आजादी के पहले त्रिवेणी संघ के सक्रीय कार्यकर्ता थे रामजी प्रसाद बिहारशरीफ, स्थानीय भैसासुर मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में इतिहासविद, प्रो. डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के आवास पर स्थित डुकारेल सभागार में किसान कॉलेज सोहसराय के संस्थापक सचिव स्व. रामजी प्रसाद की 105 वीं जयंती समारोह मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता साहित्यकार प्रो. डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने की तथा संचालन मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया। अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि बिहार की उर्वर भूमि जुझारू एवं कर्मठ व्यक्तित्व को जन्म देती रही है। बिहार प्रदेश में खेतिहर और लठिहर लोगों का संगठन था त्रिवेणी संघ इसमें तीन जातियां कोइरी, कुर्मी और अहीर(यादव) शामिल थे। यह संगठन बिहार और उत्तर प्रदेश में स्वतंत्रता पूर्व से सक्रिय सामाजिक संगठन था। यह पिछड़े वर्गों के लिए स्कूल, कॉलेज, स्वास्थ्य सेवा, सड़क परिवहन, तालाब एवं कुओं का निर्माण सामाजिक सहयोग से निस्वार्थभाव से करवाता था। इलाके के कुछ शिक्षा प्रेमी तथा पढ़े लिखे युवकों ने सोहसराय में एक कॉलेज की स्थापना का प्रस्ताव रखे।
उन दिनों नालन्दा कॉलेज में पिछड़े एवं निम्न वर्ग के लोगों को पढने में द्वंग लोग तंग-तवाह करते थे। तब त्रिवेणी संघ के लोगों ने समस्याओं पर गम्भीरता से विचार करते हुए स्वर्गीय रामजी प्रसाद ने कहा कि बिहारशरीफ में सिर्फ नालन्दा कॉलेज है जिसमें पढ़ने को मौका सभी को नहीं मिल पाता है। यदि सोहसराय में कॉलेज खुल जाता है तो इलाके के बच्चे और बच्चियों को पढ़ने में सहूलियत होगी। इन बातों से प्रेरित होकर कुछेक सहयोगी के साथ रामजी बाबू ने कॉलेज की स्थापना का मन बना लिया। अब कॉलेज खोलने के लिए अर्थ (धन) की आवश्यकता थी। इसके लिए उन्होंने किसान कोल्ड स्टोरेज की समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को रखा। समिति के सदस्यों ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किये। इसके बाद तय हुआ कि प्रथम वर्ष प्रतिमन पचास पैसे एवं बाद के सालों में 25 पैसे भाड़ा अधिक लिया जाएगा और जब कॉलेज अपने पैर पर खड़ा हो जाएगा तो कोल्डस्टोरेज से पैसा मिलना बन्द हो जायेगा। इस प्रकार अर्थ (धन) की व्यवस्था हो जाने के बाद रामजी बाबू ने कोल्ड स्टोरेज की समिति की बैठक बुलाकर कॉलेज के शासी निकाय (गवर्निग वॉडी) को गठन किया।
शासी निकाय के निर्णय के अनुसार कॉलेज का नाम “किसान कॉलेज-सोहसराय” रखा गया। किसान कॉलेज की मातृ संस्था किसान कोल्ड स्टोरेज सोहसराय है। शासी निकाय के संस्थापक सेक्रेटरी श्री रामजी चुने गयें। इसके बाद कॉलेज के प्राचार्य एव व्याख्याता की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारम्भ की गयी। एक ईमानदार, कर्मठ एवं काबिल प्राचार्य की खोज की जाने लगी। अनुग्रह नारायण कॉलेज, बाढ़ के दर्शनशास्त्र विभागध्यक्ष श्री रामवरण सिंह जी को प्राचार्य नियुक्त किया गया। फिर व्याख्याता की नियुक्ति की गयी और इसमें यह सतर्कता बरती गयी कि योग्य और सक्षम व्यक्ति को ही नियुक्त किया जाय। साथ ही व्याख्याताओं को पूर्ण वेतन भुगतान किया जाय। इन सारी प्रक्रियाओं के बाद कॉलेज की पढ़ाई की शुरूआत सत्र 1957-58 में की गयी किन्तु इसका एफिलियेशन बिहार विश्वविद्यालय, पटना द्वारा सत्र. 1958-59 से मिला। कॉलेज का अपना भवन नहीं होने के कारण किराये के मकान में पढ़ाई प्रारम्भ की गयी। प्रारम्भ के कला एवं वाणिज्य संकाय की पढ़ाई प्रारम्भ की गयी। इसके बाद भवन निर्माण को भी