Monday, December 23, 2024
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भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने भारतीय शिक्षा पद्धति में अमूलचूल परिवर्तन किया

प्रस्तुति- राकेश बिहारी शर्मा – भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का असली नाम अबुल कलाम ग़ुलाम मुहियुद्दीन था। वे मौलाना आज़ाद के नाम से मशहूर थे। ये भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। अबुल कलाम प्रकांड विद्वान के साथ-साथ एक कवि व साहित्यकार भी थे। मौलाना आज़ाद बहुभाषीय जानकर थे, जैसे अरबिक, इंग्लिश, उर्दू, हिंदी, पर्शियन और बंगाली भाषा में भी निपुण थे। मौलाना आज़ाद किसी भी मुद्दे पर बहस करने में प्रवीन थे। उन्होंने धर्म के एक संकीर्ण दृष्टिकोण से मुक्ति पाने के लिए अपना उपनाम “आज़ाद” रख लिया था। राष्ट्र के प्रति उनके अमूल्य योगदान के लिए मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का में हुआ था। उनके परदादा बाबर के ज़माने में अफ़ग़ानिस्तान के एक शहर हेरात से भारत आये थे। आज़ाद एक पढ़े लिखे मुस्लिम विद्वानों या मौलाना वंश में जन्मे थे। उनकी माता अरब देश के शेख मोहम्मद ज़हर वत्री की पुत्री थीं और पिता मौलाना खैरुद्दीन अफगान मूल के एक बंगाली मुसलमान थे। खैरुद्दीन ने सिपाही विद्रोह के दौरान भारत छोड़ दिया और मक्का जाकर बस गए। 1890 में वह अपने परिवार के साथ कलकत्ता वापस आ गए थे।वर्तमान शिक्षा पद्धति में काफी दोष हैं, इसमें दिखावा तो खूब है लेकिन वास्तविक शिक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं। अगर हम पिछले 60 सालों का इतिहास देखें तो ऐसा कोई भी शिक्षा मंत्री नहीं रहा जिसने भारतीय शिक्षा पद्धति में अमूलचूल परिवर्तन किया हो। लेकिन भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद उन सबसे अलग थे।आजादी के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद को कैबिनेट स्तर के पहले शिक्षा मंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ जहां उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की और अनेक उपलब्धियां भी हासिल की। जिस शिक्षा के अधिकार को लेकर वर्तमान सरकार इतरा रही है, केन्द्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने के नाते और एक शीर्ष निकाय के तौर पर अबुल कलाम आजाद ने सरकार से केन्द्र और राज्यों दोनों के अलावा विश्वविद्यालयों में, खासतौर पर सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा, लड़कियों की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की सिफारिश की थी।भारत के पहले शिक्षा मंत्री बनने पर अबुल कलाम आजाद ने नि:शुल्क शिक्षा, भारतीय शिक्षा पद्धति, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए संगीत नाटक अकादमी (1953), साहित्य अकादमी (1954) और ललित कला अकादमी (1954) जैसी उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की. मौलाना मानते थे कि ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय शिक्षा में सांस्कृतिक सामग्री काफी कम रही और इसे पाठयक्रम के माध्यम से मजबूत किए जाने की जरूरत है।तकनीकी शिक्षा के मामले में अबुल कलाम आजाद ने 1951 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (खड़गपुर) की स्थापना की गई और इसके बाद श्रृंखलाबद्ध रूप में मुंबई, चेन्नई, कानपुर और दिल्ली में आईआईटी की स्थापना की गई. स्कूल ऑफ प्लानिंग और वास्तुकला विद्यालय की स्थापना दिल्ली में 1955 में हुई। इसके अलावा मौलाना आजाद को ही ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ की स्थापना का श्रेय जाता है. वह मानते थे कि विश्वविद्यालयों का कार्य सिर्फ शैक्षिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके साथ-साथ उनकी समाजिक जिम्मेदारी भी बनती है। उन्होंने अंग्रेजी के महत्व को समझा तो सही लेकिन फिर भी वे प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा हिन्दी में प्रदान करने के हिमायती थे। वह प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी अग्रणी रहे।
