● जयराम देवसपुरी :-
कोरोना काल मे आये अवसादों को दूर करने के लिये साहित्य की संगति जरूरी, घर ही में देवता मनईवई, तिरिथ करे बाहर न जइबई
●बेनाम गिलानी :-
जब भंवरा गीत गाए समझो बहार आई, जब फूल मुस्कुराए समझो बहार आई
●डॉ. हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी :-
बच्चों को महापुरूषों का जीवन-चरित्र अवश्य पढाएं
●डॉ. लक्ष्मीकांत :-
सभी घरों में पुस्तकों के लिए भी एक निश्चित स्थान हो
तेल्हाड़ा-नालंदा, 21 फरवरी 2021 : तेज रफ्तार के आधुनिक जीवन मे सो चुकी मानवीय संवेदनाओं को जगा गया वसंत साहित्य उत्सव। 21 फरवरी 2021 रविवार को पंचायत सरकार भवन, तेल्हाड़ा के प्रांगण में साहित्यिक मंडली ‘शंखनाद’ एवं गावँ के सहित्यप्रेमियों के सहयोग से कोरोनो गाइड लाइन का पालन करते हुए आयोजित इस कार्यक्रम में लुप्त होती जा रही भारतीय संस्कृति एवं सहयोग की गंवई परपंरा को फिर से जिंदा करने पर जोर दिया गया। कार्यक्रम में राकेश बिहारी शर्मा की पुस्तक “आईना-ए-तवारीख” का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि बसंत साहित्य उत्सव का उद्देश्य विलुप्त होती जा रही, भारतीय साहित्य एवं सांस्कृतिक परंपरा को पुनर्जीवित करना एवं लोगों में सभी प्राणियों एवं पर्यावरण के प्रति उदार भाव पैदा करना है। तेल्हाड़ा जैसे प्राचीन विरासत के प्रति नई पीढ़ी को जागरूक करना एवं इनके प्रति संरक्षण भाव पैदा करना भी शंखनाद का लक्ष्य है।इस अवसर पर नालंदा के पूर्व डीपीआरओ लालबाबू ने कहा कि साहित्य की दृष्टि सबसे अधिक उदार एवं दूरगामी होती है। जहां तक वैज्ञानिक एवं इतिहासकार नहीं सोच पाते उससे आगे की सोच साहित्यकारों की होती है। ब्रिटिश साहित्यकार बरटेंड रसेल ने आज से डेढ़ सौ साल पहले ही अपने लेख में लिखा कि एक समय आएगा जब खुद को सर्व शक्तिमान समझने वाला मनुष्य एक सूक्ष्म जीव के सामने असहाय महसूस करेगा। आजका कोरोना वायरस को हम इस रूप में देख सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना के इस संकट काल मे खुद को एवं अपने आस पास के लोगो को बचाने एवं मदद करने की प्रेरणा साहित्य ही देगा इसलिए ऐसे आयोजन का महत्व बढ़ जाता है। शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने साहित्यकारों व युवाओं से पुस्तकें पढ़ने का आग्रह करते हुए कहा कि गूगल गुरु के इस युग में युवाओं को वैचारिक गहराई केवल पुस्तकों से ही मिल सकती है। उन्होंने घर में पुस्तकों के लिए भी एक स्थान निश्चित करने की सलाह दी। कहा कि किसी भी समाज में समाज का प्रबुद्ध वर्ग, समाज के लेखक या साहित्यकार ये पथ प्रदर्शक की तरह होते हैं। व्यवस्थापक मंडल के सदस्य एवं शंखनाद के सक्रिय सदस्य साहित्यसेवी मनोज कुमार चंद्रवंशी ने कहा कि हर व्यक्ति का जीवन एक किताब होता है। बस फर्क इतना है कि व्यक्ति की नियत समय में मृत्यु हो जाती है जबकि पुस्तक अमर होती है। उन्होंने उम्मीद जताया कि राकेश बिहारी शर्मा की पुस्तक “आईना-ए-तवारीख” भी अपने उद्देश्य में सफल होगी। वरिष्ठ साहित्यकार व गीतकार