राकेश बिहारी शर्मा – भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को आजाद भारत के सबसे चमकदार सितारों में से एक होना चाहिए था। जिसने राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे कठिन लड़ाई लड़ी, रक्षा सौदों में दलाली के खिलाफ सत्ता से विद्रोह किया, जाति व्यवस्था को सबसे बड़ी चुनौती दी और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ आमरण अनशन करके अपनी किडनी खराब कर ली। किडनी की तकलीफ से ही जिनकी जान गई, उस आदमी की मौत इतनी गुमनाम हुई कि कोई भी नेता वी.पी. सिंह के रास्ते पर चलने से पहले चार बार सोचेगा। भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देने के लिए कभी नहीं भुलाये जाने वाले देश के 8 वें प्रधानमंती विश्वनाथ प्रताप सिंह की आज जयंती है। वी.पी. सिंह को उनकी जयंती पर कोई नेता याद नहीं करता।
विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म और पारिवारिक जीवन – पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री मंडल मसीहा विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून 1931 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में एक राजपूत जमींदार परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह था। इनके असली पिता का नाम राजा भगवती प्रसाद सिंह था। 1936 में वी.पी. सिंह को मांडवा के राजा बहादुर राय गोपाल सिंह के द्वारा गोद ले लिया गया था। 1941 में राजा बहादुर राय की मौत के बाद वी.पी.सिंह को मांडवा का 41 वां राजा बहादुर बना दिया गया था।
विश्वनाथ प्रताप सिंह की शिक्षा-दीक्षा – वीपी सिंह की पढाई की शुरुवात देहरादून के कैंब्रिज स्कूल से हुई थी। आगे का अध्ययन इलाहाबाद से पूरा किया, फिर इसके बाद पूना में पुणे यूनिवर्सिटी से पढाई की। पढाई के समय से ही इन्हें राजनीति में रुझान रहा, वाराणसी के उदय प्रताप कॉलेज के ये स्टूडेंट यूनियन के प्रेसिडेंट रहे, इसके अलावा इलाहबाद यूनिवर्सिटी के ये वाईस प्रेसिडेंट थे। वीपी सिंह को कविताये लिखने का काफी शौक था, इसलिए इन्होने कई किताबे भी लिखी। वीपी सिंह ने छात्र काल में बहुत से आन्दोलन किये और उनका नेतृत्व सम्भाला, इसलिए इनका सत्ता के प्रति प्रेम बढ़ता गया। यह एक समृध्द परिवार से थे, पर इन्हें धन दौलत से इतना प्रेम ना था, देश प्रेम के चलते इन्होने भी भू दान में अपनी सारी सम्पति दान करी दी और परिवार ने इनसे नाता तौड़ दिया। विद्वान् शिक्षाविद् श्री वीपी सिंह इलाहाबाद के कोरॉव में स्थित गोपाल विद्यालय इंटर कालेज के संस्थापक थे। 25 जून 1955 को श्रीमती सीता कुमारी से उनका विवाह हुआ एवं उनके दो बेटे हैं।
विश्वनाथ प्रताप सिंह का राजनैतिक जीवन – विश्वनाथ प्रताप सिंह जी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, 1969 से 71 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कार्यकारी निकाय एवं उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे। वे 1971 से 74 तक संसद (लोकसभा) के सदस्य, अक्टूबर 1974 से नवंबर 1976 तक वाणिज्य उपमंत्री, नवंबर 1976 से मार्च 1977 तक वाणिज्य संघ राज्य मंत्री, 3 जनवरी से 26 जुलाई 1980 तक संसद (लोकसभा) के सदस्य रहे। वे 9 जून 1980 से 28 जून 1982 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, 21 नवंबर 1980 से 14 जून 1981 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य और 15 जून 1981 से 16 जुलाई 1983 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे। वे 29 जनवरी 1983 से केंद्रीय वाणिज्य मंत्री रहे एवं 15 फरवरी 1983 से आपूर्ति विभाग का अतिरिक्त प्रभार संभाला। वे 1 सितंबर 1984 को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए और 31 दिसंबर 1984 को केंद्रीय वित्त मंत्री बने।
मंडल कमीशन और सामाजिक न्याय के ‘महानायक’ – वीपी सिंह के नाम से ज़ादा मशहूर होने वाले भारतीय राजनीति के ‘महानायक’ प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बहुत कम दिन ही बैठ पाए, किन्तु 343 दिनों के इनके कार्यकाल को देश कभी भुला नहीं सकता है। थोड़ी सी मुद्दत्त में बड़ा काम करने वाले वी.पी.सिंह का सब से साहसिक फैसला मंडल कमीशन को लागू करने का रहा, जो ना केवल भारतीय राजनीति एवं समाज दोनों की दशा एवं दिशा बदलने का कारण बना, बल्कि लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव, कांशीराम, मायावती, राम विलास पासवान आदि समाजवादी नेताओं को एक नया उभार भी दे गया। ओबीसी के आरक्षण पर मंडल कमीशन की रिपोर्ट विगत दस सालों से पड़ी धुल खा रही थी। किसी ने इसे हाथ नहीं लगाया था। वी.पी. सिंह ने आग से खेलने का साहस किया एवं उनकी सरकार ने इसे लागू कर दिया। भारत के सामाजिक आर्थिक संरचना को इस फैसले ने हिला कर रख दिया।