कार्य प्रारम्भ हो गया। रामजी बाबू के अथक प्रयास से दो-तीन सालों में भवन निर्माण का कार्य पूरा हो गया। सन् 1963-64 से विज्ञान संकाय की पढ़ाई प्रारम्भ करने की अनुमति मगध विश्वविद्यालय बोधगया से मिल गया। इस प्रकार कॉलेज का विकास दिन दूनी रात चौगनी होने लगी। फलस्वरूप कॉलेज में विद्यार्थियों की संख्या लगभग पाँच हजार हो गई। संयोगवश कभी कॉलेज स्टाफ को वेतन भुगतान में पैसे की कमी पड़ जाती थी तो रामजी बाबू अपने व्यक्तिगत खाते से कॉलेज खाते में पैसा जमा करा देते थे, ताकि वेतन भुगतान में दिक्कत न हो। इतना सब करने के बाद उन्होंने अपने घर या संबंधियों के एक भी व्यक्ति को कॉलेज में नियुक्त नहीं किया। इस प्रकार स्वर्गीय रामजी बाबू के कर्मठता एवं ईमानदारी के फलस्वरूप कॉलेज का काफी विकास हुआ और अन्त में सन् 1975 ई. में मगध विश्व विद्यालय, बोधगया का अंगीभूत इकाई बन गया। फिर भी कॉलेज के प्राचार्य एवं व्याख्याताओं की श्रद्धा इनके प्रति कम नहीं हुई। इनके विगत किये गये कार्य समाजसेवा तथा शिक्षा के प्रति अनुरागी, कर्त्तव्यनिष्ठा, धर्मनिष्ठा, समाजसेवा, राष्ट्रीय भावना तथा अपने कार्यक्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियों के लिए मई 2005 में “भारत विकास परिषद्” ने इनको “बिहार श्री” से सम्मानित किया।
मौके पर शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने स्वर्गीय रामजी प्रसाद जी के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि दलितों, पिछड़ों के मसीहा एवं समरस समाज के पुरोधा भारतीय स्वतंत्रता सेनानी कर्मयोगी प्रगतिशील किसान स्व. रामजी प्रसाद जी का जन्म 06 मई 1917 को तत्कालीन पटना जिला के बिहारशरीफ सब डिवीजन के अंतर्गत सलेमपुर गाँव में एक उन्नतिशील किसान चतुर्भुज महतो जी के घर में हुआ था। ये अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। ये अपने नाम के अनुरूप पुरुषोत्तम राम के आदर्श पर आजीवन कायम रहें। रामजी बाबू प्राथमिक शिक्षा के बाद स्कूली शिक्षा सोगरा हाई स्कूल बिहारशरीफ से किये। उस समय पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत जारी थी। आजादी की लहर चरम सीमा पर थी। 1942 के ‘अंग्रजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की लहर पूरे देश में विद्युत् गति से फैली पूरे देश के लोगों ने सक्रिय हिस्सा लिया। रामजी बाबू भी उस आंदोलन में पूरे उत्साह के साथ सक्रिय थे। अंततः देश आजाद हुआ। भूदान-आंदोलन में बिनोवा भावे जब यहाँ आये थे तो ये बहत ही सक्रिय रहें। अपने ही गाँव के अनेकों भूमिहीन लोगों को अपनी जमीन दान में दी। लोकप्रिय समाजसेवी दानवीर दधीचि रामजी बाबू का देहावसान 12 जुलाई 2006 को हो गया। उनकी प्रतिमा उनके द्वारा किये गये कार्यों के यादगारी में किसान कॉलेज के प्रशासनिक भवन में स्थापित किया गया है। अपना सारा जीवन गाँधीजी की विचारधाराओं से सम्मोहित होकर अपना जीवन सही मायने में दधीचि के तरह सार्थक किया।
साहित्यकार अभियंता आनंद वर्द्धन ने कहा कि मेरा सौभाग्य ही था कि बी एन कॉलेज पटना में नामांकन का अनुमति रहते हुए किसी कारण से रामजी बाबू द्वारा स्थापित किसान कॉलेज में दाखिला 1972 में लिया। वहां के शिक्षक और कई सेक्सन के हमारे अंतिम सेक्सन विज्ञान महाविद्यालय अथवा विदेशी अच्छे महाविद्यालय से भी बेहतर था। शिक्षाविद रामजी बाबू को कोटिशः धन्यवाद देते हुए श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
इस दौरान बहुभाषाविद साहित्यकार बेनाम गिलानी, समाजसेवी सरदार वीर सिंह, मो.जाहिद हुसैन, धीरज कुमार, कवयित्री प्रियारत्नम,कवि अमन कुमार, संजय कुमार शर्मा, समर वारिस ने भाग लिया।