डॉ. हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने कहा कि साहित्य के माध्यम से ही विरासतों को प्रभाव कारी तरीके से प्रचारित किया जा सकता है। तेल्हाड़ा का महाविहार भी आने वाले समय मे विश्व पटल पर प्रसिद्धि पायेगा। इस अवसर पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध नज्म ‘मेरे आसुओ पे न मुस्कुरा, कई ख्वाब थे जो मचल गए ‘ सुनाकर वाहवाही बटोरी। घर ही में देवता मनईवई, तिरिथ करे बाहर न जइबई – को गाकर, मगही के चर्चित व नामचीन कवि जयराम देवसपुरी ने पारिवारिक संस्कार को कायम रखने की प्रेरणा दी। शायर बेनाम गिलानी ने जब अपनी वसंती गीत ‘जब भंवरा गीत गाए समझो बहार आई, जब फूल मुस्कुराए समझो बहार आई’… सुनाया तो लगा मानो सचमुच बहार आ गई। युवा शायर नवनीत कृष्ण ने मंच संचालन करते हुए अपनी गजल ‘ज़ख़्मो पे ज़ख़्म खाये ज़माने गुजर गए,पत्थर भी घर मे आये ज़माने गुजर गए। वो दोस्ती का हो या कोई दुश्मनी का है, रिश्ता कोई निभाये ज़माने गुजर गए’सुनाकर खूब तालियाँ बटोरी।
नालन्दा गान के रचयिता राकेश ऋतुराज ने अपनी ‘स्वयं सुधरिये आप ही, जग सुधरेगा आप।स्वयं न सुधरे आप तो, इससे बड़ा न पाप।।…’ सुनाया जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा। तेल्हाड़ा के स्थानीय एवं नवोदित कवि प्रियांशु की रचनाओं को भी खूब सराहा गया। कार्यक्रम में अशोक सिंह ने होली के गीतों से भी वसंत का स्वागत किया और अपने सुमधुर स्वर में होली, गजल और ठुमरी सुनाया। कवियों ने अपनी-अपनी सरस् व चुटीले व्यंग्यात्मक रचनाओं से मानवीय संवेदनाओं को झकझोरा। वसंत साहित्य उत्सव सह छठी साहित्य विरासत यात्रा में तेल्हाड़ा के मुखिया प्रतिनिधि अवधेश गुप्ता ने तेल्हाड़ा महाविहार की प्राचीनता एवं महत्व को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि उत्खनन पूरा होने के बाद तेल्हाड़ा वैश्विक पटल पर नालंदा महाविहार की तरह प्रसिद्धि पाए एवं इस इलाके का विकास हो, यही उनकी कामना है | इस अवसर पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव राकेश बिहारी शर्मा, प्रो. डॉ. सच्चिदानंद प्रसाद वर्मा, प्रो. डॉ. विश्राम प्रसाद, समाजसेवी चंद्र उदय कुमार उर्फ़ मुन्ना जी, मगही कवि डॉ. प्रो. आनंद वर्द्धन, जनवादी कवि सुधाकर राजेंद्र, नाटककार राम सागर राम, शिव कुमार प्रसाद, कवयित्री मुस्कान चाँदनी, शायर मोहम्मद बल्ख़ी, डॉ. गोपाल शरण सिंह, पर्यावरणविद प्रो. सुर्य कुमार सरल, समाजसेवी धीरज कुमार, सुरेंद्र प्रसाद, तेल्हाड़ा पंचायत के उपसरपंच सुरेश प्रसाद, तेल्हाड़ा मुखिया प्रतिनिधि अवधेश प्रसाद, राजेन्द्र पंडित, शंखनाद सदस्य के सक्रिय सदस्य मनोज कुमार चन्द्रवंशी, सुजेन्द्र प्रसाद, लक्ष्मी प्रसाद, रामकुमार बोकाड़िया, राजकुमार भगत, अशोक कुमार, कृष्ण कुमार वर्मा, स्टेट रेफरी कुणाल बनर्जी, राजनन्दन प्रसाद, राजकुमार मालाकार, कमलेश प्रसाद वर्मा, संजय वर्मा, सुधीर पासवान, रंजीत चन्द्रवंशी, शम्भु प्रसाद, ललन प्रसाद सिंह, तथा नवोदित कवि प्रियांशु मिश्रा सहित कई समाजसेवी व प्रबुद्धवर्ग के लोगों ने भाग लिया ।