1989 के चुनाव में जनता दल की घोषणा पत्र – दरअसल 1989 के चुनाव में जनता दल ने अपने घोषणा पत्र में लिखा था कि अगर वो सत्ता में आती है तो मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया जाएगा। 1990 में वीपी सिंह की सरकार बनी और तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने अपने चुनावी वादे को पूरा किया। 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया। इन सिफारिशों में पिछड़े वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। सामाजिक बदलाव की दिशा में ये क्रांतिकारी कदम साबित हुआ। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद देशभर के सवर्ण छात्रों ने इसके खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया। देश की राजनीति में भूचाल आ गया। इसी दौर में मंडल की राजनीति के खिलाफ बीजेपी की कमंडल की राजनीति शुरू हुई। यानी भगवान राम से भाजपा का नया-नया प्रेम शुरू हुआ, जो ‘मंदिर वहीँ बनायेंगे’ के नारों में बदल गया। और आरक्षण लागू होने से पहले ही वीपी सिंह की सरकार गिर गई। जब मंडल का राजनितिक तूफ़ान चरम पर पहुँचने लगा, तब वीपी सिंह ने कहा था: ‘गोल करने में मेरा पांव जरूर टूट गया, लेकिन गोल तो हो गया’।
वीपी सिंह का मंडल कमीशन मील का पत्थर – वीपी सिंह का यह वाक्य आज की राजनीति का ‘जुमला’ साबित नहीं हुआ,बल्कि ‘गोल’ सच में हो चुका था, 1991 में कांग्रेस की सरकार जीतकर आई और उसे मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर आरक्षण लागू करना पड़ा। सामाजिक न्याय का एक नया उदाहरण मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करके दिया जिससे ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण मिल सका अगर बीपी सिंह ना होते तो आज भी मंडल कमीशन की सिफारसे अन्य सिफारसो की तरह टेबल पर धूल फांक रही होती। साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासविद प्रोफेसर लक्ष्मीकांत सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री या केंद्र में वित्त मंत्री रहते हुए आरक्षण के बारे में उनके विचार नहीं बने थे। लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और शरद यादव जैसे समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं के साथ मिलकर जब उन्होंने जनमोर्चा बनाया। तब उन्हें मंडल आयोग की सिफारिशों का महत्व मालूम हुआ।
वीपी सिंह पिछड़ों के हमदर्द और भ्रष्टाचार के आजीवन खिलाफ – वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनसे दो तरह की उम्मीद की गई थी। पहला यह कि जनता पार्टी ने जो गलतियां की वह गलती यह सरकार नहीं करेगी। और दूसरी यह कि यह सरकार साफ-सुथरी तथा भ्रष्टाचार मुक्त रहेगी। वी.पी. सिंह के बारे में यह कहा जा सकता है कि वे इस गरीब देश के लिए सही नेता थे। राजा नहीं, फकीर थे वे। वे पिछड़ों के हमदर्द थे। उनमें व्यक्तिगत ईमानदारी व त्याग इतना अधिक था कि उनके नाम पर कसमें खाई जा सकती हैं। यह इस देश का दुर्भाग्य रहा कि वे कम ही दिनों तक प्रधान मंत्री रहे। इस देश की मुख्य समस्या हर स्तर पर सरकारी भ्रष्टाचार ही है। बाकी अधिकतर समस्याएं तो भ्रष्टाचार के कारण ही पैदा होती रहती हैं। वी.पी.सिंह भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर थे।
भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर व्यक्ति यदि आज भी प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठ जाए तो देश का आधा सरकारी भ्रष्टाचार वैसे ही खत्म हो जाएगा। मन मोहन सिंह खुद तो ईमानदार हैं,पर भ्रष्टाचार के खिलाफ तनिक भी कठोर नहीं हैं। पहले बोफर्स घोटाले पर उनकी भूमिका की चर्चा कर ली जाए। अस्सी के दशक में राजीव गांधी मंत्रिमंडल से हटने के बाद वी.पी.सिंह जन मोर्चा बना कर देश भर में राजीव सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रहे थे। उसी सिलसिले में वे पटना आए थे। वे बेली रोड के हड़ताली मोड के पास एक सभा को सम्बोधित किये थे। वी.पी. सिंह एक निडर राजनेता थे, दुसरे प्रधानमंत्रीयों की तरह वे कोई भी निर्णय लेने से पहले डरते नही थे बल्कि वे निडरता से कोई भी निर्णय लेते थे और ऐसा ही उन्होंने लालकृष्ण आडवानी के खिलाफ गिरफ़्तारी का आदेश देकर किया था। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार का भी विरोध किया था।
समाजवादी नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) का निधन – 27 नवंबर, 2008 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया एवं इसी के साथ एक युग की समाप्ति भी हो गई। इससे पहले गुर्दे और हृदय की समस्याओं से पीड़ित वीपी सिंह को बॉम्बे अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में भर्ती कराया गया था। 76 वर्षीय सिंह के गुर्दे और दिल की बीमारियों का इलाज चल रहा था। आम तौर पर उनका नई दिल्ली स्थित अपोलो अस्पताल में या मुंबई के बॉम्बे अस्पताल में डायलिसिस होता था। वे सन 1991 से ब्लड कैंसर जैसी बीमारी से भी जूझ रहे थे मगर इसके बावजूद उन्होंने सक्रिय राजनीतिक जीवन नहीं छोड़ा। वीपी सिंह एक राजनेता होने के अलावा संवेदनशील कवि और चित्रकार के रूप में भी जाने जाते थे। उनके कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और कई कला प्रदर्शिनियों में उनकी बनाई तस्वीरें भी सराही गई।