वर्तमान समय में तो देश में कुकरमुत्ते की तरह शैक्षिक संस्थान खुलते जा रहे हैं लेकिन ये संस्थान प्राणहीन मूर्ति के समान हैं। यहां थोड़ा अक्षर ज्ञान जरूर मिल जाता है और बाकी के ज्ञान के नाम पर ये सभी संस्थाएं प्रमाण-पत्र बांटने का काम कर रही हैं। पैसा दीजिए, और प्रमाण पत्र लीजिए इस तरह की व्यवस्था समाज में उत्पन्न हो रही है जो किसी भी मायने में सही नहीं कही जा सकती।मौलाना अबुल कलाम जी संपूर्ण भारत में 10+2+3 की समान शिक्षा संरचना के पक्षधर रहे थे। यदि वे आज ज़िंदा होते तो वे नि:शुल्क शिक्षा के अधिकार विधेयक को संसद की स्वीकृति के लिए दी जाने वाली मंत्रिमंडलीय मंजूरी को देखकर बेहद प्रसन्न होते। शिक्षा का अधिकार विधेयक के अंतर्गत नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा एक मौलिक अधिकार है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।
भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद सच्चे राष्ट्रभक्त, एक कुशल वक्ता तथा महान् विद्वान् थे। पुराने एवं नये विचारों में अद्‌भुत सामंजस्य रखने वाले हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। देश सेवा और इस्लाम सेवा दोनों को एक्-दूसरे का पूरक मानते थे। हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संस्कृतियों के अनूठे सम्मिश्रण की वे एक मिसाल थे।“बहुत सारे लोग पेड़ लगाते हैं, लेकिन उनमें से कुछ को ही उसका फल मिलता है। दिल से दी गयी शिक्षा समाज में क्रांति ला सकता है”।
‘राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम सफल नहीं होगा, अगर यह समाज की आधी आबादी की शिक्षा और उन्नति पर पूरा ध्यान न दे – जो कि महिलाएँ हैं’।मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को असहयोग आन्दोलन से लेकर 1942 तक के भारत छोड़ो आन्दोलन तक कई बार उन्हें गिरफ्तार किया गया। असहयोग आन्दोलन में उन्होंने आगे बढकर भाग लिया था। वर्ष 1923 और 1940 में दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे। वर्ष 1945 में रिहाई के बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों से समझौता वार्ता में भाग लिया और स्वतंत्रता के बाद उन्हें भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बनाया गया। मौलाना आजाद सहिष्णु विचारो के धनी व्यक्ति थे। उनकी मान्यता थी कि जब सब धर्म एक ही परमेश्वर की प्राप्ति का मार्ग है तो उसमें संघर्ष क्यों हो। अबुल कलाम बड़े ही प्रभावशाली वक्ता और उर्दू भाषा के उच्च कोटि के लेखक थे। उनकी पुस्तके उर्दू गध्य का आदर्श मानी जाती है। अंग्रेजी में भी उन्होने ख़ास महत्वपूर्ण लेखन किया।आजाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ थे। उन्हेंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया। उन्होंने अपने समय के मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की जो उनके अनुसार देश के हित के समक्ष साम्प्रदायिक हित को तरज़ीह दे रहे थे। अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग उन्होने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ कर दिया। आजाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना आरंभ किया और उन्हें श्री अरबिन्दो और श्यामसुन्हर चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से समर्थन मिला। आज़ाद की शिक्षा उन्हे एक किरानी बना सकती थी पर राजनीति के प्रति उनके झुकाव ने उन्हें पत्रकार बना दिया। उन्होने 1912 में एक उर्दू पत्रिका अल हिलाल का सूत्रपात किया। उनका उद्येश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलनों के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था। उन्होने कांग्रेसी नेताओं का विश्वास बंगाल, बिहार तथा बंबई में क्रांतिकारी गतिविधियों के गुप्त आयोजनों द्वारा जीता। उन्हें 1920 में राँची में जेल की सजा भुगतनी पड़ी।राष्ट्रीय जीवन की मुख्य धारा के समर्थक मौलाना आजाद देश की मिली जुली संस्कृति के उदाहरण थे। 22 फरवरी 1958 को मौलना अबुल कलाम आजाद का निधन हुआ। वे पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में 15 अगस्त 1947 से 2 फरवरी 1958 तक शिक्षा मंत्री रहे।

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