-साथ रहते थे। नमिता कौल के पति रंजन भट्टाचार्य वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में ओएसडी (ऑफ़िसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) थे। उनका होटल का व्यवसाय भी रहा है। राजकुमारी कौल की मात्र दो पुत्री नंदिता नंदा, नमिता भट्टाचार्य हुई थी। उन्होंने कौल की बेटी नमिता और बाद में उनकी नतिनि निहारिका को भी गोद ले लिया था। वापजेयी को मुखाग्नि दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य ने दिया। अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीतिक क्षेत्र में अच्छे कार्य के लिए 1992 में पदम् विभूषण से नवाजा गया। और 1994 में उन्हें अच्छे सांसद का पुरुस्कार भी मिला था। 25 दिसम्बर 2014 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने अपने पद राष्ट्रपति का प्रोटोकाल को तोड़कर उनके घर जाकर उनके जन्मदिन पर भारत रत्न से समानित किया था। अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनीति में अटल थे और सदा अटल रहेंगे।

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