देश और दुनिया के जाने माने गांधीवादी डॉ. एस .एन सुब्बाराव अब हम सभी के बीच नही रहे।उनके निधन से देश और दुनिया को अपार क्षति पहुची है ।
डॉक्टर से बारा दो बार नालंदा आए थे ।पहली बार 25 जनवरी 2017 में वे
मेरे विशेष आग्रह पर हरनौत में सद्भावना नगर मे आए थे ।उस दिन सुब्बा राव जी अपने मुख से नए नगर का नाम सद्भावना नगर रखे थे । और दूसरी बार 2019 मे सद्भावना मंच(भारत) के द्वारा आयोजित “वर्तमान समय में सद्भावना का महत्व “नामक राष्ट्रीय संगोष्ठी में रामचंद्रपुर के नाला रोड , गायत्री मंदिर के बगल सामुदायिक भवन में मुख्य अतिथि के रुप में पधारे थे । और उसी दिन शाम मे नालंदा महिला कॉलेज में सर्व धर्म प्रार्थना कार्यक्रम किए थे
।जहां भारत की संतान नामक अद्भुत कार्यक्रम हुआ था।
डॉक्टर सुब्बा राव जी की संक्षिप्त जीवनी _____
ज्यादातर गांधीवादी चिंतकों और पत्रकारों का कहना है कि महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बाद सुब्बाराव ही ऐसी हस्ती रहे, जिन्होंने देश के अधिकतम युवाओं को अहिंसक तरीके से राष्ट्र निर्माण के लिए प्रभावित और प्रेरित किया। वे एक संत की तरह जीवन जीते रहे। उनमें कोई दिखावा का भाव नहीं था। सादगी से रहते थे। युवाओं से घिरे रहते थे। बहुत कम उम्र में ही वे गांधी जी से प्रभावित हो गए थे और भारत छोड़ो आंदोलन ने कूद पड़े थे। उसके बाद वे वापस कभी नहीं मुड़े। वे गांधी के बताए रास्ते पर चलते ही गए। और चलते फिरते ही वे इस दुनिया से सदा के लिए चले गए। बहुत कम लोगों को इतनी लंबी जिंदगी जीने का मौका मिलता है। ऐसे महान व्यक्तित्व का पिछले दिनों 27 अक्टूबर को जयपुर के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। सुब्बाराव का जन्म 7 फरबरी 1929 को कर्णाटक के बेंगलूर मे हुआ था। सुब्बाराव जी को लोग भाई जी के नाम से जानते थे ।उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी की और जेल गये। महात्मा गांधी के विचारों के प्रभाव में वे जीवन दानी बन गए। उन्होंने सारा जीवन सादगी से बिताया। एक हाफ पेंट सफेद आधी बाँहों की कमीज उनकी स्थाई भूषा थी। उन्होंने काफी लोगों को गांधी के विचारों से अवगत कराया और शिक्षित किया। जौरा में जो मुरैना जिले में है उन्होंने अपना आश्रम बनाया था ।यहां वे लगातार लंबे समय तक रहे और लोगों के बीच में काम करते रहें ।आस पास के आदिवासियों को शिक्षित संगठित और जागृत करने के लिए वे निरन्तर कार्य करते रहे।जब पहला दस्यु समर्पण हुआ था जिसमें आचार्य विनोबा भावे की भूमिका थी, उसमें भी सुब्बाराव जी ने प्रमुख भूमिका अदा की थी। बाद में जयप्रकाश जी के समक्ष जो आत्मसमर्पण उस समय के दस्युयों ने किया उसमें भी स्व सुब्बाराव जी की भूमिका थी। वे अपने समय का बेहतर प्रबंधन करते थे ,और शायद ही कभी खाली बैठते हो। अपने जीवन के आखिरी क्षण तक वह सक्रिय रहे।उनका सम्पूर्ण जीवन एक यायावर महर्षि की तरह बीता ।
सुब्बाराव जिस तरह से वयोवृद्ध होते हुए भी काफी स्वस्थ जीवन जी रहे थे, उसके मद्देनजर उनके शुभचिंतकों को यह उम्मीद थी कि वे अपनी जिंदगी के एक शतक जरूर पूरे करेंगें ।लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनके विदा होने से देश भर में खास कर उनके प्रशिक्षित युवा काफी आहत हैं। और गांधी जगत में सन्नाटा छा गया है। क्योंकि इनकी जगह की भरपाई कोई नहीं कर सकता। डॉक्टर एसएन सुबाराव ने पिछले 8 दशकों तक देश विदेश के युवाओं का नेतृत्व किया। उनमें गांधीवादी मूल्य भरे और उन्हें अपने अपने इलाके में व्यावहारिक धरातल पर गांधी के संदेशों को उतारने के लिए प्रेरित किया । साथ ही जरूरत पड़ी तो उन्हें यथासंभव सहयोग भी किया। आज देश का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां उनके द्वारा प्रशिक्षित युवा नहीं हो,जहां उनके प्रशिक्षित युवा उनके गाए गीत ना गाते हों। वे सभी के बीच भाई जी और बच्चों के बीच फुग्गाराव के रूप में जाने जाते थे,क्योंकि जब वे किसी बच्चे से मिलते तो वे अपनी झोली से बैलून निकालते और उनको फुला के पकड़ा देते। विभिन्न आयोजनों के जरिए युवाओं की तरह वे बच्चों में भी अहिंसक संस्कार भरते रहे। पोशाक के लिहाज से वे भले जीवन भर खादी के हाफ पेंट और हाफ शर्ट पहनते रहे लेकिन विचारों और बर्ताव में वे पूरे गांधीवादी थे। उन्होंने गांधी और जयप्रकाश जैसा ही बेदाग जीवन जिया। उनके पूरे जीवन काल में किसी भी मुद्दे पर उन पर कभी कोई उंगली नहीं उठी और ना ही वे किसी आरोपों के घेरे में कभी आए। उनकी कथनी और करनी एक थी। उनके जीवन का एक एक पल पारदर्शी था। उनका जन्म भले कर्नाटक के बेंगलुरु में हुआ लेकिन वे केवल वहीं तक सीमित नहीं रहे। उनका अनौपचारिक आशियाना पूरी दुनिया में था। वे देश विदेश के कोने कोने में यात्रा करते रहते थे। उनका नाम देश में सबसे अधिक यात्रा करने वाले गांधीवादी के रूप में शुमार किया जाता रहा है। देश में जहां भी कोई अशांति होती, दंगे होते या किसी तरह का भी कोई तनाव होता। वे बिना देरी किए निर्भीक होकर वहां चले जाते और देश भर के सैकड़ों युवाओं को बुलाकर शांति बहाल करने में जुट जाते। वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक अरविंद अंजुम कहते हैं कि गांधी और जयप्रकाश के चले जाने के बाद जो शून्य गांधी जगत में व्याप्त गया था, उसकी भरपाई सुब्बाराव कर रहे थे और अब उनके चले जाने के बाद उनकी जगह पर फिलहाल किसी के आने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं दिखती है क्योंकि वे बहुत मौलिक थे ,वे वक्तव्यों से नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण के मायने भरे गीतों के जरिए गांधी का संदेश फैलाते रहे। वे सच में सच्चे गांधीवादी थे और उनके रोम रोम में गांधी के संदेश समाए हुए थे। उनका रहन-सहन, खान-पान और वेशभूषा सबसे अलग था जो दूर से ही पहचाने जा सकते थे। वे पूरी मानवता को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते रहे।
वे चंबल में 1972 मे 654 बागियों के आत्म समर्पण और उनके पुनर्वास कर शांति स्थापित करने वाले अहिंसक संत की तरह हमेशा याद किए जाएंगे।
वरिष्ठ समाज कर्मी रामशरण कहते हैं कि ना सिर्फ चंबल में शान्ति स्थापित करने जैसी बड़ी उपलब्धि हासिल की, बल्कि यह भी बहुत बड़ा काम था कि उन्होंने सैकड़ों शिविर लगा कर युवाओं को अहिंसाबका पाठ पढ़ाया और राष्ट्र निर्माण के लिए उनका मार्गदर्शन भी करते रहे।
बीते 24 अक्टूबर को ही जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में उनसे मेरी मुलाकात हुई थी वही 2 दिन बाद 27 अक्टूबर को उन्होंने जयपुर के हॉस्पिटल में ही अंतिम सांस ली।वे हमेशा हमेशा के लिए हम सभी से दूर चले गए।
उनका अंतिम संस्कार मध्यप्रदेश के मुरैना स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जावरा के कैंपस में ही पुरे राजकिय सम्मान के साथ हुआ। जहां
नोट-लेखक विगत 15 वर्षों से सुब्बाराव जी के सानिध्य मे रहे । और सुब्बाराव जी के सपनो का भारत बनाने में लगे हैं।